संस्कृत एकजुट करने वाली भाषा, सरकार से संस्कृत को बढ़ावा देने की मांग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित संगठन संस्कृत भारती ने अपने कार्यक्रम में कहा कि संस्कृत भारत की एकजुट करने वाली भाषा है. नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार को इसे देश में हर स्तर पर बढ़ावा देना होगा. संस्कृत भारती ने संस्कृत में शपथ लेने वाले केंद्रीय मंत्रियों हर्षवर्धन, प्रताप सारंगी, अश्विनी चौबे और श्रीपद येसो नाइक समेत 47 नवनियुक्त लोकसभा सांसदों को सम्मानित भी किया.

Advertisement
प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 2:42 PM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित संगठन संस्कृत भारती ने अपने कार्यक्रम में कहा कि संस्कृत भारत की एकजुट करने वाली भाषा है. नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार को इसे देश में हर स्तर पर बढ़ावा देना होगा. संस्कृत भारती ने संस्कृत में शपथ लेने वाले केंद्रीय मंत्रियों हर्षवर्धन, प्रताप सारंगी, अश्विनी चौबे और श्रीपद येसो नाइक समेत 47 नवनियुक्त लोकसभा सांसदों को सम्मानित भी किया.

Advertisement

आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार संस्कृत भारती के राष्ट्रीय महासचिव और आरएसएस के वरिष्ठ नेता दिनेश कामत ने कहा कि सांसदों को प्राचीन भाषा से परिचित कराने के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष से संपर्क किया गया है. आरएसएस प्रबुद्ध मंडल के सदस्य कामत ने कहा कि आंबेडकर (भीम राव आंबेडकर) ने कहा था कि संस्कृत को भारत की राजभाषा बनाया जाना चाहिए. जब डॉक्टर साहब (आंबेडकर) से कहा गया कि संस्कृत भाषा को ब्राह्मणों से जोड़कर देखा जाता है और उन्हें इसका प्रचार नहीं करना चाहिए, तो आंबेडकर ने अपने अनुयाइयों से कहा कि संस्कृत के महान कवि व्यास, वाल्मीकि और यहां तक कि कालिदास भी ब्राह्मण नहीं थे. संस्कृत मानव का विकासत करती है, यह भारत को एकीकृत करती है.

संस्कृत भारती के वर्तमान में देशभर में 585 केंद्र हैं. भारत की प्राचीन भाषा की महत्ता याद दिलाते हुए कामत ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद 37 सांसदों ने संस्कृत में शपथ ली थी और इस बार (2019) यह संख्या बढ़कर 47 हो गई. कामत ने ये भी कहा कि ना सिर्फ सांसदों ने संस्कृत में दिलचस्पी दिखाई है, बल्कि इस भाषा को चीन समेत 40 देशों और दुनियाभर की 254 यूनिवर्सिटीज में पढ़ाया जा रहा है, इस पर शोध किया जा रहा है.  यह सभी भारतीय भाषाओं की जननी है और यहां तक कि दक्षिण-पूर्वी एशिया की भाषाओं पर भी इसका प्रभाव है. संस्कृत में 45 लाख पांडुलिपियां हैं लेकिन बदकिस्मती से सिर्फ 25,000 ही प्रकाशित हुई हैं. दिल्ली में कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित कार्यक्रम में सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के अतिरिक्त आरएसएस के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे.

Advertisement

संघ के शीर्ष नेताओं में से एक इंद्रेश कुमार ने कहा कि संस्कृत भारतीय संस्कृति की पहचान कराती है. इस भाषा को सभी राज्यों के सभी संस्थानों में बढ़ावा दिया जाना चाहिए. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement