लॉकडाउन के पहले चरण में मंडियों तक पहुंचा सिर्फ छह फीसदी गेहूं

अध्ययन में 15 मार्च से 14 अप्रैल के बीच मंडियों में कुल गेहूं की खरीद काआंकड़ा लिया गया. इसके बाद 2017, 2018, 2019 और 2020 के आंकड़ों की तुलना की गई. इस अध्ययन में पाया गया कि पिछले साल की तुलना में इस साल गेहूं की खरीद सिर्फ छह फीसद हुई है.

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फाइल फोटो-पीटीआई फाइल फोटो-पीटीआई

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 11:23 PM IST

  • जेएनयू के स्कॉलर्स ने किया अध्ययन

  • बिना तैयारी के लागू किया गया लॉकडाउन
  • किसानों को उठाना पड़ा भारी नुकासान

कोरोना वायरस महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के पहले चरण में मंडियों में केवल 1.32 लाख टन गेहूं खरीदा गया है. लॉकडाउन का पहला चरण 21 दिन का था. इन ​21 दिनों के दौरान गेहूं की जितनी खरीद हुई, वह 2019 में इसी अवधि में हुई खरीद का मात्र 6 फीसदी है. इसी तरह लॉकडाउन की अचानक घोषणा की वजह से अन्य खाद्यान्न और सब्जियों की आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह टूट गई है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कॉलर्स की ओर से किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है.

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इस अध्ययन में 15 मार्च से 14 अप्रैल के बीच मंडियों में कुल गेहूं की खरीद का रोजाना का आंकड़ा लिया गया. इसके बाद 2017, 2018, 2019 और 2020 के आंकड़ों की तुलना की गई. अध्ययन में सभी उत्पादों को शामिल किया गया जैसे गेहूं, चना, सरसों, आलू, प्याज, टमाटर और गोभी आदि. 21 दिन तक पहले चरण का लॉकडाउन भी इसी अवधि में पड़ा. इस अध्ययन में 18 राज्यों की कुल 2055 मंडियों का आंकड़ा शामिल किया गया है.

अध्ययन में सामने आया है कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान मंडियों में किसानों की ओर से सिर्फ 1.32 लाख टन गेहूं बेचा गया. 2019 में इसी अवधि में मंडियों में हुई गेहूं खरीद की तुलना में यह मात्र 6 फीसदी है और 2017 में इसी अवधि में हुई खरीद का सिर्फ 3.4 प्रतिशत है.

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2019 की तुलना में इस साल चना की खरीद मात्र 6 प्रतिशत और सरसों की खरीद सिर्फ 4 प्रतिशत हो पाई है. आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि बड़ी संख्या में मंडियों ने अपना ध्यान उन उत्पादों पर केंद्रित किया जो खराब होने वाले हैं, इसलिए उन वस्तुओं के संबंध में स्थिति थोड़ी बेहतर रही. हालांकि, सभी तरह के उपज के मंडी तक पहुंचने में बड़ी गिरावट आई है.

मंडियों तक पहुंचने वाली उपज में प्याज (70 फीसदी) और आलू (59 फीसदी) में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है. टमाटर की आमद पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 26 फीसदी और फूलगोभी की आमद (11 फीसदी) रही.

अध्ययन में कहा गया है कि अनाजों की यह आपूर्ति श्रृंखला टूटने के पीछे कई वजहें हैं. लॉकडाउन की घोषणा बिना किसी तैयारी के की गई और जब प्रधानमंत्री ने पहली बार लॉकडाउन की घोषणा की तो कृषि उत्पादन और इससे जुड़े विक्रय कार्यों को लॉकडाउन के दायरे से बाहर रखने के बारे में कोई भी जिक्र नहीं किया.

लॉकडाउन की घोषणा के बाद सरकारों ने आपूर्ति श्रृंखला को चालू करने के लिए प्रयास किए. लॉकडाउन के तीसरे दिन यानी 27 मार्च को सरकार ने कृषि विपणन कार्यों को लॉकडाउन प्रतिबंधों से मुक्त करने का ऐलान किया. लेकिन लॉकडाउन के पहले तीन हफ्तों में बड़ी संख्या में कृषि बाजार चालू नहीं थे और बाजारों में प्रमुख कृषि वस्तुओं की आवक बहुत तेजी से गिर गई.

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प्रोफेसर विकास रावल ने इंडिया टुडे से कहा कि उपलब्ध आंकड़ों से स्पष्ट है कि लॉकडाउन के शुरुआती चरण के दौरान किसान अपनी फसल को मंडियों में बेचने में असमर्थ रहे. लॉकडाउन ने किसानों को कई तरह से प्रभावित किया. मंडियों में आने वाली बहुत सी फसलें खराब हो गईं क्योंकि भंडारण की कोई सुविधा नहीं थी. इससे किसानों को काफी नुकसान हुआ है.

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प्रोफेसर रावल ने कहा कि 'बारिश के चलते नमी के कारण अनाजों का नुकसान अधिक हुआ क्योंकि किसान अपनी फसल नहीं बेच पाए'. प्रो रावल ने कहा कि इस नुकसान के कारण किसानों को अपने लोन चुकाने में मुश्किल होगी और लंबे समय में इसका कृषि और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा. किसानों को हुए इस नुकसान का असर खरीफ की फसलों पर भी पड़ेगा.

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