6 नवंबर 1913 के दिन महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीतियों के खिलाफ 'द ग्रेट मार्च' का नेतृत्व किया था. इस मार्च में 2 हजार भारतीय खदान कर्मियों ने न्यूकासल से नेटाल तक की पदयात्रा की थी. बताया जाता है कि जब महात्मा गांधी ने इस मार्च की अगुवाई की थी उस वक्त 127 महिलाएं, 57 बच्चे और 2037 पुरुष शामिल थे. हालांकि महात्मा गांधी को उनके समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था .
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साल 1906 में ट्रांसवैल सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय जनता के पंजीकरण के लिए अपमानजनक अध्यादेश जारी किया. जिसके बाद इस कानून के खिलाफ विरोध किया गया. भारतीयों ने साल 1906 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक जनसभा का आयोजन किया और इस कानून के खिलाफ विरोध किया. जिसके बाद सत्याग्रह का जन्म हुआ. जो पलटवार के बजाय अहिंसक पर विश्वास रखता था.
रंगभेद को लेकर ये संघर्ष दक्षिण अफ्रीका में सात साल तक चला, लेकिन गांधी के नेतृत्व में भारतीय अल्पसंख्यकों के छोटे से समुदाय ने अपने विरोधियों के खिलाफ जी जान से संघर्ष जारी रखा.
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सैकड़ों भारतीयों ने अपनी अन्तरात्मा और स्वाभिमान को चोट पहुंचाने वाले कानून के सामने झुकने के बजाय अपनी स्वतंत्रता को बलि चढ़ाना पसंद किया. काफी संघर्ष के बाद साल 1913 में इस आंदोलन के आखिरी चरण में सैकड़ों भारतीयों को जेल की हवा खानी पड़ी, जिसमें महिलाएं भी शामिल थी.
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वहीं जो मजदूर काम को ना करने के लिए हड़ताल पर बैठे थे उन्हें कोड़ों की मार, जेल की हवा और गोली मारने के आदेश दिए गए. लेकिन सभी भारतीयों ने साहस के साथ सभी परेशानियों का सामना किया.
आखिरकार भारतीयों को कड़ी मेहनत और संघर्ष का फल मिला. जब भारतीय सरकार और ब्रिटिश सरकार के दबाव के तहत एक समझौते को स्वीकार किया गया. इस समझौते को लेकर गांधी जी और दक्षिण अफ्रीकी सरकार के प्रतिनिधि जनरल जॉन क्रिश्चियन स्मेट्स के बीच बातचीत की गई. आखिरकार समझौता हुआ और भारतीय राहत विधेयक पास हुआ.
अनुज कुमार शुक्ला