Budget 2023: मनरेगा, मिड-डे-मील जैसी सोशल स्कीम के बजट में बड़ी कटौती, ये है पूरा आंकड़ा

Union Budget 2023 Updates: सरकार ने बताया था कि देश की आबादी का कुल 65 प्रतिशत (2021 डाटा) हिस्‍सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है और कुल 47 फीसदी आबादी अपने जीवन यापन के लिए कृषि और इससे जुड़े कार्यो पर निर्भर है.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में किया ये बड़ा ऐलान. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में किया ये बड़ा ऐलान.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:07 AM IST

केंद्र सरकार ने देश के 2023-24 के बजट में कई सोशल वेलफेयर स्कीमों के बजट में कटौती की है. आंकड़ों के अनुसार, पांच सोशल वेलफेयर स्कीमों के लिए आवंटित राशि में इतनी बड़ी गिरावट आई है कि ये लगभग 20 साल पहले के स्तर पर पहुंच गई है. मोदी सरकार 2.0 ने 2024 के आम चुनाव से पहले अपने आखिरी पूर्ण बजट में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के लिए 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.

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18 फीसदी घटा बजट

आमतौर पर केंद्र सरकार की इस योजना को महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) कहा जाता है. इस इस बार के बजट में आवंटित राशि पिछले वर्ष के आवंटन से 18 फीसदी कम है और संशोधित अनुमानों से एक तिहाई कम है. 2014-15 से 2022-23 के आंकड़ों पर नजर डालें, तो यह पहला मौका है, जब बजट आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में कम रहा है. 2023-24 में मनरेगा बजट सरकारी व्यय का 1.3 फीसदी है, 2022-23 में ये सरकारी व्यय का 1.85 फीसदी रहा था.

महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट में कटौती

अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज का कहना है कि मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, मातृत्व लाभ और आईसीडीएस जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के आवंटन में वास्तविक रूप से गिरावट आई है. जीडीपी के अनुपात के रूप में मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन सबसे कम है. विशेषज्ञों ने कहा कि वर्षों से बढ़ती मांग के बावजूद इस योजना का बजट कम रखा गया है. कोविड महामारी के दौरान जब श्रमिक शहरों से वापस अपने गांव लौटे थे, तो ग्रामीण क्षेत्रों के श्रमिकों के गुजारे के लिए मनरेगा एक जरिया बना था.

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लगभग 20 साल पुराने स्तर पर पहुंचा आवंटन

ज्यां द्रेज के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात में सोशल वेलफेयर स्कीम के लिए बजट के आवंटन के मोर्चे पर हम कमोबेस 20 वर्षों के बाद की कैटेगरी में हम वापस आ गए हैं. इसमें पांच वेलफेयर स्कीम- में मिड डे मिल, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, मातृत्व लाभ, मनरेगा और आईसीडीएस जैसी स्कीमें शामिल हैं. अगर इन पांचों स्कीमों के बजट के आवंटन को जीडीपी की तुलना में देखें, तो साल 2005-06 में सरकारी व्यय 0.30 फीसदी के आसपास रहा था. वहीं, 2023-24 के बजट में इन स्कीमों के लिए आवंटित राशि जीडीपी की तुलना में 0.36 फीसदी पर आ गई है. 2022-23 के बजट में खर्च का ये आंकड़ा जीडीपी की तुलना में 0.40 फीसदी से अधिक रहा था.

जीडीपी की तुलना में सोशल वेलफेयर स्कीम्स के लिए आवंटित बजट का आंकड़ा.

आवंटन का आंकड़ा

वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान इन पांचों सोशल वेलफेयर स्कीमों पर जीडीपी की तुलना में सरकार ने सबसे अधिक बजट आवंटित किए थे. तब ये आंकड़ा जीडीपी की तुलना में 0.90 फीसदी से अधिक रहा था. उसके बाद से इन सोशल वेलफेयर स्कीमों के लिए आवंटित बजट में जीडीपी के मुकाबले गिरावट ही देखने को मिली है. अगर साल 2014 के बाद के आंकड़ों पर नजर डालें, तो वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान आवंटन खर्च का आंकड़ा जीडीपी की तुलना में 0.60 फीसदी से अधिक रहा था. 2020-21 के दौरान भी खर्च का आंकड़ा 0.60 फीसदी से अधिक था.

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गांवों में रहता है कुल आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा

भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में कहा गया है कि मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की मांग प्री-कोविड लेवल के आसपास ही चल रही है. ज्यां द्रेज ने कहा कि मनरेगा के लिए सीमित बजट के कारण हम लोगों की काम की मांग के बैरोमीटर के रूप में रोजगार के स्तर की व्याख्या नहीं कर सकते हैं. बीते दिनों आर्थिक सर्वे में सरकार ने बताया था कि देश की आबादी का कुल 65 प्रतिशत (2021 डाटा) हिस्‍सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है और कुल 47 फीसदी आबादी अपने जीवन यापन के लिए कृषि और इससे जुड़े कार्यो पर निर्भर है. 
 

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