Sitamarhi: मतदान केंद्र पर पसरा सन्नाटा, पुल नहीं तो वोट नहीं पर अड़े ग्रामीण

ग्रामीण इस बात से नाराज हैं कि करीब 35 साल पहले ध्वस्त पुल का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है. लोगों को जान जोखिम में डालकर नाव से या कपड़े उतारकर नदी को पार कर आना जाना पड़ता है. हर बार जिला प्रशासन द्वारा आश्वासन दिया जाता है लेकिन पुल का निर्माण नहीं होता है.

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बथनाहा विधानसभा के सुपैना के सैकड़ों लोगों ने किया ऐलान. बथनाहा विधानसभा के सुपैना के सैकड़ों लोगों ने किया ऐलान.

केशव आनंद

  • सीतामढ़ी,
  • 07 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 5:23 PM IST
  • लोगों को वोट डालने के लिए मनाने में जुटा प्रशासन
  • बथनाहा विधानसभा के सुपैना के सैकड़ों लोगों ने किया ऐलान
  • नाव से या कपड़े उतारकर नदी को पार करना पड़ता है

बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान जारी हैं वहीं सीतामढ़ी के बथनाहा विधानसभा क्षेत्र में मतदान केंद्र पर सन्नाटा पसरा हुआ है. इस बार सैकड़ों ग्रामीणों ने पुल नहीं तो वोट नहीं के नारे के साथ वोट बहिष्कार का फैसला लिया है. अधिकारी लगातार समझाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीण मानने को तैयार नहीं हैं.

ग्रामीण इस बात से नाराज हैं कि करीब 35 साल पहले ध्वस्त पुल का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है. लोगों को जान जोखिम में डालकर नाव से या कपड़े उतारकर नदी को पार कर आना जाना पड़ता है. हर बार जिला प्रशासन द्वारा आश्वासन दिया जाता है लेकिन पुल का निर्माण नहीं होता है.

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सीतामढ़ी जिले के बथनाहा, सोनबरसा और परिहार प्रखंड की सीमा पर सुपैना गांव स्थित बथनाहा प्रखंड के दिग्घी और सोनबरसा प्रखंड के गोनाही विशनपुर पंचायत के सैकड़ों लोग नदी पर पुल की मांग को लेकर अपने वोट बहिष्कार के ऐलान पर अड़ गए. इसको लेकर पहले ही दोनों ही पंचायतों में घोषणा करवा दी गई थी. आम सभा के माध्यम से दोनों पंचायत के लोग सामूहिक रूप से पुल नहीं तो वोट नहीं के निर्णय पर अड़े हैं.

बता दें कि करीब 35 साल पहले ध्वस्त हुए पुल के निर्माण को लेकर लोगों ने इस बार वोट  बहिष्कार का फैसला लिया है. ग्रामीणों ने बताया कि सभी जनप्रतिनिधियों द्वारा कोरा आश्वासन ही दिया गया. 2014 में भी ग्रामीणों द्वारा लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया गया था. लेकिन जिला प्रशासन द्वारा आश्वासन दिए जाने के बाद ही मतदान किया गया था.

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करीब छह साल बीत जाने के बाद भी पुल निर्माण नहीं हो सका. गांव के लोगों को जान जोखिम में डालकर नाव से या कपड़े उतारकर नदी को पार कर आना जाना पड़ता है. बारिश के चार महीने तो ग्रामीणों के लिए आफत बन जाते हैं.

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