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वो छह-सात साल की रही होगी, जब उसे लग गया था कि वो एक लड़की है. लेकिन जब शरीर की पहचान मर्द की हो न, तो दुनिया के लोग रूह की नहीं सुनते. जब वो शिव्यांक थी तो अकेलापन, डिप्रेशन, दुख, कुंठा यही उसकी झोली में थे. आज तीन साल से वो सोनाली शर्मा है और उसके हिस्से में खुशी, कॉन्फीडेंस और लड़कियों से दोस्ती के किस्से हैं शिव्यांक के सोनाली शर्मा बनी ट्रांस वुमन की कहानी किसी को भी झकझोरने वाली है. अपनी लैंगिक पहचान के संकट से जूझकर सेक्स चेंज कराकर अपनी राइट बॉडी पाने की पूरी यात्रा सोनाली ने aajtak.in से साझा की, आगे की कहानी खुद सोनाली की जुबानीः-
मैं आज से 24 साल पहले महाराष्ट्र के नागपुर के एक घर में बेटे के रूप में पैदा हुई थी. मुझसे पहले मेरी बड़ी बहन थी, फिर घर में मेरा छोटा भाई भी आ गया. हम तीनों साथ बढ़ रहे थे, लेकिन मुझे छह-सात साल की उम्र में पता लगने लगा था कि मैं लड़की हूं. मेरे प्रति शायद तभी से लोगों का रवैया अलग था. सब कहते थे कि इसका फेसकट कितना सुंदर है, ये लड़की है कि लड़का है? मेरे पिता फार्मिंग का काम करते थे. उनको या आसपास के लोगों को पता ही नहीं था कि ट्रांस जेंडर भी कुछ होता है. मुझे भी उस वक्त जेंडर डिस्फोरिया था (ये एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें लोगों को लगता है कि उनका शरीर उनकी पहचान के मुताबिक नहीं है). मैं भी कहने को लड़का थी पर हमेशा लगता था कि मुझे लड़की होना चाहिए. ये बात छोटी उम्र में मुझ में बहुत बेचैनी पैदा कर रही थी.
मैं बड़ी होते वक्त खुद में बहुत कनफ्यूज थी. मैं मां का बहुत लाड़ला बेटा थी लेकिन चाहती थी कि वो मुझे बेटी मानें. मुझसे बेटों जैसी उम्मीद न करें. अब दस बारह साल की उम्र की थी तो लड़कियां ही मुझे ज्यादा पसंद आतीं. बच्चों से बहुत प्यार था. लड़कियों की ड्रेसेज भी पसंद आती थीं लेकिन पहनने की मनाही थी. जब कोई पूछता कि बड़ी होकर तुम क्या बनोगी. तो मैं झट से जवाब देती कि 'मैं मां बनूंगी'. बच्चों के साथ खेलना, उठना-बैठना बहुत पसंद था.
उधर, स्कूल में कुछ अच्छा नहीं चल रहा था. आठवीं तक तो जैसे तैसे पढ़ाई हो गई. लेकिन नौवीं में पहुंचते पहुंचते लड़कों के साथ बैठना मुश्किल हो गया. मेरे साथ वहां बहुत बुलिंग होती थी. इससे परेशान होकर स्कूल छोड़ दिया, धीरे-धीरे सबका साथ छूट गया और मैंने खुद को घर में कैद कर लिया. मैं घर में भी एक कमरे में बंद वो लड़की थी जो लड़के के शरीर रूपी पिंजरे में कैद थी. ये डिप्रेशन वाला मोड 12-13 साल की उम्र से शुरू होकर काफी लंबा चला. स्कूल की वो सब बातें याद आती थीं. मुझे गंदी तरह छेड़ना, बाथरूम में धक्का देना, बुलिंग करना. फिर धीरे धीरे मेरा मन मानने लगा कि मैं एक लड़की ही हूं लेकिन लोग मुझे लड़की की तरह नहीं देखते थे. कहीं न कहीं बॉडी को लेकर वो मुझे उसी पहचान से ट्रीट करते या कई बार उससे भी बुरा.
