कोरोना के संक्रमण से लड़ने के लिए देश में लॉकडाउन होने से जहां लोगों को रोजमर्रा की चीजें जुटाने में मशक्कत करनी पड़ रही हैं, तो वहीं बंदी का असर लोगों के घरों में भी दिखाई पड़ रहा है. कई लोग मानसिक बदलाव और तनाव की स्थिति की शिकायत कर रहे हैं.
जिन घरों में बच्चे हैं वहां मां-बाप बच्चों के सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं, तो वहीं बुजुर्गों के अंदर मानसिक तनाव का स्तर ज्यादा बढ़ रहा है. पहाड़गंज में रहने वाली 70 साल की तरलोचन कौर का कहना है, इस बंदी के दौरान आस-पास कोई बात करने के लिए नहीं है और ना ही वह घर से निकल पा रही हैं. ऐसे में कई बार अकेलापन परेशान करता है.
तरलोचन कहती हैं कि कई बार रात में नींद खुल जाती है तो वो घर से बाहर निकल कर चलने लगती हूं. कई बार दिन में करने के लिए कुछ नहीं होता तो परेशानियां घेर लेती हैं.
ऐसा नहीं है कि मानसिक तनाव का सामना सिर्फ बुजुर्गों को ही करना पड़ रहा है, बल्कि युवा दंपति भी इस मानसिक बदलाव से गुजर रहे हैं. 34 साल के ललित और उनकी 30 साल की पत्नी आराधना भी इस बदलाव से गुजर रहे हैं.
आमतौर पर घर से बाहर कारोबार संभालने वाले ललित के लिए घर में रुकना मुश्किल है, लेकिन वे कहते हैं इस समय घर में बच्चे बंद हैं और बार-बार बाहर जाने की जिद कर रहे हैं. वे कहते हैं कि इस वायरस को लेकर मन में डर भी है.
बच्चों को समझाना मुश्किल
उनकी पत्नी आराधना का कहना है कि बच्चों को यह समझाना मुश्किल होता है कि क्यों बाहर न जाएं? वहीं बढ़ती जिम्मेदारी और बच्चों को संभालने के बीच तनाव के चलते कई बार खिटपिट की नौबत भी आ जाती है.
आराधना कहती हैं कि घर में दोनों बच्चे पालतू कुत्ते के साथ खेलकर समय बिताते हैं, लेकिन बार-बार घर से बाहर जाने की जिद करते हैं जो मां-बाप के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है. जाहिर है इस लॉकडाउन के पीछे मकसद बड़ा है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी बेहद चुनौतीपूर्ण है.
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आशुतोष मिश्रा