आधुनिक गद्य के वरिष्ठ लेखक कृष्ण बलदेव का जन्म पंजाब के दिंगा में 27 जुलाई 1927 को हुआ था. उन्होंने अपनी लेखनी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है. कृष्ण बलदेव की शिक्षा की बात करें तो वो उच्च शिक्षित लेखकों की कड़ी में अग्रणी माने जाते थे. उन्होंने अंग्रेजी से पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद हावर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की पढ़ाई की थी.
उसका बचपन, बिमल उर्फ़ जायें तो जायें कहां, तसरीन, दूसरा न कोई, दर्द ला दवा, गुज़रा हुआ ज़माना, काला कोलाज, नर नारी, माया लोक, एक नौकरानी की डायरी जैसे उपन्यासों से उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई.
उनके द्वारा लिखे कहानी-संग्रहों में; बीच का दरवाज़ा, मेरा दुश्मन, दूसरे किनारे से, लापता, उसके बयान, मेरी प्रिय कहानियां, वह और मैं, ख़ामोशी, अलाप, प्रतिनिधि कहानियां, लीला, चर्चित कहानियां, पिता की परछाइयां, दस प्रतिनिधि कहानियां, बोधिसत्त्व की बीवी, बदचलन बीवियों का द्वीप, संपूर्ण कहानियां, मेरा दुश्मन, रात की सैर आदि महत्त्वपूर्ण हैं.
उनका लिखा उपन्यास 'एक नौकरानी की डायरी' शहरी जीवन के उस उपेक्षित तबके पर केन्द्रित है जिसकी समस्याओं पर हम संवेदनशील तरीके से कभी बात नहीं करते मगर जिसके बिना हमारा काम भी नहीं चल पाता.
शहरी घरों में रसोई, बच्चों की देखभाल और सफाई इत्यादि करने वाली नौकरानियों की रोजमर्रा की जिन्दगी और उनकी मानसिकता इसका केन्द्रीय विषय है. एक युवा होती नौकरानी की मानसिक उथल–पुथल को वैद ने इस उपन्यास में बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है.
डायरी शैली में लिखे इस उपन्यास के माध्यम से वैद ने बड़ी कुशलता पूर्वक से इस उपेक्षित वर्ग के साथ-साथ हमारे कुलीन समाज की विडम्बना को भी पहचानने–परखने का अवसर दिया है. उपन्यास की नायिका शानो हिंदी साहित्य का वह चरित्र है जिसे पाठक हमेशा याद रखेंगे.
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