फिर टीनेजर में मेरे साथ कुछ अलग ही हो रहा था. मेरी ग्रोथ जो हो रही थी वो हल्की दाढ़ी के साथ लड़के जैसी थी लेकिन दिमाग महिला की तरह विकसित हो रहा था. अब मैंने वो शहर और घर छोड़ने का तय कर लिया. नागपुर से सीधे दिल्ली आ गई. मैं आपको बताऊं कि हर ट्रांस वुमन को अपनी फैमिली छोड़नी पड़ती है. ये उनकी नियति है. मैं घर वालों को बोलकर दिल्ली आ गई और यहां काम खोजना शुरू किया. सबसे पहले होटल इंडस्ट्री में काम किया. दिल्ली में आई तो यहां लोग बहुत ज्यादा जज नहीं करते थे. हां ये था कि वो सोचते थे कि चलो फेमिनिन है, लेकिन लोगों को यह पता नहीं था कि ट्रांसवुमन है. कभी-कभी कपड़े आपकी आइडेंटिटी नहीं छुपाते. लोग मेरे भीतर छुपी औरत को पहचान ही लेते थे, कई जगह हंसी का पात्र बनती थी.
फिर मैं सलून इंडस्ट्री में आई यहां मुझे प्यार से स्वीकार किया गया. यहां पर मुझे अच्छा लगने लगा. यहां लोग मुझे माही बुलाने लगे. वो 'आ रही हो' 'जा रही हो’ कहते थे, इसलिए सुनने में अच्छा लगता था. जब ये मुझे मेरी आत्मिक पहचान से बुलाते थे तो मन के किसी कोने में पूरी तरह से औरत बनने की चाह जग जाती थी. फिर मैंने पैसे जोड़ने शुरू किए और यहां से मेरे ट्रांस वुमन बनने का सफर शुरू हुआ. अब मैं शिव्यांक से सोनाल शर्मा बनने का तय कर चुकी थी. साइकेट्रिस्ट को दिखाया तो उन्होंने बहुत आसानी से दो-तीन महीने में ही मुझे फीमेल का सर्टिफिकेट दे दिया.
बता दूं कि इस पूरी प्रक्रिया में पहले साइकेट्रिस्ट ही देखते हैं कि आप नये किरदार के लिए कितने कंफर्टेबल हो. साइकोलॉजिस्ट आपको चेक करता है कि आप जिस पहचान को पाना चाह रहे हैं वो आप हो कि नहीं, क्योंकि इसे रिवर्स नहीं किया जा सकता. मैं दिमाग से परफेक्ट थी तो एक दो महीने में ही सर्टिफिकेट दे दिया. अब एंडोक्रोनोलॉजिस्ट ने हार्मोन देना शुरू किया. इस प्रक्रिया में भी तीन साल कम से कम और अगर मेनली ज्यादा हैं तो चार से पांच साल लग जाते हैं. मुझमें धीरे धीरे हार्मोनल चेंज आने लगे थे. मेरे में कई तरह के बदलाव होने लगे थे. अब बारी थी पेनफुल सर्जरी की, लेकिन सब मैं बर्दाश्त कर रही थी क्योंकि ये मेरी अपनी 'राइट बॉडी' में जाने की यात्रा थी. उस एक दिन मुझे अपने शरीर के मेल पार्ट से बिछड़कर बहुत अच्छा लगा. वो मेरे लिए पेनफुल था, लेकिन आज मैं बहुत खुश हूं. वो मेरे लिए एक पिंजरा था, जैसे देश आजाद हुआ तो लोग खुश हुए, वैसे ही मैं आजाद हुई तो बहुत खुश हुई.
अभी भी मेरा हार्मोनल ट्रीटमेंट चल रहा है, अभी थोड़ा टच अप लेना है एक साल बाद. मैंने जब पापा को बताया था कि होमटाउन मुझे इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि यहां लोग मुझे गलत आइडेंटिटी से जानते हैं. यहां अब मेरे लिए एक नई दुनिया है तो ये उनसे कहना भी भारी लग रहा था, लेकिन आज ऐसा नहीं है. आज सोनाली के ये तीन साल हैं. मैं सच कहूं तो इस पूरी जर्नी में आपको अपने आप से लड़ना बहुत मुश्किल है. अभी भी मेरी बॉडी रिकवरिंग चल रही है, इतने चेंज कि मैं खुद भी नहीं देख पा रही, फीमेल फीचर्स और बढ़ रहे हैं. धीरे धीरे डिप्रेशन और सिर दर्द खत्म हो गया है. साथ ही अब सारी झिझक खत्म हो गई है. सबको अब ओपनली बताती हूं कि अब मैं ट्रांसवुमन हूं.
