पढ़िए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 5 कविताएं

राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा- तड़प रहा आंखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान

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रामधारी सिंह दिनकर रामधारी सिंह दिनकर

प्रियंका शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 24 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

ऐसी कविताएं जो मन को आंदोलित कर दे और उसकी गूंज सालों तक सुनाई दे. ऐसा बहुत ही कम हिन्दी कविताओं में देखने को मिलता है. कुछ कवि जनकवि होते हैं तो कुछ को राष्ट्रकवि का दर्जा मिलता है मगर एक कवि राष्ट्रकवि भी हो और जनकवि, यह इज्जत बहुत ही कम कवियों को नसीब हो पाती है. रामधारी सिंह दिनकर ऐसे ही कवियों में से एक हैं जिनकी कविताएं किसी अनपढ़ किसान को भी उतनी ही पसंद है जितनी कि उन पर रिसर्च करने वाले स्कॉलर को.

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दिनकर की कविता इस समय भी उतनी ही प्रासंगिक मालूम होती है, जितनी कि उस दौर में जब वह लिखी गई थी. आज समय भले ही बदल गया हो लेकिन परिस्थितियां अभी भी वैसी ही हैं.उनका जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले में हुआ था. उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते हैं. उनका निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ था. आज भले ही वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी कविताएं सदा के लिए अमर है. पेश हैं उनकी 5 प्रसिद्ध कविताएं.

1. कलम, आज उनकी जय बोल

जला अस्थियाँ बारी-बारी

चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर

लिए बिना गर्दन का मोल

कलम, आज उनकी जय बोल.

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2. हमारे कृषक

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जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है

छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है

वसन कहां? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है

3. भारत का यह रेशमी नगर

भारत धूलों से भरा, आंसुओं से गीला, भारत अब भी व्याकुल विपत्ति के घेरे में.

दिल्ली में तो है खूब ज्योति की चहल-पहल, पर, भटक रहा है सारा देश अँधेरे में.

रेशमी कलम से भाग्य-लेख लिखनेवालों, तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोये हो?

बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में, तुम भी क्या घर भर पेट बांधकर सोये हो?

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4. परशुराम की प्रतीक्षा

हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?

हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?

यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?

दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें

पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,

हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है

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5. समर शेष है....

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो,

किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?

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किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,

भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊं किसको कोमल गान?

तड़प रहा आंखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान.

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