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ओडिशा के पुरी धाम में इस वक्त रथयात्रा की तैयारियां जारी हैं. रथयात्रा का आयोजन आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को होता है. इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर से निकलकर भ्रमण के लिए जाते हैं. उनका यह भ्रमण कार्यक्रम ही रथयात्रा कहलाता है, जिसे श्रद्धालु बहुत जोर-शोर से मनाते हैं और उनकी आकांक्षा होती है कि वह भी भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें.
रथयात्रा भले ही एक दिन का वार्षिक आयोजन है और वर्ष में एक ही बार होता है, लेकिन इसकी तैयारी पूरे साल चलती है. इसमें भी तिथियों का बहुत महत्व होता है. जैसे कि मकर संक्रांति के दिन से मंदिर में रथ बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है और फिर हर आने वाली तिथि के साथ चरणबद्ध (स्टेप बाय स्टेप) तरीके से ये कार्य संपन्न होता है. इसमें हर तिथि और उस दिन की जाने वाली रीति को एक खास नाम दिया गया है, जैसे कि रथयात्रा के आयोजन से ठीक 15 दिन पहले भगवान की तबीयत खराब होना.
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जब गर्मी की अधिकता होती है तो उस दिन देव प्रतिमाओं को 108 घड़े के जल से स्नान कराया जाता है. इस स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और फिर वह एकांतवास में चले जाते हैं. एकांतवास की इस प्रक्रिया को पुरी में 'अनासरा' कहते हैं. इन 15 दिनों में देव विग्रहों के दर्शन नहीं होते हैं. 15 दिनों के बाद जब जगन्नाथ जी ठीक होते हैं तब उस दिन 'नैनासार उत्सव' मनाया जाता है. इस दिन भगवान का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और इसके बाद वह भ्रमण के लिए तैयार होते हैं. तब फिर श्रीमंदिर के सिंहद्वार पर रथ लाए जाते हैं और फिर दो दिन बाद यहां से रथयात्रा प्रारंभ होती है. ये कुछ ऐसा है कि बीमार होने के कारण जब जगन्नाथ जी कई दिनों तक एकांत में होते हैं तो वह मन बदलने के लिए भाई-बहन के साथ यात्रा पर निकलते हैं.
यहां सवाल उठता है कि क्या भगवान भी बीमार पड़ते हैं? लेकिन क्यों और कैसे? इन सवालों के पीछे की वजह एक करुण कथा है, जगन्नाथ प्रभु की महिमा में यह जनश्रुति काफी प्रचलित है. बहुत पहले की बात है. ओडिशा के पुरी क्षेत्र में एक भक्त माधव दास रहते थे. वह रोज ही भगवान की पूजा करते थे, प्रसाद में जो मिलता उसी से जीवनयापन करते थे और सादा जीवन जीते थे.
एक बार वह बीमार पड़े. उन्हें तेज ज्वर (बुखार) हो गया. वह अकेले थे तो कोई उनकी सेवा के लिए नहीं था. फिर भी उन्होंने अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं की. लोग उन्हें सलाह देते थे कि वैद्य से मिलो, औषधि लो, लेकिन उपचार के लिए लेकर कोई नहीं जाता था. माधवदास भी कहते कि जब भगवान मेरा ख्याल रख रहे हैं तो मुझे किसी की क्या जरूरत. लेकिन, एक दिन बीमारी से कमजोर माधव दास बेहोश होकर गिर पड़े.
तब अपने भक्त को संकट में देखकर भगवान खुद श्रीमंदिर से निकल आए और उनकी सेवा करने लगे. जगन्नाथ जी उन्हें दवा देते, हाथ-पैर दबाते. नहलाते, कपड़े बदलते और अपने हाथ से भोजन कराते थे. माधवदास जब ठीक होने लगे तब उन्होंने पहचाना कि भगवान खुद उनकी सेवा में लगे हैं. यह देखकर माधव दास रो पड़े. उन्होंने कहा कि आप मेरी सेवा करने क्यों आए? आप मुझे तुरंत ठीक भी तो कर सकते थे. तब जगन्नाथ जी ने कहा, मैं अपने भक्तों का साथ नहीं छोड़ता, लेकिन उनके कर्म में जो लिखा है वह तो होगा ही, लेकिन चलो, मैं एक काम करता हूं. अभी तुम्हारी बीमारी के 15 दिन और शेष हैं. वह मैं अपने ऊपर ले लेता हूं. उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी.
जगन्नाथ जी अपने मंदिर पहुंचे और उसी दिन उन्हें स्नान के बाद ज्वर होने लगा. तब से यह परंपरा पुरी में चल पड़ी. भगवान अपने उसी भक्त माधवदास की बीमारी में बीमार होते हैं और इस दौरान एकांतवास में चले जाते हैं. इसे अनासार कहते हैं. कहते हैं कि जैसे एक बार उन्होंने अपने भक्त माधवदास की पीड़ा अपने ऊपर ली थी, उसी तरह वह हर साल अपने भक्तों की पीड़ा हर लेते हैं, लेकिन भक्ति सच्ची होनी चाहिए. इसके 15 दिन बाद जब भगवान ठीक होते हैं तब नैनासर उत्सव मनाते हैं, इसके बाद ही भगवान भ्रमण के लिए बाहर निकलते हैं. इसी भ्रमण को रथयात्रा कहते हैं.
