पहलगाम आतंकी हमले के बाद से पाकिस्तान में डर का माहौल है. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का माहौल है. 22 अप्रैल को हुए इस आतंकी हमले में 26 निर्दोष सैलानियों की मौत हो गई थी, जिसे लश्कर-ए-तैयबा के पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने अंजाम दिया था. इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कठोर कूटनीतिक कदम उठाए हैं, जिनमें सबसे बड़ा फैसला 1960 का सिंधु जल संधि को निलंबित करना है. साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि पहलगाम में निर्दोष नागरिकों की हत्या में शामिल आतंकियों और उनके आकाओं, इस हमले के साजिशकर्ताओं को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी. पाकिस्तान को इस बात का डर है कि भारत की तरफ से किसी भी वक्त हमला किया जा सकता है. जंग की बात करें तो क्या आप जानते हैं कि किसी भी जंग में कौन सी रेजिमेंट सबसे पहले जाती है और सबसे आखिरी में वापस आती है.
सबसे पहले जंग में जाते हैं मद्रास रेजिमेंट
आपको बता दें कि किसी भी जंग के ऐलान के बाद सबसे पहले मद्रास इंजीनियर ग्रुप (एमईजी) पहुंचते हैं. इसे अनौपचारिक रूप से मद्रास सैपर्स के नाम से भी जाना जाता है. यह इंडियन आर्मी का एक इंजीनियर ग्रुप है. यह दुनिया की सबसे पुरानी रेजिमेंट्स में से एक है. इसका हेडक्वार्टर बेंगलुरु में है. मद्रास सैपर्स का गठन 30 सितंबर,1780 को किया गया था. इस रेजिमेंट की शुरुआत पायनियर से हुई था. ऐसा कहा जाता है कि जब अंग्रेज यहां आए तो बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना की गई. वहां से पायनियर शब्द इंजीनियर्स में बदल गया और इंजीनियर्स शब्द इसके साथ जुड़ गया. मद्रास सैपर्स कोर ऑफ इंजीनियर्स के तीन समूहों में सबसे पुराने हैं.
बेंगलुरु में है रेजिमेंट का मुख्यालय
भारतीय सेना के कोर ऑफ इंजीनियर्स का एक इंजीनियर समूह है. मद्रास सैपर्स की उत्पत्ति ब्रिटिश राज की तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी सेना से हुई है. इस रेजिमेंट का मुख्यालय बेंगलुरु में है. मद्रास सैपर्स कोर ऑफ इंजीनियर्स के तीन समूहों में सबसे पुराने हैं. मद्रास सैपर्स मद्रास प्रेसीडेंसी सेना की एकमात्र रेजिमेंट थी जो 1862 और 1928 के बीच हुए व्यापक पुनर्गठन से बच गई. मद्रास सैपर्स के सैनिकों को लोकप्रिय रूप से थम्बिस के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने अपनी पहचान शाको के साथ 200 से अधिक वर्षों तक दुनिया भर के कई युद्ध क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान बनाई है.
क्या है मद्रास सैपर्स?
मद्रास सैपर्स का गठन 30 सितंबर, 1780 को किया गया था. इसकी शुरुआत पायनियर से हुई. जब अंग्रेज यहां आए. बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना की गई.वहां से पायनियर शब्द इंजीनियर्स में बदल गया और इंजीनियर्स शब्द इसके साथ जुड़ गया. अब जानते हैं सैपर्स क्या होता है.
कैसा दिया गया ये नाम?
पहले के जमाने में किले बनाने से पहले उसके चारों ओर गहरी खाई खोदी जाती थी, ताकि दुश्मन उसे पार कर अंदर न आ सके. इसलिए जब भी दुश्मन हमला करते थे, तो उन्हें इसे पार करना मुश्किल होता था. इसलिए जब इंजीनियर आए तो उन्होंने इन खाईयों को पार करने के अलग-अलग तरीके अपनाए. ऐसे में जो भी इन खाईयों को हर मुश्किल झेलते हुए भी पार कर जाता था, उन्हें सैपर्स नाम दिया गया. इस तरह सैपर्स शब्द अस्तित्व में आया.
जंग में सबसे पहले जाते हैं और आखिर में निकलते हैं
ब्रिटिश शासन में मद्रास प्रेसीडेंसी के समय से इस रेजिमेंट का मुख्यालय बेंगलुरु में है. इंजीनियर्स एक लड़ाकू सहायता शाखा है. इस रेजिमेंट के लड़ाके युद्ध के मैदान में सबसे पहले प्रवेश करते हैं और युद्ध के मैदान को सबसे आखिर में छोड़ते हैं. इनका आदर्श वाक्य 'सर्वत्र' है. यानी ये हर जगह मौजूद होते हैं. ब्रिटेन रॉयल इंजीनियर का आदर्श वाक्य लैटिन शब्द 'यूबिक' से प्रेरित है. सर्वत्र का का अर्थ है 'हर जगह' और इसे सही साबित करते हुए मद्रास सैपर्स रेजिमेंट ने हर जगह लड़ाई लड़ी है, जहां भारतीय सेना ने युद्ध में प्रवेश किया है.
सबसे जल्दी तैयार कर लेते हैं पुल
ये रेजिमेंट जल्दी से जल्दी पुल तैयार करने के लिए जानी जाती है. इनका काम होता है जंग में अपनी सेना की मदद के लिए गलियां और पुल बनाना और दुश्मन सेना के लिए रुकावट खड़ी करना. ये रेजिमेंट पानी, बिजली और आवास तीनों बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में माहिर होते हैं, ताकि जवान मोर्चे पर डटे रहे.
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