प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को विपक्षियों पर तंज करते हुए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता- लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं सुनाते हुए अपनी बात रखी. उन्होंने कहा मैं शुरुआत में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता सुनाऊंगा. वही शायद हमारे संस्कार भी हैं और हमारी सरकार का स्वभाव भी है. उसी कारण हम लीक से हटकर तेज गति में बढ़ने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दाग़ देहलवी का ये शेर भी पढ़ा-
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं...
आइए जानते हैं कौन हैं ये शायर और कवि जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधने के लिए लोकसभा में उनकी रचनाएं पढ़ी थीं. यहां हम आपको सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पूरी कविता दे रहे हैं जिसका कुछ अंश पीएम मोदी ने पढ़ा था.
ये है वो कविता
लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं
साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बांस के झुरमुट,
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं
शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयां,
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़,
हिलती क्षितिज की झालरें,
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा,
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल,
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं
लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं
जानें- कौन हैं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 15 सितंबर, 1927 को को हुआ था. वाराणसी और प्रयाग विश्वविद्यालय से शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अध्यापन व पत्रकारिता को अपनाया. आकाशवाणी में सहायक निर्माता; दिनमान की संपादकीय टीम के सदस्य के अलावा पराग के संपादक रहे. उन्हें असली पहचान बतौर साहित्यकार ही मिली.
दिनमान पत्रिका में छपने वाला उनका स्तंभ ‘चरचे और चरखे’ खासा लोकप्रिय हुआ. 24 सितंबर, 1983 को उनका निधन हुआ. पर इससे पहले वह ‘काठ की घाटियाँ’, ‘बाँस का पुल’, ‘एक सूनी नाव’, ‘गर्म हवाएँ’, ‘कुआनो नदी’, ‘कविताएँ-1’, ‘कविताएं-2’, ‘जंगल का दर्द’ और ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ जैसे काव्य संग्रहों और ‘उड़े हुए रंग’ नामक उपन्यास से साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ चुके थे. ‘सोया हुआ जल’ और ‘पागल कुत्तों का मसीहा’ नामक लघु उपन्यास, ‘अंधेरे पर अंधेरा’ संग्रह में उनकी कहानियां संकलित हैं.
साल 1983 में कविता संग्रह ‘खूंटियों पर टंगे लोग’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. उनका लिखा ‘बकरी’ नामक नाटक खासा लोकप्रिय हुआ. बालोपयोगी साहित्य में ‘भौं-भौं-खों-खों’, ‘लाख की नाक’, ‘बतूता का जूता’ और ‘महंगू की टाई’ नामक कृतियां खूब चर्चित रहीं. ‘कुछ रंग कुछ गंध’ शीर्षक से आपका यात्रा-वृत्तांत भी प्रकाशित हुआ. इसके अलावा ‘शमशेर’ और ‘नेपाली कविताएं’ नामक कृतियों का उन्होंने संपादन भी किया.
दिल्ली को दिल में बसाने वाले उर्दू शायर थे दाग देहलवी
प्रधानमंत्री मोदी ने दाग देहलवी का शेर ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं... सुनाकर लोकसभा में अपने विपक्षियों पर प्रहार किया. उर्दू के आला शायर दाग़ देहलवी के बारे में बात करें तो उनका असल नाम नवाब मिर्जा खां था. उनका जन्म 25 मई, 1831 को दिल्ली में हुआ था. उनके पिता का नाम शमसुद्दीन खां था. बताते हैं कि जब दाग छोटे ही थे, तभी पिता की मृत्यु हो गई.
बाद में दाग की मां ने मुगलिया सल्तनत के अंतिम बादशाह बहादुर शाह 'ज़फर' के पुत्र मिर्जा फखरू से शादी कर ली. इसके बाद दाग दिल्ली के लाल किले में रहने लगे. यहां दाग को हर तरह की शिक्षा मिलने लगी. दाग को शायरी का शौक भी यहीं लगा. उन्होंने जौक़ को अपना गुरु बनाया.
उन्होंने अपनी शायर की शख्सियत को दाग नाम दिया, चूंकि वो दिल्ली से थे तो अपना तखल्लुस देहलवी रखा. दाग़ देहलवी ने 1857 की तबाहियों को देखा था. शायद इसीलिए उनकी शायरी में दर्द और नयेपन के मिश्रण मिलता है. उनकी शायरी में दिल्ली की तहजीब भी साफ नजर आती है.
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