विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त बरकरार, लगातार दूसरी बार 500 अरब डॉलर के पार

कोरोना संकट काल के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त का सिलसिला जारी है.

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हफ्ते में 5.942 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज हफ्ते में 5.942 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2020,
  • अपडेटेड 5:36 PM IST

  • इस हफ्ते में 5.942 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई है
  • कुल विदेशी मुद्रा भंडार 507 अरब डॉलर पर पहुंच गया है

बीते 12 जून को समाप्त सप्ताह में एक बार फिर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ने नया मुकाम हासिल किया है. दरअसल, इस हफ्ते में 5.942 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक कुल विदेशी मुद्रा भंडार 507.64 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. इसी तरह, सप्ताह में सोने का रिजर्व भंडार 82.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 33.173 अरब डॉलर हो गया.

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लगातार दूसरी बार सफलता

यह लगातार दूसरा सप्ताह है जब विदेश मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है. 5 जून को समाप्त हफ्ते में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार ने इस मनोवैज्ञानिक स्तर को पार किया था. कोरोना संकट काल के बीच ये एक राहत की खबर है. अगर दूसरे देशों से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना करें तो चीन और जापान के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गया है.

क्या है वजह?

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, विदेशीमुद्रा भंडार में वृद्धि का कारण अधिक पूंजी निवेश होने के अलावा चालू खाता के घाटे का कम होना था. कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों की वजह से कारोबारी गतिविधियों में सुस्ती आई है. विदेशी मुद्रा भंडार की यह जमा धनराशि एक वर्ष के आयात के खर्च के बराबर है.

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डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति

एक तरफ विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. शुक्रवार को रुपया, डॉलर के मुकाबले छह पैसे टूटकर 76.20 पर बंद हुआ. आपको बता दें कि वैश्विक स्तर पर अधिकतर कारोबार डॉलर के जरिए होता है. ऐसे में अगर डॉलर मजबूत होता है तो किसी भी तरह के व्यापार के लिए रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं.

ये पढ़ें—30 साल पहले विदेशी मुद्रा भंडार पर था संकट, ऐसे मिला 500 अरब डॉलर का मुकाम

मुद्रा कारोबारियों के मुताबिक अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने, भारत-चीन के बीच तनाव और कोरोना वायरस संक्रमितों की बढ़ती संख्या के चलते रुपये पर दबाव रहा. हालांकि घरेलू शेयर बाजारों से मिले समर्थन और नए विदेशी पूंजी के प्रवाह से स्थानीय मुद्रा में गिरावट पर अंकुश लगा.

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