छठ महापर्व पर सूर्य देव की आराधना और प्रकृति पूजा का पर्व है. सूर्य देव जगत की आत्मा हैं और चेतना का आधार हैं. उनसे ही इस चराचर जगत को प्राण मिलते हैं. बिहार-पश्चिम बंगाल, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. देशभर में सूर्यदेव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. इनमें से एक है कोणार्क का सूर्य मंदिर.
सूर्यदेव के तीन मंदिर
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि कोणार्क का सूर्यमंदिर सूर्य मंदिरों की शृंखला का सिर्फ एक हिस्सा है, इसके दो अन्य मंदिर हैं जो इसे पूरा करते हैं. इनमें से एक मंदिर देवार्क नाम से प्रसिद्ध है, जो बिहार के औरंगाबाद जिले में देवस्थान नाम से जाना जाता है और तीसरा सूर्यमंदिर वाराणसी में लोलार्क कुंड के पास स्थिक लोलार्क सूर्य मंदिर है.
ये तीनों मंदिर सूर्य देव के ही तीन अंश हैं. पौराणिक मान्यता है कि सूर्यदेव के तीन टुकड़े हो गए थे. इन मंदिरों में वही टुकड़े देवता के रूप में विराजित हैं. सवाल उठता है कि सूर्यदेव की टुकड़े हुए क्यों? इस प्रश्न का उत्तर पौराणिक कथाओं से निकली जनश्रुतियों में है. इस कथा में रावण के नाना का नाम खासतौर पर आता है.
माली-सुमाली ने चली चाल
हुआ कुछ यूं कि एक बार माली-सुमाली ने भगवान शिव से रक्षा और खुद पर उनकी कृपा बनी रहने का वरदान मांग लिया. इस वरदान के बाद दोनों क्रूरता दिखाने लगे. धरती पर हाहाकार मचाने के बाद दोनों आकाश की ओर बढ़े, जहां सूर्यदेव ने उनका रास्ता रोका. इस पर दोनों सूर्य से ही युद्ध करने लगे. सूर्य के अमोघ अस्त्रों के आगे उनकी एक नहीं चली तो उन्होंने वरदान के तहत महादेव को पुकारा. वरदान में बंधे शिव को आना पड़ा. इस तरह सूर्य और शिव आमने-सामने हो गए.
शिवजी ने सूर्यदेव पर किया प्रहार
महादेव शिव को रोकना असंभव था और अगर न रोका जाता तो माली-सुमाली आकाश की ओर बढ़ सकते थे. इसलिए सूर्यदेव को भगवान शिव से युद्ध का निर्णय लेना पड़ा. माली-सुमाली पर हुए सूर्य के प्रहार को रोकने के लिए शिव ने उन पर त्रिशूल चला दिया. इससे सूर्य चेतनाहीन हो गए और उनके तीन टुकड़े हो गए.पहला टुकड़ा जहां गिरा वहां आज कोणार्क सूर्य मंदिर है. यह मंदिर ओडिशा में है. दूसरा टुकड़ा जहां गिरा वहां आज देवार्क सूर्य मंदिर है. यह मंदिर बिहार में मौजूद है. तीसरा टुकड़ा जहां गिरा वहां आज लोलार्क सूर्य मंदिर है. यह मंदिर उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास है.
सूर्य के चेतनाहीन होने से उनके पिता कश्यप क्रोधित हो गए और उन्होंने महादेव शिव को श्राप दिया कि जिस तरह आपने मेरे पुत्र पर त्रिशूल प्रहार किया है, ठीक इसी तरह एक दिन आपको अपने पुत्र पर त्रिशूल चलाना होगा. इसी श्राप के कारण भगवान शिव को बालगणेश का मस्तक काटना पड़ा था.
सूर्य देव की पूजा के स्पष्ट प्रावधान भी रामायण और महाभारत में भी मिलते हैं. रामायण में जहां श्रीराम का कुल ही सूर्यवंश है तो वहीं महाभारत में सूर्य खुद एक किरदार निभाते नजर आते हैं. कर्ण हर रोज गंगा स्नान के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाता था. वह कमर तक पानी में खड़े रहकर उनकी उपासना के मंत्र पढ़ता था. कुंती, द्रौपदी, पितामह भीष्म, यहां तक खुद कृष्ण भी सूर्यपूजा करते दिखते हैं.
कृष्णपुत्र सांब ने भी की थी सूर्य पूजा
सूर्यपूजा और उनकी लंबी तपस्या की एक कहानी तो कृष्ण पुत्र साम्ब से जुड़ी है. श्रीकृष्ण और जाम्बवंती का बेटा सांब दिखने में बिल्कुल कृष्ण के ही जैसा था. अपनी इसी छवि का फायदा उठाते हुए वह कई लड़कियों को अपने झूठे प्रेम जाल में फंसा लेता था. एक दिन कृष्ण को जब यह पता चला तो उन्होंने सांब को समझाने की कोशिश की.
साम्ब नहीं माना तो गुस्साए कृष्ण ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया. श्राप मिलने के बाद सांब ने माफी मांगी तब कृष्ण ने उसे सूर्य की तपस्या की राह दिखाई. उन्होंने कहा कि सूर्य ही जगत का आधार हैं और सभी प्राणियों की चेतना भी वही हैं. रोग और व्याधि की औषधि भी वही हैं. इसलिए सूर्यदेव को प्रसन्न करो. साम्ब ने पूरे भारत में भ्रमण करते हुए सूर्यदेव की तपस्या की और उनके मंदिर भी बनवाए. बिहार के उलार (ओलार्क) में भी सांब का स्थापित एक सूर्य मंदिर आज भी है.
देशभर में सूर्यमंदिर
गुजरात के मोढेरा में भी प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है, जो प्राचीनता की गवाही देता है. कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर काफी चर्चित रहा है, जो कि अब एक ध्वस्त संरचना है. इसके अलावा देश के कई इलाकों में सूर्य मंदिर हैं, जिनमें कोणार्क सूर्य मंदिर, कटारमल सूर्य मन्दिर, रनकपुर सूर्य मंदिर, सूर्य पहर मंदिर, सूर्य मंदिर प्रतापगढ़, दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, देव सूर्य मंदिर, औंगारी सूर्य मंदिर, बेलार्क सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर हंडिया, सूर्य मंदिर, गया, सूर्य मंदिर, महोबा, रहली का सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर झालावाड़, सूर्य मंदिर रांची.
सूर्य ही इस संसार की आत्मा है. भारतीय जनमानस के लिए वह सिर्फ विटामिन डी का सोर्स नहीं है, बल्कि सकारात्मकता का पर्याय है. त्याग की भावना का उदाहरण है. खुद जलकर समस्त संसार को प्रकाशित करने का संकल्प है.इसीलिए सूर्य वैदिक युग से लेकर आज तक पूजनीय हैं.
विकास पोरवाल