क्रिसमस सेलिब्रेशन के साथ ही शुरू हो जाती है, नए साल के स्वागत की तैयारी. 1 जनवरी का बेसब्र इंतजार और कैलेंडर बदलने की तारीख. आज जब सारी दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन चुकी है तो 1 जनवरी ही वह मानक तारीख है जिसके साथ नये साल की शुरुआत होती है. सारी दुनिया इसी के आधार पर अपने साल भर की प्लानिंग करती है. इसे रोमन कैलेंडर, ग्रेगेरियन कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर जैसे कई नाम से जाना जाता है. भारत में भी मानक तौर पर यही कैलेंडर प्रचलित है.
अंग्रेजी कैलेंडर और भारतीय अस्मिता का विरोध
वैसे भारतीय जनमानस में हमेशा स्थानीय पहचान और अस्मिता को लेकर इस कैलेंडर के प्रति एक विरोध भी रहा है. एक तो यह कैलेंडर दमन और शोषण का प्रतीक बन जाता है, क्योंकि यह अंग्रेजों का अपनाया हुआ और भारतीय उपनिवेशिक राज्य पर थोपा गया कैलेंडर माना जाता है, दूसरा यह कि इसे सूर्य और चंद्र गतियों के ज्योतिषीय आधार पर काल गणना के लिए बहुत शुद्ध और सटीक नहीं माना जाता है.
प्राचीन रोमन धर्म से जुड़ी हैं कैलेंडर की जड़ें
खैर... अभी इस बात पर रहते हैं कि इस कैलेंडर की शुरुआत कैसे हुई और इसके महीनों के नाम कैसे रखे गए? आज जिस कैलेंडर को हम अंग्रेजी कैलेंडर कह देते हैं वह असल में मूल रूप से अंग्रेजों द्वारा नहीं बनाया गया था. बल्कि इसकी जड़ें तो उससे भी बहुत पहले प्राचीन रोमन धर्म से जुड़ी हुई हैं. सबसे पहले बताते हैं कि कैलेंडर शब्द कहां से आया?
कहां से आया कैलेंडर शब्द?
'कैलेंडर' शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'कैलेंडे' (Kalends) से आया है, जिसका मतलब 'महीने का पहला दिन' होता था, क्योंकि रोमन लोग इस दिन मुनादी पीटकर या पुकार कर ('calare' क्रिया से) नए चांद के दिखने और कर्ज चुकाने की घोषणा करते थे, और यह सब एक रजिस्टर या हिसाब-किताब की बही ('calendarium') में दर्ज किया जाता था, जिससे यह नाम बना.
चांद का दिखना और महीने का पहला दिन
रोमन काल गणना में महीने का पहला दिन 'कैलेंडे' कहलाता था, जब नए चांद के दिखने की घोषणा होती थी. यह 'कैलेंडे' शब्द 'कैलारे' (calare) से जुड़ा है, जिसका अर्थ है 'पुकारना' या 'घोषणा करना'. 'कैलेंडे' से 'कैलेंडेरियम' (calendarium) बना, जिसका अर्थ 'खाता-बही' या 'रजिस्टर' था, जहां कर्ज़ और हिसाब-किताब लिखे जाते थे. लैटिन शब्द पुरानी फ्रांसीसी भाषा से होते हुए 13वीं सदी तक मध्य अंग्रेजी में 'कैलेंडर' के रूप में आया.
राजा रोमुलस ने की थी कैलेंडर की शुरुआत
रोमन कथाओं के अनुसार, रोमन कैलेंडर की शुरुआत रोम के पहले पौराणिक राजा रोमुलस ने की थी. शुरुआती कैलेंडर में केवल 10 महीने होते थे. साल की शुरुआत मार्च से होती थी और सर्दियों के दिनों को किसी महीने में नहीं गिना जाता था. यानी सर्दी का समय ऐसे ही बिना नाम के निकल जाता था और फिर नया साल शुरू होता था. इन दस महीनों में हर महीने में 30 या 31 दिन होते थे. पूरा साल कुल 38 नुंडिनल चक्रों में बंटा होता था. नुंडिनल चक्र एक तरह का आठ दिन का सप्ताह होता था, जिसमें नौ दिन गिने जाते थे. इन चक्रों के अंत में धार्मिक अनुष्ठान होते थे और सार्वजनिक बाजार लगते थे.
कालेंड्स, नोनस और आइड्स से आया कैलेंडर
यह कैलेंडर दिखाता है कि इसकी जड़ें चंद्र कैलेंडर में थीं. हर महीने के कुछ खास दिन, कालेंड्स (Kalends), नोनस (Nones) और आइड्स (Ides) चांद की अलग-अलग अवस्थाओं से जुड़े थे. कालेंड्स अमावस्या से, नोनस चांद के पहले चरण से और आइड्स पूर्णिमा से जुड़े माने जाते थे. इन खास दिनों की औपचारिक घोषणा पोंटिफ्स नामक पुजारी वर्ग द्वारा कैपिटोलाइन पहाड़ी पर की जाती थी. रोमन लोग तारीखों को सीधे गिनने के बजाय, अगले कालेंड्स, नोनस या आइड्स से पीछे की ओर गिनकर बताते थे.
उदाहरण के लिए, 23 फरवरी को मनाया जाने वाला वर्ष-अंत का त्योहार टर्मिनालिया, रोमन तरीके से “मार्च के कालेंड्स से छह दिन पहले” कहा जाता था. यह सब कुछ आज के आधुनिक कैलेंडर शब्द की देन बना और हमें तारीखें कैसे देखनी हैं ये भी सिखा गया.
आज कैलेंडर दिन, महीने और साल की कालगणना का एक मीडियम है और हमारी अहम तारीखों को देखकर रोजाना के शेड्यूल तैयार करने का हिस्सा भी.
विकास पोरवाल