तो अब भारत-चीन मिलाएंगे हाथ, जानें आखिर क्या है ऐसी खास बात

लगातार टकराव के मूड में रहने वाले अघोषित दुश्मन भारत-चीन अब एक महत्वपूर्ण मसले पर एक-दूसरे से हाथ मिलाएंगे.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

दिनेश अग्रहरि

  • नई दिल्ली,
  • 13 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST

लगातार टकराव के मूड में रहने वाले अघोषित दुश्मन भारत-चीन अब एक महत्वपूर्ण मसले पर एक-दूसरे से हाथ मिलाएंगे. यह मसला है तेल का. दोनों देश मिलकर दुनिया की तेल खपत में करीब 17 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. इसलिए अब इस संभावना पर विचार होने लगा है क्यों न दोनों देश मिलकर पश्चिम एशिया के तेल उत्पादक देशों से कच्चा तेल खरीदने के मामले में बेहतर तरीके से मोलभाव करें.

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टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद प्रधान और चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (CNPC) के चेयरमैन वांग यिलिन तथा अन्य चीनी अधिकारियों से बातचीत में यह निर्णय किया गया है. 16वें इंटरनेशनल एनर्जी फोरम के मंत्रिस्तरीय राउंड के अवसर पर सभी लोग जुटे थे और उसी दौरान यह बातचीत हुई.

धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, 'उपभोक्ता होने के नाते हमारे कुछ साझा हित हैं. अपनी सार्थक बातचीत में हम कारोबार से कारोबार तक (B2B) साझेदारी बनाने पर सहमत हुए और हमें उम्मीद है कि निकट भविष्य में खरीदार भी कीमतें तय करेंगे.' प्रधान की इस राय का चीन के राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन (NEA) के उप प्रशासक ली फैनरोंग ने भी समर्थन किया. इस बारे में आगे कैसे काम हो, इसके लिए भारत और चीन की सार्वजनिक कंपनियों के अधिकारी बातचीत करेंगे.  

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गौरतलब है कि इसके पहले साल 2005 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने यह प्रस्ताव दिया था कि भारत-चीन को एक साझा मोर्चा बनाकर मोलभाव करना चाहिए ताकि वाजिब कीमत पर कच्चा तेल मिल सके. इसमें यह भी प्रस्ताव था कि साल 2006 में इसके लिए दोनों देशों के बीच एमओयू होगा, लेकिन द्विपक्षीय बाचतीत की तमाम जटिलताओं की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाया.

लेकिन अब जब वैश्विक मार्केट में तेल की आपूर्ति जरूरत से ज्यादा हो गई है और बिक्री का केंद्र एशिया हो गया है, ऐसे में इस तरह की संभावना पर बातचीत फिर से जोर पकड़ने लगी है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी को ऐसा लगता है कि अगले पांच साल दुनिया की वैश्विक तेल मांग का करीब 50 फीसदी हिस्सा भारत-चीन में जाएगा. यही नहीं तेल खपत बढ़ने का अगले दो दशकों में मुख्य वजह भारत ही होगा.

अभी ऐसा माना जाता है कि पश्च‍िम एशिया के तेल उत्पादक देश भारत-चीन को ऊंची कीमत पर तेल दे रहे हैं. तेल की बढ़ती कीमतों ने इस भावना को और बढ़ा दिया है.

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