बेटों की खातिर सबकुछ छोड़कर कोटा में दो साल से एक हॉस्टल में वार्डन की नौकरी कर रहा पिता, NEET है सपना

कोटा में सपने पूरे करने के लिए सिर्फ बच्चे ही नहीं कई माता-पिता भी संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे ही एक पिता की कहानी आज हम आपको बता रहे हैं, कैसे उसने अपने बच्चों के भविष्य के लिए न सिर्फ अपना गांव छोड़ा बल्क‍ि वहां खेत भी बेच दिए और सबकुछ छोड़कर दो साल से कोटा में रह रहा है.

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कोटा में बेटों के साथ संघर्ष कर रहा ये पिता कोटा में बेटों के साथ संघर्ष कर रहा ये पिता

चेतन गुर्जर

  • कोटा ,
  • 29 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:28 PM IST

कोचिंग हब कोटा एक ऐसा शहर है जहां पूरे देश में सबसे ज्यादा मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए छात्र-छात्राएं आते हैं. ये शहर धीरे धीरे और बड़ी पहचान इसलिए बनाता गया क्योंकि सबसे ज्यादा मेडिकल और इंजीनियर की टॉप रैंक भी कोटा से आती है. देश के प्रधानमंत्री खुद कहते हैं कि कोटा शिक्षा की काशी बन गया है. जिसके दिलोदिमाग में करियर की प्राथमिकता है वह कोटा को पसंद करता है. वो कोटा में रहेगा, कोटा में पढ़ेगा और कोटा से अपनी जिंदगी बना लेगा. 

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बेटों के लिए छोड़ा गांव  
राजस्थान का एक छोटा सा शहर आज श‍िक्षा नगरी बन गया है. कोटा में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपना सब कुछ छोड़कर अपने बच्चों के करियर के लिए अपने बीवी बच्चों को लेकर घर बार सब छोड़कर कोटा में आकर काम कर रहे हैं. उनका बस एक ही ध्येय है कि वो अपने बच्चों की जिंदगी बना सकें. ऐसी ही एक कहानी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव से कोटा आकर एक हॉस्टल में काम कर करके अपने बच्चों को पढ़ा रहे पिता की है. वो पिछले 2 साल से कोटा में रहकर काम कर रहे हैं. 

एक बच्ची ने नीट निकाला तो मिली प्रेरणा 
महाराष्ट्र हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव धनगर वाडी के रहने वाले केदार रामदास कोरडे दो साल पहले अपने दो बेटों को लेकर कोटा आए थे. केदार ने बताया कि मैं एक अल्प भूधारक किसान हूं. मेरे दो बच्चे हैं और मैं 2022 में मेरी पत्नी और मेरे दोनों बच्चों को लेकर कोटा आया था. मेरा एक बेटा 14 साल का है और दूसरा 17 साल का, मेरा बड़ा बेटा नीट की तैयारी कर रहा है और छोटा बेटा 9th क्लास में है. 

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वो बताते हैं कि मेरी स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं कोटा जाऊं और मेरे बच्चों को पढ़ा सकूं. मैं एक गरीब किसान हूं. मेरे बेटे जिस स्कूल में पढ़ते थे,  उस स्कूल की एक बच्ची की 2020 में नीट यूजी में ऑल इंडिया रैंक 17 आई थी. तब मैंने सोचा कि चाहे जो भी हो मुझे मेरे बच्चों को पढ़ाना है, नहीं तो मेरे बच्चे भी मेरी तरह किसान ही बनकर रह जाएंगे. लेकिन, मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं कोटा में अपने बच्चों को पढ़ा सकता, उसके बाद मैंने अपनी ढाई बीघा जमीन बेच दी. मैं कभी नहीं चाहता था कि अपनी जमीन बेच दूं पर क्या करता दूसरा कोई रास्ता नहीं था. 

वो जमीन बेच दी, जिससे हमारा गुजारा होता था
केदार कहते हैं कि जमीन बेचने में दुखी तो बहुत हुआ कि मैंने अपनी ढाई बीघा जमीन बेच दी जिससे मेरा घर का गुजारा होता था, और बच्चे और बीवी को लेकर कोटा आ गया. उसके बाद भी जब पढ़ाई के लिए पैसा कम पड़ा तो बची खुची जमीन पर भी बैंक से लोन लेना पड़ा. कोटा आने के बाद मैंने सोचा कि मैं क्यों ना कोई नौकरी भी यहां कर लूं जिससे घर खर्च चल जाए और किराए में रह रहे घर का किराया दे सकूं. पहले तो काफी दिन तक नौकरी के लिए भटकता रहा, आखिरकार एक हॉस्टल में मुझे वार्डन की नौकरी मिल गई. 

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मैंने पहले सोचा था कि बच्चों को अकेले कोटा भेज दूं, लेकिन फिर तमाम ख्याल मन में आने लगे. तब मैंने सोचा कि जब उनके लिए इतना कुछ कर रहा हूं तो क्यों ना हम साथ रहें. हम उनको सपोर्ट करें तो उनको अकेलापन महसूस ना हो और वह अच्छे से पढ़ सकें. अच्छा होगा कि बेटे डॉक्टर और इंजीनियर बन जाएं नहीं तो मेरी तरह किसान बनकर रह जाते. अब मुझे उम्मीद है कि वह कुछ कर कर दिखाएंगे. उनकी पढ़ाई काफी अच्छे से चल रही है. मेरा बड़ा बेटा मेडिकल की तैयारी कर रहा है और 2024 में वह नीट यूजी का एग्जाम देगा. वहीं मेरा छोटा बेटा 9th क्लास में है, अभी 3 साल और मुझे कोटा में ही रहना है. 

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