कई पार्टियों में रहे, विधायक से राज्यपाल तक... राजनीति में ऐसा रहा सत्यपाल मलिक का सफर

Satyapal Malik Death: सत्यपाल मलिक, एक ऐसे राजनीतिज्ञ जिन्होंने अपने करियर में कई पार्टियों और बड़े पदों पर काम किया. छात्र नेता से लेकर केंद्र में मंत्री और राज्यों के राज्यपाल तक का उनका सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा.

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 सत्यपाल मलिक ने कई पार्टियों और बड़े पदों पर काम किया. (Photo: ITG) सत्यपाल मलिक ने कई पार्टियों और बड़े पदों पर काम किया. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 3:50 PM IST

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक नहीं रहे. 79 की आयु के बाद सत्यपाल मलिक ने राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली. वे जम्मू कश्मीर राज्य के अंतिम राज्यपाल रहे, जिसे बाद में दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया गया. सत्यपाल मलिक कई पार्टियों से जुड़े रहे और उनकी पहचान ऐसे राज्यपाल के रुप में रही, जिन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान दिए और कई सवाल उठाए. ऐसे में जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...

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छात्र राजनीति से शुरू हुआ सफर

उत्तर प्रदेश के बागपत से आने वाले सत्यपाल मलिक ने 1968-69 में छात्र नेता के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. चौधरी चरण सिंह से नजदीकी के कारण उन्होंने 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत से विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने. 1980 में चरण सिंह के लोक दल ने उन्हें राज्यसभा भेजा. इसके बाद, 1984 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और 1986 में एक बार फिर राज्यसभा पहुंचे.

बोफोर्स के बाद वीपी सिंह से जुड़े

राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान 'बोफोर्स घोटाले' के बाद मलिक ने 1987 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और 'वीपी सिंह' के जनता दल में शामिल हो गए. 1989 में जनता दल के टिकट पर उन्होंने अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता और 1990 में संसदीय मामलों और पर्यटन के लिए केंद्रीय राज्यमंत्री बने.

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2004 में बीजेपी में शामिल हुए

2004 में वह बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन लोकसभा चुनाव में बागपत से 'रालोद प्रमुख अजीत सिंह' से हार गए. 'मोदी सरकार' के पहले कार्यकाल में, मलिक को भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विचार करने वाली संसदीय टीम का प्रमुख बनाया गया. उनकी समिति ने इस विधेयक के खिलाफ अपनी राय दी, जिसके बाद सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया.

2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया, और 2018 में जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा गया. यह पहले ऐसे राजनेता थे जिन्हें कश्मीर में उग्रवाद शुरू होने के बाद राज्यपाल बनाया गया था. उन्हीं के कार्यकाल में 'अनुच्छेद 370' को खत्म किया गया था.

मेघालय के राज्यपाल रहते हुए मलिक ने कश्मीर जलविद्युत परियोजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. उन्होंने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार 'पुलवामा हमले' में जवाबदेही तय करने में विफल रही है. 

इन अहम पदों पर रहे

1974-77: उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य (बागपत)

1980-84: संसद सदस्य (राज्यसभा)

1986-89: संसद सदस्य (राज्यसभा)

1989-1991: संसद सदस्य (लोकसभा, अलीगढ़)

1989-90: सदस्य - सभापति (राज्यसभा) और अध्यक्ष (लोकसभा) के पैनल सदस्य

21 अप्रैल 1990 से 10 नवंबर 1990 तक केंद्रीय संसदीय कार्य और पर्यटन राज्य मंत्री

2017– बिहार के राज्यपाल

2018 – जम्मू कश्मीर के राज्यपाल

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किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरा

फरवरी 2021 के बाद मलिक केंद्र सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे. इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने 'कृषि कानूनों' के खिलाफ प्रदर्शनों को लेकर सरकार की आलोचना की. 

अरविंद केजरीवाल ने दी श्रद्धांजलि

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के निधन पर AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दुख जताया. उन्होंने X पर लिखा कि वे न सिर्फ एक अनुभवी राजनेता थे, बल्कि देशहित के मुद्दों पर निडर होकर अपनी बात कहने वाले विरले नेताओं में से एक थे.

राजनीति से दूरी, पर मेंटर की भूमिका

अक्टूबर 2022 में मेघालय के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने यूपी के बुलंदशहर में सेना की 'अग्निपथ योजना' की भी आलोचना की थी. बागपत के हिसवाडा गांव में उन्होंने घोषणा की कि वह राजनीति में सक्रिय नहीं रहेंगे, लेकिन 'आरएलडी' और 'समाजवादी पार्टी' के लिए एक "मेंटर" की तरह काम करेंगे और किसानों के लिए लड़ेंगे. 

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