टेंट में लगी थी इस IIT की पहली क्लास, अंग्रेजों ने रखी थी देश के पहले इंजीनियरिंग संस्थान की नींव, दिलचस्प है ये कहानी

देश के पहले इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी रुड़की के स्थाप‍ित होने की कहानी काफी दिलचस्प है. अंग्रेजों ने इसे देश में अकाल पड़ने पर और कई लोगों की मौत के बाद जरूरत पड़ने पर बनाया था. इसकी पहली क्लास टेंट में लगी थी.

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IIT Roorkee IIT Roorkee

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2024,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST

History of IIT Roorkee: आज देश इंजीनियरिंग और प्रौद्योग‍िकी के क्षेत्र में काफी तरक्की कर चुका है. मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, सिविल, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर, ऐसे कोई क्षेत्र नहीं है, जहां इंजीनियर्स की जरूरत ना पड़ती हो. सुरंग, सड़कें, हाइवे, इमारतों के डिजाइन और निर्माण में इंजीनियर्स कमाल कर रहे हैं. लेकिन क्या जानते हैं कि वो कौन-सा पल था जब देश को लगा कि इंजीनियर्स के बिना विकास अधूरा है, कब देश को इंजीनियर्स की कमी महसूस हुई और कब देश का पहला इंजीनियरिंग संस्थान बनाया गया? यह एक रोचक किस्सा है, आइए जानते हैं.

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की (IIT Roorkee) देश का पहला इंजीनियरिंग संस्थान है. इसकी कहानी तब शुरू होती है जब देश में अंग्रेजों का शासन हुआ करता था. यह बात 187 साल पुरानी है, उस दौरान ब्रिटिश राज के हुकुम और फैसले चला करते थे. इस समय में देश के अंदर कई नई इमारते और संसाधन बनकर तैयार हुए हैं, जिनमें से एक है आईआईटी रुड़की.

लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन ने रखा था सिविल इंजीनियर्स का पहला प्रस्ताव

सन् 1837-38 के दौरान आगरा जिले में अकाल पड़ गया था, पानी की कमी से खेत-खलिहान सूखे पड़े थे, इस वजह से कई लोगों की मौत ने सभी को दहशत में डाल दिया था. स्थिति को देखते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी को लगा कि मेरठ-इलाहाबाद जोन में एक सिंचाई व्यवस्था होनी चीहिए ताकि जरूरतमंद इलाकों में पानी पहुंचाया जा सके. इस काम के लिए कर्नल कॉटले को यह जिम्मेदारी दी गई कि वह एक कैनाल बनाए जो अलग-अलग इलाकों में पानी पहुंचाए. इसके बाद उत्तर पश्चिमी राज्यों के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन को सलाह दी कि स्थानीय लोगों को सिविल इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग देनी चाहिए, अगर स्थानीय लोग इंजीनियरिंग में सक्षम होंगे, तब किसी भी तरह का निर्माण करना आसान होगा.

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टेंट में लगी थी पहली क्लासेस

यह बातें चल ही रही थीं कि कोलकाता से दिल्ली के लिए बन रही ग्रैंड ट्रंक रोड (GT Road) के लिए इंजीनियरिंग की भी जरूरत पड़ने लगी. तब ही अंग्रेजों को लगा कि देश में हर क्षेत्र के विकास के लिए इंजीनियर्स होना जरूरी हैं. इसके बाद 1845 में भी गंगा कैनाल बनवाया जा रहा था, इस दौरान इंजीनियर्स की जरूरत पूरी करने के लिए टेंट लगाकर 20 भारतीय को इंजीनियरिंग सिखाई जाने लगी.


 

कुशल इंजीनियर्स की जरूरत पड़ने पर शुरू हुई थी भारतीयों की इंजीनियरिंग

सन 1845 में ‘गंगा कैनाल’ का निर्माणकार्य तेज़ी से चल रहा था. ऐसे में कुशल इंजीनियरों की ज़रूरत पूरी करने के लिए सन 1846 में सहारनपुर में टेंट लगाकर 20 भारतीय छात्रों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला दिया गया. जब पढ़ाई शुरू हुई तो नयी परेशानियां और चैलेंज सामने आए, इसके बाद यह पाया गया कि टेंट लगाकर पढ़ाई करवाने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए प्रॉपर इंफ़्रास्ट्रक्चर और सभी जरूरी उपकरणों की जरूरत है. इसको देखते हुए देश में इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने का फैसला लिया गया.

जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के बाद लिया था यह अहम फैसला

23 सितंबर 1847 को ‘रुड़की कॉलेज’ के तौर पर देश के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की नींव रखी गई. कॉलेज में दाखिले हुए, शिक्षकों को और स्टूडेंट्स से आवेदन मांगे गए. उपकरण, क्लासेस आदि चीजें तैयार की गईं. अभी तक इसे एक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं मिला था. सन 1948 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) ने अधिनियम संख्या IX के द्वारा कॉलेज के प्रदर्शन और स्वतंत्रता के बाद के भारत निर्माण के कार्य में इसकी क्षमता को ध्यान में रखते हुए इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया. 

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कब मिला IIT नाम 

देश की आजादी के बाद सन् 1949 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रुड़की कॉलेज को आजाद भारत के पहले विश्वविद्यालय का दर्जा दिया. 21 सितंबर 2001 को इस विश्वविद्यालय को लेकर अहम फैसला लिया गया है. इस दिन संसद में एक विधेयक पारित हुआ कि रुड़की विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया जाना चाहिए. सभी की सहमति और चर्चा करने के बाद यह तय हुआ कि रुड़की कॉलेज का नाम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-रुड़की कर दिया जाए. आज भी यह विश्वविद्यालय ना जाने कितने इंजीनियर्स को तैयार कर रहा है और ना जाने कितने कुशल इंजीनियर्स को तैयार कर चुका है. 

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