भगवान जगन्नाथ के धाम पुरी के श्रीमंदिर में हर साल अनासर की विधि की जाती है. यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन संपन्न कराया जाता है. इसे अनवसर कहा जाता है. इसे स्नान उत्सव, स्नान पूर्णिमा भी कहते हैं. गर्मी से राहत पाने के लिए, स्नान उत्सव (देव स्नान पूर्णिमा) के दौरान मंदिर के देवता 108 घड़े ठंडे पानी से स्नान करते हैं. इस शाही स्नान समारोह के बाद तीनों देवता बीमार हो जाते हैं, और उन्हें 15 दिनों की अवधि के लिए सार्वजनिक दृश्य से दूर रहना पड़ता है. इसे 'अनासर' या 'अनवसर' काल के रूप में जाना जाता है. अनवसर काल ज्येष्ठ पूर्णिमा से शुरू होता है और आषाढ़ अमावस्या के साथ समाप्त होता है.
अनावसर काल के 15 दिनों में मंदिर की पूजा पद्धति रोजाना से कुछ अलग हो जाती है. इस दौरान जबकि मुख्य देव प्रतिमाओं के रूप में देवता विश्राम करते हैं तब श्रीमंदिर में देवताओं के रंगीन पटचित्रों की पूजा की जाती है. इन चित्रों में भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु, भगवान बलभद्र को भगवान शिव और देवी सुभद्रा को आदिशक्ति के रूप में दर्शाया गया है. सुबह मंगला आरती होती है और दीप जलाए जाते हैं. इसके बाद देवताओं को दंतधौती (दांत साफ करना, मुख शुद्धि) फिर स्नान कराया जाता है. वस्त्र अलंकरण साफ किए जाते हैं. अबकाश पूजा के दौरान, पाठ भी किया जाता है.
अनासर की विधि के दौरान जब आषाढ़ की कृष्ण पंचमी तिथि आती है तो इस दिन श्रीमंदिर में अनासर पंचमी मनाई जाती है. अनासर पंचमी के अवसर पर गुरुवार को महाप्रभु जगन्नाथ और उनके भाई-बहन भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को 'फुलुरी' तेल उपचार दिया जाता है. इसे फुलुरी तेल सेवा के नाम से जाना जाता है. देव प्रतिमाओं को फुलुरी तेल लगाया जाता है. यह विशेष अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों को 'स्नान यात्रा' के दौरान अत्यधिक स्नान के कारण हुए बुखार से मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है.
फुलुरी तेल विधि के लिए कई सुगंधित फूलों जैसे केतकी, मल्लि, बौला और चंपा, जड़ों, चंदन पाउडर, कपूर, चावल, अनाज और जड़ी-बूटियों के साथ तेल को मिलाकर ‘फुलुरी’ तेल तैयार किया जाता है. फुलुरी तेल बनाने के लिए शुद्ध तिल का तेल, बेना की जड़ें, चमेली, जुई, मल्ली जैसे सुगंधित फूल और चंदन पाउडर उन 24 सामग्रियों में से हैं जिनका उपयोग किया जाता है. हर साल रथ यात्रा के पांचवें दिन 'हेरा पंचमी' के अवसर पर तैयारी शुरू होती है और लगभग एक साल तक जमीन के नीचे संग्रहीत होने के बाद मंदिर के अधिकारियों को उपयोग के लिए सौंप दिया जाता है. तीनों देवता रथ यात्रा से एक दिन पहले ‘नव जौबाना दर्शन’ के अवसर पर फुलुरी तेल उपचार के बाद अपनी बीमारी से ठीक हो जाएंगे और फिर रथयात्रा निकलेगी.
पहला पार्टः न भुजाएं-न चरण, बड़ी-बड़ी आंखें...पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ईश्वर का स्वरूप ऐसा क्यों है!
दूसरा पार्टः बनते-बनते नष्ट हो जाता था श्रीमंदिर, आखिर पुरी में कैसे स्थापित हुआ जगन्नाथ धाम
तीसरा पार्टः जगन्नाथ मंदिर से पहले कबीले में होती थी भगवान नीलमाधव की पूजा... जानें ये रहस्य
चौथा पार्टः ...वो शर्त जिसके टूटने से अधूरी रह गईं जगन्नाथजी की मूर्तियां
पांचवां पार्टः बनने के बाद सदियों तक रेत में दबा रहा था जगन्नाथ मंदिर, फिर कैसे शुरू हुई रथयात्रा
छठा पार्टः न शिवजी चख सके, न ब्रह्मा...जगन्नाथ धाम में कैसे बनना शुरू हुआ महाभोग
सातवां पार्टः कौन हैं देवी बिमला, पुरी में जिनको भोग लगे बिना अपना प्रसाद नहीं चखते भगवान जगन्नाथ
Illustration By: Vani Gupta