क्या नेहरू की बहन विजयालक्ष्मी जानती थीं नेताजी का पता?

Subhas Chandra Bose Birth Anniversary विजयलक्ष्मी पंडित के पास थी सुभाष चंद्र बोस के जिंदा होने की जानकारी... जानें- क्या है पूरा सच

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सुभाष चंद्र बोस सुभाष चंद्र बोस

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 8:12 AM IST

23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में ‘सुभाष चंद्र बोस’ का जन्म हुआ था. आज उनकी 122वीं जयंती है. आज भी लोग उन्हें ‘नेताजी’कहकर बुलाते हैं. अपने क्रांतिकारी तेवर से ब्रिटिश राज को हिलाकर रख देने वाले सुभाष चंद्र बोस की मौत रहस्य बनी हुई है.

देश की आजादी में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. आजादी की लड़ाई के लिए उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था, उनके संघर्षों और देश सेवा के जज्बे के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा था.

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23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में जन्में सुभाष के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था. जानकीनाथ कटक के मशहूर वकील थे. बता दें, वह 14 भाई-बहन थे जिनमें उनके माता-पिता के 6 बेटियां और 8 बेटे थे. सुभाष अपने माता-पिता की नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे .

यहां की पढ़ाई

सुभाष ने कटक में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने रेवेनशा कॉलिजियेट स्कूल में दाखिला लिया. जिसके बाद उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी ( अब कोलकाता) से पढ़ाई की. 1919 में बीए की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी से पास की, यूनिवर्सिटी में उन्हें दूसरा स्थान मिला था. उनके पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें. उन्होंने अपने पिता की यह इच्छा पूरी की. 1920 की आईसीएस परीक्षा में उन्होंने चौथा स्थान हासिल किया. लेकिन सुभाष का मन  अंग्रेजों के अधीन काम करने का नहीं था. 22 अप्रैल 1921 को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया.

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गांधी से जब हुई पहली मुलाकात

महात्मा गांधी ने सुभाष चंद्र बोस को देशभक्तों का देशभक्त कहा था. उनकी पहली मुलाकात गांधी जी से 20 जुलाई 1921 को हुई थी.  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए उन्होंने काम गांधी जी की सलाह पर ही करना शुरू किया था.

'युवक-दल' की स्थापना

भारत की आजादी के साथ-साथ उनका जुड़ाव सामाजिक कार्यों में भी बना रहा. बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का साहसपूर्ण काम किया था. समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिए उन्होंने 'युवक-दल' की स्थापना की.

11 साल जेल

अपने पूरे जीवन में सुभाष को कुल 11 बार जेल की हवा खानी पड़ी. सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 को 6 महीने की सजा सुनाई गई. 1941 में एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें कलकत्ता (अब कोलकाता) की अदालत में पेश होना था, तभी वे अपना घर छोड़कर चले गए और जर्मनी पहुंच गए. जर्मनी में उन्होंने हिटलर से मुलाकात की. अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और युवाओं को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा भी दिया.

मौत का रहस्य

बताया जाता है 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे. इस सफर के दौरान ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उनकी मौत हो गई. उनकी मौत भारत के इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य बनी हुई है. उनकी रहस्यमयी मौत पर समय-समय पर कई तरह की अटकलें सामने आती रहती हैं. आज भी ये गुत्‍थी  सुलझ नहीं सकी है.

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विमान हादसे के बाद यहां थे नेताजी, विजयालक्ष्‍मी पंडित ने बताई ये बातें

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नेताजी की मौत के बात उस समय फिर से सुर्खियों में आई थी जब भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयालक्ष्‍मी पंडित ने मीडिया में एक बयान दिया था. उन्‍होंने कहा था कि मेरे पास ऐसी खबर है कि भारत में तहलका मच सकता है. ये खबर आजादी से भी बड़ी है. लेकिन नेहरू ने कुछ भी कहने से उन्हें मना कर दिया था. विजया की बात को इसलिए इस मुद्दे से जोड़कर देखा गया था क्‍योंकि वह उस समय रूस में बतौर इंडियन एंबेसडर नियुक्‍त थीं. देश को आजादी मिलने के बाद विजयलक्ष्मी पंडित 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रही थीं.  कहा जाता है कि उन्‍होंने सुभाष चंद्र बोस को रूस में देखा भी था. विजया ने इसकी जानकारी तत्‍कालीन सरकार को दी थी, पर इस मामले में कुछ भी नहीं किया गया.

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