कोरोना पर आईं ये 2 रिपोर्ट बढ़ा सकती हैं भारत की चिंता

कोरोना को लेकर दुनिया भर में आई दो रिपोर्ट भारत के संदर्भ में काफी अहम हैं. एक रिपोर्ट में गर्मी और उमस के मौसम में कोरोना के व्यवहार का अध्ययन किया गया है. दूसरी रिपोर्ट विभिन्न जातीय समूहों पर कोरोना के असर को देखते हुए तैयार की गई है. इसमें एशियाई जातीय समूहों को भी शामिल किया गया है.

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कोरोना को लेकर 2 रिपोर्ट सामने आई हैं कोरोना को लेकर 2 रिपोर्ट सामने आई हैं

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 मई 2020,
  • अपडेटेड 7:17 PM IST
  • कोरोना का अध्धयन कर वैज्ञानिकों ने दो रिपोर्ट की हैं तैयार
  • पहली रिपोर्ट में मौसम पर किया गया है अध्ययन
  • दूसरी रिपोर्ट में विभिन्न जातीय समूहों पर पर शोध

कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिक शोध में लगे हुए हैं. महामारी बन चुके इस वायरस के पैदा होने, इसके व्यवहार, इसके पनपने के लिए मुफीद परिस्थितियों से लेकर इसको नियंत्रित करने पर रोज नई बातें सामने आ रही हैं. अब कोरोना को लेकर जो दो रिपोर्ट सामने आई हैं, वो भारत की चिंता बढ़ा सकती हैं. 

इनमें पहली रिपोर्ट एक स्टडी के आधार पर तैयार की गई है. इसके अनुसार मौसम में बढ़ने वाली गर्मी और उमस कोरोना के लिए खतरनाक नहीं है. इस रिपोर्ट में 144 देशों को शामिल किया गया. इसमें मुख्य रूप से अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक शामिल हुए. यह स्टडी कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी से चीन, इटली, ईरान और साउथ कोरिया को बाहर रखा गया है ताकि स्टडी के नतीजे संतुलित रहें, क्योंकि यहां पर या केस बहुत ज्यादा हैं या कम. 

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कनाडा के सेंट माइकल हॉस्पिटल और टोरंटो यूनिवर्सिटी के रिसर्चर पीटर जूनी ने बताया कि हमने 7 मार्च से 13 मार्च तक पूरी दुनिया में ऊंचाई, तापमान, उमस, बंद स्कूलों, लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों, सामूहिक आयोजनों को संक्रमण से जोड़कर विश्लेषण किया. इससे पता चला कि गर्मी और उमस का इस वायरस की रोकथाम से कोई संबंध नहीं है. जूनी ने बताया कि पहले हमें पता चला था कि गर्मी और उमस से कोरोना वायरस की गति थमेगी. लेकिन स्टडी का स्तर बढ़ाने पर परिणाम पहले से उल्टे आए. यानी गर्मी और उमस का कोरोना पर कोई असर नहीं होगा. 

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दूसरी रिपोर्ट, ब्रिटेन के सांख्यिकी कार्यालय ने जारी की है. कार्यालय ने कहा कि गोरों की तुलना में भारतीयों, बांग्लादेशियों, पाकिस्तानियों और अश्वेत लोगों के कोरोना से मरने की ज्यादा आशंका है. यह रिपोर्ट एडजस्टेड मॉडल को ध्यान में रखकर तैयार की गई है. यह रिपोर्ट ब्रिटेन को ध्यान में रखकर की गई है, लेकिन इससे गरीब देशों के सामने भी एक डर पैदा हो गया है. रिपोर्ट के मुताबिक सामाजिक-आर्थिक कारकों की वजह से विभिन्न जातीय समूहों में Covid-19 का खतरा अलग-अलग स्तर का है. कोरोना वायरस पर स्टडी करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना का उम्र, लिंग और जाति पर अलग-अलग असर होता है. इन सभी की मृत्यु दर में भी अंतर देखा गया.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि कई मामलों में जेनेटिक्स (आनुवंशिकी) काफी मायने रखती है. यह बीमारी से निपटने के लिए दवा या वैक्सीन का भी रास्ता खोज लेती है. सांख्यिकी कार्यालय ने पाया कि शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी चीजों के अभाव में गोरों के मुकाबले अश्वेत पुरुषों की मौत का आंकड़ा 4.2 गुना ज्यादा था. वहीं गोरी महिलाओं की तुलना में कोरोना से मरने वाली अश्वेत महिलाओं की संख्या 4.3 गुना अधिक थी. कार्यालय ने कहा कि चीन और मिश्रित नस्ल वाले लोगों में भी कोरोना से मौत का समान खतरा है. अमेरिका में भी यह सामने आया है कि Covid-19 से मरने वालों में अफ्रीकी अमेरिकी मूल के लोगों की संख्या ज्यादा है.

 

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