कौन हैं वो मराठा शासक, जिन्होंने आंबेडकर को 'आंबेडकर' बनने में की मदद

देश में दलित चेतना आंदोलन की जो लौ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने जलाई, उसे आज भी उन्हें मानने वाले आगे बढ़ा रहे हैं. आइए 14 अप्रैल डॉ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कई खास पहलू.

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बाबा साहेब व बड़ौदा महाराज बाबा साहेब व बड़ौदा महाराज

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST

  • 9 भाषाओं के जानकार थे भीमराव आंबेडकर
  • भीमराव आंबेडकर ने हासिल कीं 32 डिग्रियां

32 डिग्र‍ियां कमाने वाले और 9 भाषाओं के जानकार बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जन्म आज ही के दिन 14 अप्रैल 1891 में हुआ था. भारतीय संविधान की रीढ़ रहे बाबा साहेब देश के पहले कानून मंत्री भी थे. उन्होंने देश में दलित चेतना आंदोलन की जो लौ जलाई, उसे आज भी उन्हें मानने वाले आगे बढ़ा रहे हैं. आइए जानते हैं बाबा साहेब के जीवन से जुड़े कई खास पहलू.

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बता दें कि उनका जन्म इंदौर के पास स्थित महू में हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां का नाम भीमाबाई था. वो अपने माता-पिता की 14वीं व अंतिम संतान थे. मराठी मूल का उनका परिवार कबीर पंथ को मानता था. परिवार वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गांव का रहने वाला था.

बाबा साहेब मूल रूप से हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो तब अछूत कही जाती थी. इसके चलते उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था. बता दें कि भीमराव आंबेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे. उनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे, आगे काम करते हुए वो सूबेदार के पद तक पहुंचे थे. उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी.

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फिर 7 नवंबर 1900 को रामजी सकपाल ने स्कूल में अपने बेटे भीमराव का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर लिखवाया. भिवा उनके बचपन का नाम था. मूल उपनाम सकपाल की बजाय पिता ने आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि उनके आंबडवे गांव से होने के कारण था. बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण टीचर कृष्णा महादेव आंबेडकर जो भीमराव से विशेष स्नेह रखते थे. उन्होंने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया.

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फिर रामजी सकपाल परिवार के साथ बंबई (अब मुंबई) चले आए. अप्रैल 1906 में लगभग 15 साल की उम्र में नौ साल की रमाबाई से उनकी शादी करा दी गई. बता दें कि उन दिनों भारत में बाल-विवाह का प्रचलन था.

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इस तरह आंबेडकर ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी में मैट्रिक में एडमिशन लिया. साल 1913 में उनके ग्रेजुएशन के दौरान पिता का देहांत हो गया. ऐसे कठ‍िन वक्त में भी वो पढ़ते रहे और बड़ौदा महाराज की ओर से चलाई जाने वाली स्कॉलरशिप की मदद से कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए अमेरिका गए.

बता दें कि सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय मराठा शासक थे जो युवाओं की श‍िक्षा पर विशेष रूप से ध्यान देते थे. बता दें कि उनकी ही एक योजना की मदद से बाबा साहेब न्यूयॉर्क शहर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए गए. यहां उनको तीन साल के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी.

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32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के थे जानकार

बाबा साहेब आंबेडकर 32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के जानकार थे. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी. यहां से उन्होंने 'डॉक्टर ऑल साइंस' नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की थी. इसके बाद प्रथम विश्व युद्ध की वजह से वो वतन लौटे. यहां पहली नौकरी बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में शुरू की.

फिर बाद में उनको सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गई. बताते हैं कि इसके बाद कोल्हापुर के शाहू महाराज की मदद से एक बार फिर वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए.

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