कोरोना ने सोली सोराबजी के रूप में देश से एक और नायाब जीवित विरासत छीन ली. उन्होंने देश के लिए पूरी तत्परता से काम करते हुए हमेशा अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. वो 91 वर्ष के थे, हमेशा हर कानूनी लड़ाई जीतने वाले सोली सोराबजी मौत से नहीं जीत नहीं पाए.
बता दें कि सोराबजी का जन्म मार्च 1930 में एक पारसी परिवार में हुआ था. उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई और गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई से अपनी पढ़ाई खत्म करके 1953 में बार में भर्ती हुए. साल 1977-80 तक वह देश के सॉलिसिटर जनरल रहे. वो अटॉर्नी जनरल के पद पर दो बार रहे. इसके बाद वह 1989-1990 और 1998-2004 के बीच वह दो बार अटार्नी जनरल भी रहे. मार्च 2002 में उन्हें मानव अधिकारों की रक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
मार्च 2006 में ऑस्ट्रेलिया और भार के बीच बाईलैटरल लीगल रिलेशंस की सर्विस के लिए उन्हें ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया के ऑनरेरी मेंबर चुना गया. साल 1997 में यूनाइटेड नेशंस ने उन्हें नाइजीरिया में मानवाधिकारों की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए विशेष प्रतिवेदक नियुक्त किया.
इसके अलावा वे 1998-2004 के बीच मानवाधिकारों की रक्षा और इसे बढ़ावा देने के लिए बनी यूएन-सब कमीशन के चेयरमैन रहे. उन्होंने केशवानंद भारती, मेनका गांधी, एसआर बोम्मई, आईआर कोएल्हो इत्यादि के मामलों की सुनवाई में शामिल रहे.
वह बीपी सिंघल के केस के लिए सुनवाई में भी पेश हुए जिसकी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बिना किसी ठोस वजह से राज्यों को गवर्नर को हटाया नहीं जा सकता. वहीं साल 2000-2006 के बीच हेग में स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के सदस्य के तौर पर उन्होंने काम किया.
बता दें कि भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का निधन हो गया है. वरिष्ठ वकील, पूर्व अटॉर्नी जनरल और पद्म विभूषण सोली सोराबजी का निधन कोरोना से संक्रमित होने के बाद आज सुबह हो गया. वह 1989 से 90 और फिर 1998 से 2004 तक देश के अटॉर्नी जनरल थे.
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