बिहार में दूसरे चरण के चुनाव में 3 नवंबर को कुल 94 सीटों पर मतदान होना है. लेकिन इस चुनाव में आमने-सामने वर्चस्व की लड़ाई मुख्य रूप से एनडीए और महागठबंधन के बीच है. इन दोनों की नजर राजधानी पटना की नौ सीटों पर है. माना जा रहा है कि पटना की नौ विधानसभा सीटों पर फतेह हासिल करना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होगा. आइये देखते हैं कि पटना की विधानसभा सीटों पर क्या रहा है इतिहास...
1. बख्तियारपुर
बख्तियारपुर सीट पर पिछले तीन दशक से बीजेपी और आरजेडी के बीच ही मुख्य मुकाबला होता रहा है. दिलचस्प तथ्य ये है कि वर्ष 2000 से अब तक इन दोनों ही पार्टियों में कोई भी लगातार दो बार नहीं जीत सका है. साफ है कि यहां की जनता हर चुनाव में बदलाव पर यकीन करती आई है. मौजूदा समय में ये सीट बीजेपी के कब्जे में हैं. तो क्या इस बार फिर बदलाव होगा? इस सवाल का जवाब अब 10 नवंबर को ही मिलेगा.
2. दीघा
दीघा विधानसभा सीट से बीजेपी पर अपने मौजूदा विधायक संजीव चौरसिया को एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतारा है. जबकि महागठबंधन से ये सीट सीपीआई माले के हिस्से में है जिसने शशि यादव को टिकट दिया है. ये सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई. 2010 में इस सीट पर पहली बार विधानसभा चुनाव जिसमें जेडीयू ने जीत हासिल की, जबकि 2015 में इस सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया. इस सीट पर यादव, राजपूत, कोइरी, भूमिहार, ब्राह्मण, कुर्मी अहम भूमिका में हैं. महिला वोटरों की भूमिका भी अहम रही है जो बढ़चढ़ कर मतदान करती हैं.
3. बांकीपुर
बांकीपुर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी के रूप में फिर नितिन नवीन मैदान में है जो यहां के सिटिंग विधायक हैं और ये उनके प्रभाव वाला क्षेत्र है. कांग्रेस से शत्रुघन सिन्हा के बेटे लव सिन्हा महागठबंधन के प्रत्याशी हैं. जबकि प्लूरल्स पार्टी संस्थापक पुष्पम प्रिया चौधरी भी इसी सीट से लड़ रहीं हैं. इस बार दिलचस्प लड़ाई वाली ये सीट 2008 के परिसीमन में बनी. यहां दो ही बार चुनाव हुए है जिसमें दोनों ही बार भाजपा के नितिन नवीन ने जीत हासिल की. कायस्थ और वैश्य मतदाताओं की संख्या यहां सबसे ज्यादा है. जबकि यादव, राजपूत, भूमिहार भी अहम भूमिका में रहते हैं. '
4. कुम्हरार
कुम्हरार सीट पर भी बीजेपी काबिज है और उसने फिर अपने सीटिंग विधायक अरुण कुमार सिन्हा पर भरोसा जताया है. महागठबंधन से ये सीट आरजेडी के हिस्से में हैं जिसने धर्मेंद्र चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया है. ये सीट भी 2008 के परिसीमन में अस्तित्व में आई और यहां 2010 तथा 2015 के चुनावों में भाजपा ने ही जीत हासिल की है. इस सीट पर भाजपा हैट्रिक लगाने की फिराक में है. इस सीट पर भी बांकीपुर की तरह पर कायस्थ वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. इसके बाद भूमिहार और अति पिछड़ा वर्ग के वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं.
5. पटना साहिब
पटना साहिब सीट इसलिए खास है क्योंकि ये भाजपा का गढ़ माना जाता है. मौजूदा सरकार में मंत्री नंदकिशोर यादव इस सीट पर छह बार जीत हासिल कर चुके हैं. सातवीं जीत के लिए वह फिर भाजपा के टिकट से मैदान में हैं. महागठबंधन से कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा उन्हें चुनौती देंगे. जबकि आरएलएसपी ने जगदीप प्रसाद वर्मा को मैदान में उतारा है. पटना साहिब भी 2008 परिसीमन से अस्तित्व में आई है. इससे पहले इस सीट का ज्यादातर क्षेत्रफल पटना पूर्वी सीट में थी और नंदकिशोर यादव वहां से विधायक हुआ करते थे. यहां वैश्य समाज का दबदबा रहता है. इसके बाद कोइरी, कुर्मी और मुस्लिम मतदाता की भी निर्णायक भूमिका रहती है.
6. फतुहा
फतुहा सीट पर अब तक आरजेडी का प्रभाव रहा है. इसे आरजेडी का गढ़ भी माना जाता है. यहां के विधायक डॉ. रामानंद यादव एक बार फिर महागठबंधन से आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. यहां बीजेपी के सत्येन्द्र कुमार सिंह से है जो इससे पहले एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. इस सीट पर आज तक बीजेपी ने जीत हासिल नहीं की है. यहां कुर्मी जाति के वोटरों की संख्या अधिक है. यादव मतदाताओं की संख्या भी ज्यादा है.
7. दानापुर
दानापुर बीजेपी की सीटिंग विधायक आशा देवी फिर चुनाव मैदान में हैं जबकि आरजेडी के रीतलाल महागठबंधन के प्रत्याशी हैं. 2005 से अब तक बीजेपी का ही इस सीट पर कब्जा रहा है. चार बार से आशा देवी ही यहां जीत हासिल करती आ रही हैं. इस सीट पर यादव और वैश्य समुदाय के वोटर्स ज्यादा है जबकि इसके बाद अगड़ी जातियों का बोलबाला है.
8. मनेर
मनेर सीट आरजेडी के प्रभाव वाली सीट है. वर्तमान में आरजेडी के विधायक भाई वीरेन्द्र हैं जो एक बार फिर से मैदान में हैं. यदि आरजेडी अपने इस सीट पर कब्जा बरकरार रख पाई तो ये जीत की हैट्रिक होगी. इस सीट पर यादव वोटर्स सबसे ज्यादा है जिनकी तादाद करीब 35 प्रतिशत से ज्यादा है. इसके बाद सवर्ण वोटर आते हैं.
9. फुलवारी शरीफ
फुलवारी शरीफ को वैसे जो आरजेडी का गढ़ माना जाता है लेकिन 2015 के चुनाव में आरजेडी और जेडीयू गठबंधन के चलते ये सीट जेडीयू के कब्जे में आ गई. इस बार एनडीए से ये सीट जेडीयू के पास है और उसने अरुण मांझी को प्रत्याशी बनाया है. जबकि महागठबंधन से ये सीट सीपीआई एमएल के खाते में हैं जिसने गोपाल रविदास को चुनावी मैदान में उतारा है. इस सीट पर रविदास, पासवान के साथ ही यादव और मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं निर्णायक साबित होते होते हैं.
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