'सैन्य संग्रहालयों को किया जाएग ई-लिंक', बोले CDS जनरल अनिल चौहान

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा कि भारत की गौरवशाली सैन्य विरासत के बारे में लोगों के बीत जागरूकता फैलाना है. उन्होंने ये बात भारतीय सैन्य विरासत महोत्सव के दूसरे संस्करण के उद्घाटन समारोह के दौरान कही. इसके अलावा सीडीएस अनिल चौहान ने सैन्य गाथा साहित्य लेखन पर भी जोर दिया ताकि अतीत की सैन्य घटनाओं को आम लोगों तक पहुंचाया जा सके.

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सैन्य संग्रहालयों को ई-प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाएगा (फाइल फोटो) सैन्य संग्रहालयों को ई-प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाएगा (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:22 AM IST

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने शुक्रवार को कहा कि एक परियोजना के तहत विभिन्न सैन्य संग्रहालयों को एक ई-प्लेटफॉर्म से जोड़ने का काम चल रहा है. जिसका उद्देश्य भारत की गौरवशाली सैन्य विरासत के बारे लोगों को जानकारी देना और इसके प्रति जागरूक करना है.

भारतीय सैन्य विरासत महोत्सव के दूसरे संस्करण समारोह के दौरान सीडीएस ने पहले की  घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि सेना से जूड़ी घटनाओं और गाथाओं को हम हर व्यक्ति तक आसानी से पहुंचाएंगे और उन कहानियों को जनता के लिए और अधिक सुलभ बनाएंगे.

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सभी सैन्य संग्रहालयों को ई-लिंक करने की तैयारी

अनिल चौहान ने कहा कि हम सशस्त्र बलों के पराक्रम, गौरवशाली इतिहास और विरासत के बारे में जागरूकता फैलाने के इरादे से अपने सैन्य संग्रहालयों को ई-लिंक करने का काम शुरू किया है. जनरल ने कहा कि हम लगभग आठ से दस सैन्य संग्रहालयों को पहले ही ई-लिंक कर चुके हैं और जल्द ही हम सभी 47 से 48 संग्रहालयों को भी ई-लिंक करने जा रहे हैं. इसके बाद सब कुछ एक ही साइट पर उपलब्ध होंगा. जिससे लोगों के लिए जानकारी जुटाना और सैन्य गौरव गाथाओं को जानना आसान हो जाएगा.

डिफेंस स्टाफ जनरल ने कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य शिक्षा और पर्यटन के माध्यम से भारत की सैन्य विरासत को संरक्षित करना और उसे बढ़ावा देना है. ताकि लोगों तक ये आसानी से पहुंच जाए. इस कार्यक्रम के दौरान 'शौर्य गाथा' का शुभारंभ किया गया. दरअसल इस महोत्सव का लक्ष्य भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और सैन्य इतिहास के साथ सैन्य विरासत की और लोगों का ध्यान केंद्रित करना है.

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कर्नल अरुल राज को किया याद

सीडीएस ने बरतानिया हुकूमत के दौर को याद करते हुए कहा कि भारत में अंग्रेजों ने चित्रकला की एक कंपनी स्कूल भी विकसित किया था, जो सैनिकों के रोजमर्रा सैन्य जीवन को चित्रित करता था. उन्होंने कर्नल अरुल राज के योगदान को भी याद किया, जिनकी पेंटिंग साउथ ब्लॉक से लेकर मानेकशॉ सेंटर तक  के सैन्य प्रतिष्ठानों की दीवारों पर सजी हैं. 

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