चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीचो-बीच समंदर में एक छोटा सा टापू है गुआम. अमेरिका से गुआम की दूरी करीब 12 हज़ार किलोमीटर है. मगर ये द्वीप वो तोता है जिसमें अमेरिका की जान बसती है. क्योंकि जितना हथियार खुद अमेरिका में नहीं है. उससे कहीं ज़्यादा हथियार अमेरिका ने यहां जमा कर रखा है. इसीलिए चीन की नज़र अमेरिका के इसी तोते पर लगी है. जंग के हालात पैदा होने पर ड्रैगन अपना निशाना यहीं साधेगा.
चीन से गुआम की दूरी 5 हज़ार किमी से भी कम है. अमेरिका इससे करीब 12 हज़ार किमी दूर है. ये द्वीप 541 वर्ग किलोमीटर में फैला है. यह अमेरिका का हिस्सा है. सिर्फ हिस्सा नहीं, इसे अमेरिकी हथियारों का कारखाना भी कह सकते हैं. क्योंकि यहां अमेरीका का सबसे ज़्यादा गोला-बारूद रखा है. साथ ही इस रीजन में उसका सबसे बड़ा एयरबेस भी यहीं है. यहां अमेरिका के तीन मिलिट्री बेस हैं. जहां बमवर्षक विमानों का बेड़ा हर वक्त हमले को तैयार रहता है. इतना ही नहीं समुद्री तटों पर उसका खुफ़िया सैन्य अड्डा है जहां परमाणु हमले के लिए पनडुब्बियों तैनात हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा ख़ास वो जगह है जो गुआम के दक्षिण में पहाड़ी के नीचे छुपी हुई है. जहां अमरीकी हथियारों का ज़खीरा है.
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आसान ज़ुबान में बस इतना समझिए कि गुआम में जितना गोला-बारूद और मिसाइलें जमा है. उतना तो अमरीका में भी नहीं है. और ये बात अमेरिका के दुश्मन मुल्क बहुत अच्छे से समझते हैं. और इसीलिए चीन ने अपनी नज़र और मिसाइलों का रूख इस टापू पर लगा रखा है. इस टापू पर हमले का मतलब है कि अमेरिका के हाथ-पैर काट देना. असल में पर्ल हार्बर की तरह गुआम द्वीप का इस्तेमाल भी अमेरिका अपने जंगी बेड़े के तौर पर करता है. और कुछ इन्हीं वजहों से गुआम अमेरिका के लिए पर्ल हार्बर से कुछ कम अहमियत नहीं रखता है.
करीब एक लाख 63 हज़ार की आबादी वाले इस द्वीप का एक चौथाई हिस्सा फ़ौज के हवाले है. फिलहाल इस द्वीप में छह हज़ार से ज़्यादा अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. गुआम की अहमियत इस बात से समझिए कि इस एक द्वीप की मदद से अमरीका की पहुंच दक्षिणी चीन सागर, कोरिया और ताइवान तक है. गुआम ऐसी जगह पर है जहां से दक्षिणी चीन सागर में चीन के बढ़ते दबदबे पर अमरीका महत्वपूर्ण क़दम उठा सकने की हालत में है. इसलिए जंग को जीतने के लिए चीन को इसे तबाह करना और अमेरिका को इसे बचाना ज़रूरी है.
ज़ाहिर है अमेरिका गुआम पर किसी तरह की आंच आने नहीं देगा. इसलिए उसने यहां मीडियम और लांग रेंज मिसाइल्स की तैनाती और ग्राउंड बेस्ड लांग रेंज एन्टी शिप मिसाइल को डिप्लॉय करने का काम शुरू कर दिया है. अपने फाइटर ऐरक्राफ्ट्स में भी लांग रेंज एन्टी शिप मिसाइल्स को तैनात कर रहा है. चाहे वो नेवी के सुपर हॉरनेट्स हो या फिर बी-1 बॉम्बर्स. इन सभी विमानों को भी अब एन्टी शिप मिसाइल्स से लैस किया जाएगा. अमेरिका यहां 10-15 ऐसे प्वाइंट्स बनाने की कोशिश कर रहा है जिनके ज़रिए चीन पर वो आसानी से हमला कर पाए और चीन को ये न पता चल पाए की अमरीका का ये हमला आखिर हो कहां से रहा है. इसके अलावा चीन को घेरने के लिए फर्स्ट आइलैंड चेन पर नौसेना और मरीन्स के अलावा क्रूज मिसाइल्स की भी तैनाती की जा रही है.
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अमेरिका दूसरे देशों को भी अपने साथ लेने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए उसने चीन के खिलाफ माहौल बनाना शुरु कर दिया है. ट्रंप ने भारत को भी रिझाने की कोशिश की है. मगर भारत अपने न्यूट्रल स्टैंड पर ही कायम है. चीन पर आने वाले वक्त में अमेरिका अपना मिलिट्री दबाव भी बढ़ाएगा. ज़ाहिर है चीन भी इस बार आरपार के मूड में है इसलिए एक तरफ अमेरिका जहां चीन को दबाने की कोशिश कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ खुद भी हाई अलर्ट मोड पर है. चीन ने हालांकि अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. और फिलहाल वो कूटनीतिक तौर पर अमेरिका को जंग के लिए मजबूर करने और राजनीतिक वायरस फैलाने का दोषी ठहरा रहा है.
साथ ही वो ये इशारा भी कर रहा है कि किसी भी जंग के हालात में वो रुस के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ एक अभेद किला तैयार करेगा. और अपने रणनीतिक तालमेल की शक्ति का प्रदर्शन भी करेगा. यानी साफ है कि जंग हुई तो सिर्फ अमेरिका और चीन के बीच नहीं होगी. बल्कि इसका विश्वयुद्ध में तब्दील होना भी तय है.
इतना ही नहीं खबर है की चीन ने अमेरिका के परमाणु ताकत से मुकाबले की तैयारी शुरू कर दी है. ड्रैगन लगातार अपने परमाणु हथियारों का ज़खीरा भी बढ़ा रहा है. फिलहाल चीन के पास 290 न्यूक्लियर हथियार हैं. जबकि अमेरिका के पास 6185 न्यूक्लियर हथियारों का जखीरा है. ये फर्क बहुत बड़ा है और यही बात चीन को चुभ रही है. इसलिए चीन अब अपनी न्यूक्लियर पावर को तीन गुना बढ़ाने की तैयारी कर रहा है. हालांकि अगर चीन गुआम पर अपना निशाना साधकर रखता है और रूस उसका साथ दे दो तो इस एशिया पैसेफिक रीजन में अमेरिका का जीतना तकरीबन नामुमकिन हो जाएगा. लिहाज़ा अमेरिका भी पूरे हालात पर नज़र बनाए हुए है.
आपको बता दें कि अमेरिका नौसेना ने इस द्वीप पर पहली बार 1898 में क़दम रखा था. उसके बाद दिसंबर 1941 तक इस द्वीप पर अमरीका का कब्ज़ा रहा. लेकिन पर्ल हार्बर अटैक के बाद जापान ने महज़ दो दिन में इस द्वीप पर कब्ज़ा कर लिया था. लेकिन फिर उसके बाद अमेरिका ने इसे अपना सबसे बड़ा सैन्य अड्डा बना लिया.
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