सरकार के लिए चुनौती बनी पवन हंस की ब्रिकी, जानिए क्‍या है कंपनी का हाल

हेलिकॉप्‍टर सर्विस प्रोवाइड कराने वाली कंपनी पवन हंस को बेचने की प्रक्रिया सरकार के लिए चुनौती बनती जा रही है. एक अच्‍छे खरीदार की तलाश में सरकार ने तीन महीने में तीसरी बार पवन हंस के विनिवेश के लिए रुचि पत्र यानी ईओआई की डेडलाइन बढ़ाई है.

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पवन हंस को बेचने की कोशिश में जुटी है सरकार पवन हंस को बेचने की कोशिश में जुटी है सरकार

दीपक कुमार

  • नई दिल्‍ली,
  • 27 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 2:46 PM IST

  • 2018-19 में पवन हंस को करीब 89 करोड़ रुपये का घाटा हुआ
  • कंपनी पर 230 करोड़ रुपये से अधिक हैं देनदारियां

बीते जुलाई महीने में आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी कंपनियों की ''रणनीतिक विनिवेश'' पर जोर देने के संकेत दिए. इसका मतलब यह हुआ कि सरकार किसी सार्वजनिक क्षेत्र के कंपनी में अपनी समूची हिस्‍सेदारी बेच सकती है. सार्वजनिक क्षेत्र की हेलिकॉप्‍टर कंपनी पवन हंस के मामले में सरकार की यह कोशिश असरदार साबित होती नहीं दिख रही है.

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नहीं मिल रहा ढंग का खरीदार

दरअसल, सरकार पवन हंस में अपनी पूरी हिस्‍सेदारी बेचना तो चाहती है लेकिन उसे ढंग का खरीदार नहीं मिल रहा है. यही वजह है कि तीन महीने में तीसरी बार पवन हंस के विनिवेश के लिए रुचि पत्र (ईओआई) दाखिल करने की डेडलाइन बढ़ा दी गई है. पहले ईओआई दाखिल करने की समयसीमा 26 सितंबर तक थी जिसे बढ़ाकर 10 अक्टूबर कर दिया गया है. यहां बता दें कि कोई कंपनी या व्‍यक्‍ति जब ईओआई दाखिल करता है तो यह माना जाता है कि वह नीलाम होने वाली कंपनी को खरीदने के लिए इच्‍छुक है. ईओआई दखिल करने की डेडलाइन उन परिस्थितियों में बढ़ाई जाती है जब बिकने वाली कंपनी को कोई ढंग का खरीदार नहीं मिलता है.

घाटे में चल रही है कंपनी

दरअसल, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी पवन हंस लगातार घाटे में चल रही है. कंपनी ने बीते दिनों एक बयान में बताया कि 2018-19 में उसे करीब 89 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, कंपनी पर 230 करोड़ रुपये के अलावा और भी कई देनदारियां बताई गई हैं. पवन हंस के आर्थिक संकट के बीच अप्रैल में यह भी खबरें आई थीं कि कंपनी अपने कर्मचारियों को सैलरी देने में असमर्थ है. हालांकि पवन हंस की ओर से बाद में स्‍पष्‍टीकरण दिया गया.

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पवन हंस के बेड़े में शामिल हेलिकॉप्‍टर की सूची

किसकी कितनी हिस्‍सेदारी?

पवन हंस में सरकार की 51 फीसदी हिस्‍सेदारी है. वहीं शेष 49 फीसदी हिस्सेदारी ओएनजीसी के पास है. अगर शेयर के हिसाब से बात करें तो सरकार के पास कंपनी के 2 लाख 84 हजार 316 शेयर हैं. इसी तरह ओएनजीसी के पास 2 लाख 73 हजार 166 शेयर हैं. हालांकि सरकार ने जुलाई में इस कंपनी में अपनी समूची 51 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए शुरुआती सूचना ज्ञापन जारी किया था. बता दें कि सरकार ने पवन हंस के विनिवेश के प्रयास तब शुरू किए जबकि ओएनजीसी ने पिछले वित्त वर्ष में कंपनी में समूची हिस्सेदारी लेने में रुचि नहीं दिखाई.

पवन हंस की कमाई का क्‍या है जरिया?

हेलिकॉप्‍टर प्रोवाइडर कंपनी पवन हंस की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक साल 2017-18 में सबसे अधिक कमाई प्रति घंटे के आधार पर हुई है. टोटल इनकम में प्रति घंटे के हिसाब से कंपनी को 46 फीसदी कमाई हुई है. आसान भाषा में समझें तो हर घंटे पवन हंस ने अपना हेलिकॉप्‍टर किराये पर दिया और उससे कुल इनकम की 46 फीसदी कमाई कर ली.

वहीं हर महीने के किराये या चार्जेस से टोटल इनकम की 39 फीसदी कमाई हुई है. बता दें कि पवन हंस ने जिन कंपनियों या व्‍यक्ति को अपना हेलिकॉप्‍टर दे रखा है उससे हर महीने किराये के तौर पर एक फिक्‍स्‍ड अमाउंट लेती है.   

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कर्मचारियों पर कितना खर्च करती है कंपनी?

पवन हंस सबसे अधिक पैसा (39 फीसदी) अपने कर्मचारियों पर खर्च करती है. 31 मार्च 2018 को खत्‍म हुए वित्त वर्ष में पवन हंस ने अपने कर्मचारियों की सैलरी और अन्‍य भत्ते के नाम पर पर कुल 17 हजार 263 करोड़ रुपये के करीब खर्च किए. इसमें कर्मचारियों की सैलरी और भत्ते पर कंपनी के 14 हजार 794 लाख रुपये जबकि पीएफ, पेंशन और ग्रेच्‍युटी फंड में 2 हजार 304 लाख रुपये खर्च हो गए.  इसके एक साल पहले पवन हंस ने कर्मचारियों पर 15 हजार 444 करोड़ रुपये खर्च किए थे.

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