Indian Railways: आखिर क्यों यात्रियों को शताब्दी में मिलता है आधा लीटर पानी, और राजधानी में 1 लीटर?

शताब्दी, राजधानी, तेजस जैसी ट्रेनों में यात्रियों को पानी की बोतल रेलवे द्वारा दी जाती है. अगर आपने भी कभी इन ट्रेनों से सफर किया होगा तो शायद इस बात पर गौर किया होगा कि शताब्दी में यात्रियों को आधे लीटर की बोतल दी जाती है, वहीं, बाकी ट्रनों में 1 लीटर. क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है?

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Indian Railways (Representational Image) Indian Railways (Representational Image)

वरुण सिन्हा

  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:00 PM IST

भारतीय रेल में जब भी आप सफर करते होंगे तो पीने के लिए पानी रेल नीर के तौर पर आपको मिलता है. राजधानी हो या शताब्दी या फिर तेजस या फिर वंदे भारत, पानी की व्यवस्था रेलवे के द्वारा यात्रियों के लिए की जाती है. लेकिन आपने शायद कभी इस बात पर गौर नहीं किया होगा की इन ट्रेनों में पानी की बोतल, जो रेलवे की तरफ से दी जाती है, उसमें राजधानी और शताब्दी में कुछ अंतर है. आइए जानते हैं क्या अंतर है और क्यों ये अंतर है. 

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असल में शताब्दी को लेकर रेलवे ने एक सर्कुलर 2016 में जारी किया और कहा 5 घंटे तक के सफर में केवल आधे लीटर या 500 एमएल की पानी की बोतल यात्रियों को दी जाएगी, उसके बाद इस सर्कुलर में संशोधन करके 2019 में शताब्दी के लिए आधे लीटर पानी की बोतल ही देने की सुविधा कर दी गई जो अब तक बद्दस्तूर जारी है आपने जब भी शताब्दी में सफर किया होगा तो आपको आधे लीटर की पानी की बोतल ही रेलवे की तरफ से मिलती है. 

हालांकि, बाकी ट्रेनों में ऐसा नहीं है. अगर आप राजधानी में सफर करें, या फिर वंदे भारत या तेजस में हर किसी में पानी की एक लीटर की बोतल देने की व्यवस्था है. अब सवाल उठता है की आखिर शताब्दी और बाकी ट्रेनों में यात्रियों की मूलभूत पानी की सुविधा में कटौती क्यों? चलिए समझते हैं.  

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इस मामले में रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है  मौजूदा समय में शताब्दी में यात्रियों को 500 मिली लीटर रेल नीर की बोतल ही मुहैया कराई जाती है  क्योंकि बड़ी बोतल देने पर पानी की बर्बादी होती है.असल में मंत्रालय का इस मामले में तर्क ये है कि शताब्दी चेयर कार ट्रेन है जो छोटी दूरी को तेज रफ्तार से तय करने के लिए चलाई गई थी, शताब्दी के सारे सफर लगभग 5 से 6 घंटे में पूरे हों जाते है. इस श्रेणी की ट्रेनों में दिल्ली से भोपाल जाने वाली शताब्दी का सफर सबसे लंबा है जिसे यह साढ़े आठ घंटे में तय कर लेती है. 

आखिर क्यों लिया गया था ये फैसला
रेलवे के अधिकारियों का कहना कि असल में शताब्दी में पानी की वेस्टेज को रोकने के लिए ये निर्णय लिया गया था. दूसरा इससे पालस्टिक की बोतल यानी कि वेस्ट मैटीरियल में भी कमी आई है. मान लीजिए किसी को दिल्ली से चंडीगढ़ जाना है तो शताब्दी में तो  500 एमएल पानी है और साथ में उसको 200 एमएल जूस भी दिया जाता है. 

केवल शताब्दी क्यों बाकी ट्रेनों में क्यों नहीं
हमने रेलवे के अधिकारियों से ये जानने का प्रयास किया कि कई ट्रेनों की समय अवधि तो शताब्दी के बराबर है तो फिर आखिर सुविधाओ में अंतर क्यों? इस सवाल के जवाब में बताया गया की कोई भी पॉलिसी रूट या एक ट्रेन के लिए नहीं बनाई जा सकती है . वंदे भारत, राजधानी , तेजस इसमें कई ट्रेनें 12 से 15 घंटे से ज्यादा तक सफर तय करती हैं तो ऐसे में केवल एक रूट को लेकर ट्रेन की सुविधाओं में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है.  

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क्या शताब्दी की तरह बाकी ट्रेनों में मिलेगा केवल आधा लीटर पानी?
इसके जवाब में रेलवे के अधिकारियों ने कहा की इस तरह का फैसला रेलवे बोर्ड के जरिए लिया जाता है. अगर भविष्य में रेलवे बोर्ड को लगेगा की पानी की बर्बादी और वेस्ट मैटेरियल को रोकने के लिए कुछ रूट पर ये व्यवस्था दी जाए तो इस पर आगे फैसला हो सकता है पर ये रेलवे की द्वारा बनाई गई विभिन्न कमेटी के ऊपर निर्भर करता है. 

 

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