Republic Day 2019: जानें- राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का इतिहास

Republic Day 2019: क्या जानते हैं वंदे मातरम् को राष्ट्रगान बनाने की प्लानिंग की जा रही थी... जानें- क्या है इतिहास

Advertisement
प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 10:43 AM IST

Republic Day 2019: राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के बारे में हम सभी काफी बाते जानते होंगे. लेकिन क्या कभी ये सोचा है कि आखिर राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के पीछे की कहानी क्या है. कैसे "जन-गण-मन" को  राष्ट्रगान और "वन्दे मातरम्" को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया था. आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे.

सबसे पहले हम बात करते हैं राष्ट्रगान की

Advertisement

अगर किसी से पूछे तो का आप राष्ट्रगान के बारे में क्या जानते हैं तो वह यहीं बताएंगे कि 'जन गण मन' तब से गाते आ रहे हैं जब हम स्कूल में हुआ करते थे, या फिर इसे रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था. क्या आप इसके अलावा कुछ और बातें जानते हैं...

बता दें, राष्ट्रगान साल 1905 में बंगाली में लिखा गया था. 27 दिसंबर 1911 को पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कोलकाता (तब कलकत्ता) सभा में गाया गया था. उस समय बंगाल के बाहर के लोग इसे नहीं जानते थे. संविधान सभा ने जन गण मन को भारत के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया.

Republic Day 2019: भारत के तिरंगे की कहानी, कैसे बना हमारा राष्ट्रीय ध्वज

अर्थ की वजह से बना राष्ट्रगान

राष्ट्रगान अपने अर्थ की वजह से राष्ट्रगान बनाया गया था. इसके कुछ अंशों का अर्थ होता है कि भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है. हे अधिनायक (सुपर हीरो) तुम्हीं भारत के भाग्य विधाता हो. इसके साथ ही इसमें देश के अलग- अलग राज्यों का जिक्र भी किया गया था और उनकी खूबियों के बारे में बताया गया था.

Advertisement

राष्ट्रगान को पूरा गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है जबकि इसके संस्‍करण को चलाने की अवधि लगभग 20 सेकंड है. राष्ट्रगान में 5 पद हैं. रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान को न  केवल लिखा बल्कि उन्होंने इसे गाया भी. इसे आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले मदनपिल्लै में गाया गया था.

राष्ट्रगीत वंदे मातरम्

इस बात से काफी कम लोग ही वाकिफ होंगे कि वंदे मातरम को पहले  राष्ट्रगान बनाने की बात कही जा रही थी. लेकिन फिर इसे देश राष्ट्रगीत बनाने का फैसला किया गया. क्योंकि उसकी शुरुआती चार लाइन देश को समर्पित हैं बाद की लाइने बंगाली भाषा में हैं और मां दुर्गा की स्तुति की गई है. आइए जानते हैं वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रगीत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत क्यों बनाया गया.

ये है इतिहास

वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था. जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी. इसे पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था.

वहीं अगर बांग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाए तो इसका शीर्षक 'वदें मातरम' नहीं बल्कि 'बंदे मातरम्' होना चाहिए क्योंकि हिन्दी और संस्कृत भाषा में 'वंदे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बांग्ला में लिखा गया था और बांग्ला लिपि में 'व' अक्षर है ही नहीं इसलिए बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे 'बन्दे मातरम्' ही लिखा था.

Advertisement

क्या है वन्दे मातरम् का मतलब

संस्कृत में 'बंदे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् कहा गया.

ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना

बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था. ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'. भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया. बंकिमचंद्र उस समय सरकारी नौकरी करते थे. अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement