भारत में Covid-19 मामलों की मृत्यु दर कई देशों की तुलना में कम है. उदाहरण के लिए, भारत में लगभग उतने ही केस हैं जितने कि कनाडा में हैं, लेकिन भारत में कनाडा से आधी मौतें दर्ज हुई हैं.
कोरोना वायरस के मामले में मृत्यु दर का मतलब है कि कन्फर्म हुए कुल केस और उनमें से हुईं मौतों का अनुपात. अंग्रेजी में इसे केस फैटलिटी रेट (CFR) कहते हैं. अप्रैल बीतने और मई शुरू होने के साथ नये मामलों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. कुछ राज्यों में अनुमान से कहीं अधिक मौतें हुई हैं और यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ. यह चिंता की बात है.
लेकिन ऐसा क्यों है कि कुछ राज्यों में मृत्यु दर काफी अधिक है और कुछ में काफी कम है?
महाराष्ट्र, दिल्ली और तमिलनाडु में सबसे अधिक मामले होने के बावजूद इनकी मृत्यु दर पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात की तुलना में बहुत कम है. मेघालय में उच्च मृत्यु दर का कारण यहां केस की कम संख्या है, यहां सिर्फ एक मौत हुई है.
आंशिक तौर पर ये टेस्टिंग की कम दर की वजह से हो सकता है. तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्यों में जहां टेस्टिंग अधिक है, वहां बिना लक्षण वाले केस अधिक सामने आएंगे, इससे विभाजक रेखा बढ़ेगी, मृत्यु दर कम होगी.
लेकिन बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में जहां टेस्ट कम संख्या में हो रहे हैं और मौतें ज्यादा हो रही हैं, वहां तो साफ तौर पर समस्या है.
मृत्यु दर के मामले में यह भी अहम है कि राज्य में फिलहाल कुल केसों की संख्या कितनी है. मध्य प्रदेश में राजस्थान की तुलना में कन्फर्म केस कम हैं लेकिन मौतों का आंकड़ा दोगुना है.
पश्चिम बंगाल में यूपी की तुलना में केस की संख्या आधी है लेकिन मौत का आंकड़ा दोगुना से ज्यादा है. इसका मतलब यह हो सकता है कि इन राज्यों में मामलों का पता तभी चल पा रहा है जब वे गंभीर स्तर पर पहुंच रहे हैं. या फिर यह आंकड़ा यहां की चिकित्सा प्रबंधन में कमियों की ओर इशारा कर रहा है.
भारतीय राज्यों में मृत्यु दर यानी कुल जनसंख्या में Covid-19 से हुई मौतों का अनुपात अभी भी वैश्विक औसत से बहुत कम है. गुजरात की मृत्यु दर इस समय देश में सबसे अधिक है. न केवल यह ज्यादा चिंता का कारण है, बल्कि उन राज्यों के बारे में भी चिंता करने की जरूरत है जो इस बीमारी के बारे में जितना जानते हैं, उससे कहीं कम मौतें दर्ज कर रहे हैं.
वैश्विक स्तर पर भी मृत्यु दर को लेकर ऐसी स्थितियां हैं जिनका कारण साफ नहीं है, जैसे कि जर्मनी में कोरोना मामलों की मृत्यु दर अपने पड़ोसी देशों की तुलना में कहीं कम है. मृत्यु दर निर्धारित करने में कारकों की एक पूरी श्रृंखला काम करती है, जैसे कि आबादी में सह-रुग्णता का स्तर, जांच दर, लोगों को कितनी जल्दी चिकित्सा सुविधा मिल पाती है, चिकित्सा सुविधाओं की गुणवत्ता और अंत में आंकड़ों की गुणवत्ता. मृत्यु दर तय करने में इन सभी कारकों की अहम भूमिका है.
भारत ट्यूबरक्लोसिस, मलेरिया, डायरिया जैसी कई बीमारियों और इस तरह के संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों को काफी हद तक कम संख्या में दिखाता है. इसके मद्देनजर यह देखने की बात होगी कि क्या भारतीय राज्य अपने यहां कोरोना वायरस से होने वाली मौतों के बारे में सही गिनती कर रहे हैं या नहीं.
-रुक्मिणी एस की रिपोर्ट...
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