इन 3 जनरलों ने बनाई थी ऑपरेशन ब्लूस्टार की रणनीति, बराड़ थे कमांडर

कम ही लोग जानते हैं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले तीन चोटी के जनरलों में से दो सिख थे. एक थे पश्चिमी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल रंजीत सिंह दयाल और दूसरे नवीं इनफैंट्री डिवीजन के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़. इन दोनों ने ही पश्चिमी कमान के प्रमुख जनरल सुंदर जी के साथ मिल कर पूरे ऑपरेशन की योजना बनाई थी.

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फाइल फोटो फाइल फोटो

आशुतोष कुमार मौर्य

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2018,
  • अपडेटेड 11:23 AM IST

आज से ठीक 34 साल पहले अमृतसर स्थित गुरुद्वारा हरमिंदर सिंह साहिब (स्वर्ण मंदिर) में छिपे बैठे अलगाववादियों और उनके आका भिंडरावाले को निकालने के लिए एक सैन्य अभियान यानी 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' चलाया गया था. आजाद भारत में असैनिक संघर्ष के इतिहास में सबसे खूनी लड़ाई थी. वैसे तो इस सैन्य अभियान की कई बातों को लेकर आलोचना की जाती है, लेकिन इस अभियान ने पंजाब से आतंकवाद का लगभग खात्म कर दिया.

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तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना का यह ऑपरेशन मुख्य तौर पर 3 से 8 जून 1984 तक चला. हालांकि, इस अभियान की रणनीति पर काफी पहले से काम शुरू हो चुका था. ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले ऑपरेशन सनडाउन की प्लानिंग हुई लेकिन यह ऑपरेशन ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. ऑपरेशन सनडाउन के रद्द होने के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार की तैयारी हुई.

सेना के तीन जनरलों ने मिलकर ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी रणनीति तैयार की. कम ही लोग जानते हैं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले तीन चोटी के जनरलों में से दो सिख थे. एक थे पश्चिमी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल रंजीत सिंह दयाल और दूसरे नवीं इनफैंट्री डिवीजन के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़. इन दोनों ने ही पश्चिमी कमान के प्रमुख जनरल सुंदर जी के साथ मिल कर पूरे ऑपरेशन की योजना बनाई थी.

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कुलदीप सिंह बराड़

कुलदीप सिंह बराड़ स्वर्ण मंदिर में घुसने वाली सेना की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे. जनरल बराड़ को ऑपरेशन ब्लू स्टार के कमांडर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 1971 की जंग में हिस्सा ले चुके जनरल बराड़ ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले मेरठ में 9वीं इनफैन्ट्री डिविजन का नेतृत्व कर रहे थे. एक जून 1984 को बराड़ मेरठ से चंडीगढ़ पहुंचे. उनसे कहा गया कि यह ऑपरेशन जल्दी से जल्दी होना है. और उन्हें अमृतसर जाने का हुक्म मिला.

उस समय तक स्वर्ण मंदिर की पूरी घेराबंदी हो चुकी थी. पाँच जून की सुबह साढ़े चार बजे उन्होंने हर बटालियन के पास जा कर करीब आधे घंटे तक जवानों से बात की. उन्होंने उन्हें बताया कि आप ये समझिए कि आप किसी पवित्र स्थल को बर्बाद नहीं करने जा रहे हैं बल्कि उसकी सफ़ाई करने जा रहे हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल बराड़ की 9वीं इनफैन्ट्री डिविजन ने उस रात जो तीन बटालियन स्वर्ण मंदिर में भेजी थीं, उन्हें पंजाब के मैदानों और राजस्थान के रेगिस्तान में लड़ाई की साधारण ट्रेनिंग थी. वे सिर्फ  अपनी संख्या के बल पर दुश्मन को काबू करने वाले थे. हरावल दस्ते के तौर पर कमांडो ने कामयाबी के लिए छल, फुर्ती और दुश्मन को चौंकाने की चालें आजमाईं.

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जनरल बराड़ 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के भी हीरो थे. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में प्रवेश करने वाले वह पहले भारतीय सैनिकों में से एक थे. जमालपुर की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाने के लिए उन्हें भारत का तीसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार वीर चक्र दिया गया था.

ऑपरेशन ब्लू स्टार के करीब 28 साल बाद 30 सितंबर, 2012 को चार सिख नौजवानों ने लंदन के ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर जनरल बराड़ को मारने की कोशिश की. उस दौरान उनकी पत्नी भी साथ थीं. हालांकि, इस हमले में वे बच गए.

रंजीत सिंह दयाल

वेस्टर्न कमांड के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल रंजीत सिंह दयाल को पंजाब के राज्यपाल का सिक्योरिटी एडवाइजर बनाकर भेजा गया. जनरल सुंदर दयाल पाकिस्तान से 1965 की जंग में कुशलतापूर्वक रेजिमेंट की एक बटालियन का नेतृत्व कर चुके थे. जनरल दयाल 1965 की जंग में मुश्किल कार्रवाई में हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर चुके थे. जनरल दयाल को जब बताया गया कि पिछली दीवार को उड़ाकर अकाल तख्त पर कब्जा किया जाएगा तो उन्होंने तुरंत इस योजना को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, 'अकाल तख्त को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए.' जनरल दयाल ने स्पष्ट कर दिया कि कमांडो स्वर्ण मंदिर में मौजूद उग्रवादियों को निकालने के लिए गैस का इस्तेमाल करते हुए अकाल तख्त पर कब्जा करेंगे.

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अरुण श्रीधर वैद्य

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख थे जनरल अरुण श्रीधर वैद्य. 31 जुलाई 1983 को जनरल वैद्य 13वें सेनाध्यक्ष बने थे. 1984 में इन्होंने गोल्डन टेंपल से अलगाववादियों को मुक्त करने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार की योजना बनाई थी. हालांकि, उन्होंने ऑपरेशन से पहले भरोसा दिलाया था कि इस ऑपरेशन के दौरान कोई मौत नहीं होगी और स्वर्ण मंदिर को कोई नुकसान नहीं होगा. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं. बहरहाल, 40 वर्षों की शानदार सेवा के बाद जनरल वैद्य 31 जनवरी 1986 को सेना से रिटायर हुए. हालांकि रिटायरमेंट के 6 महीने बाद ही 10 अगस्त 1986 को पुणे में सिख अलगाववादियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी.

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