जब आप एक बॉडी में दो आत्माएं रख रहे हैं, आपको दोनों को ही जिंदा रखना है. ये कठिन होता है. मुझे मेकअप आर्टिस्ट के तौर पर लोग जानते थे. लोगों का व्यवहार अक्सर चेंज होता था लेकिन लोग जज नहीं कर पाते थे. मेल जेंडर में थी तो मेरी राइट बॉडी मेरे साथ नहीं थी. जब मैं अपनी आईडेंटिटी में पूरी तरह आई तो मेरे लिए दुनिया बदल गई थी. मैं नोएडा में जिस सोसायटी में रहती हूं, वहां मुझे सब बहुत प्यार करते हैं. पहले मुझे सारे दोस्त अपने जैसे मिले थे लेकिन अब नॉर्मल फ्रेंडस लड़के-लड़कियां हैं. एक दौर था जब मैं अकेली पड़ गई थी आज पापा बहुत सपोर्ट करते हैं. लेकिन सबको मनाने में बहुत लंबा समय लगा, तीन चार साल पहले ऐसा सब नहीं था. आज मेरे जीजा भी मुझे मेरी पहचान के साथ एक्सेप्ट करते हैं. बहन भाई भी बहुत प्यार करते हैं.
ट्रीटमेंट के दौर में रीसेंटली एक रिलेशनशिप में आई थी, तीन साल पहले हम मिले थे. हम एक दूसरे के लिए सबकुछ थे. लेकिन ट्रीटमेंट के दौरान मेरे मूड स्विंग हो रहे थे. वो मेरे लिए बहुत ईमानदार था, वो मुझे फीमेल ही देखता था. हमेशा कहता था कि तुम्हारे शरीर से नहीं रूह से प्यार करता हूं. तीन साल बाद वो बॉम्बे शिफ्ट हो गया, मुझे इग्नोर करने लगा तो मुझे हर्ट हो रहा था. लेकिन इन सबसे भी मैं टूटी नहीं, मुझे लगा कि अपनी लाइफ सबको जीने का अधिकार है. आज मेरा बेस्ट फ्रेंड है, जो बिना किसी रिश्ते के मेरी हेल्प करता है. मैंने सोच लिया कि जो मेरी आइडेंटिटी को लेकर इतना डर रहा था कि वो मुझे लोगों के सामने स्वीकार कैसे करे तो उसके लिए मैं क्यों रोऊं.
सोनाली कहती हैं कि अगर आप बहुत खूबसूरत हैं तो ट्रांजेशन के बाद सफर काफी आसान रहता है. इसमें मुझे बहुत ज्यादा प्रॉब्लम नहीं हुई, अब तो लोग मुझे एक महिला के तौर पर ही देखते हैं. मुझे बहुत नॉर्मल लेते हैं, पहले कहीं जाती थी तो हंसते थे. ट्रांजेशन के बाद अगर आप ब्यूटीफुल निकल गईं, तो सर्वाइव करना बहुत आसान है. मेरे हल्की बियर्ड थी तो मैंने पहले ही लेजर लेना शुरू कर दिया था. फिर हार्मोनल चेंज से बॉडी फिट होने लगती है, इससे ब्रेस्ट साइज अच्छा हो जाता है. अगर नहीं होता तो इम्प्लांट करा सकते हैं. सब बहुत पेशंस के साथ काम करना पड़ता है. ये एक मैजिक भी है, लेकिन साथ में साइड इफेक्ट भी होता है. आप अपना नेचुरल हार्मोन खो देते हैं, कई बार बॉडी वीक हो जाती है. डॉक्टर ने मेरा टेस्टोस्टोरोन हटा दिया. अब मुझे एस्ट्रोजन पिल्स लाइफटाइम लेनी पड़ेंगी क्योंकि वो हार्मोन बॉडी में नहीं बनते. प्राइवेट इलाज में इसमें सात आठ लाख रुपये लग जाते हैं, ये अचानक नहीं धीरे धीरे खर्च होते हैं, हालांकि हार्मोन्स की टेबलेट सस्ती होती हैं, लेकिन जो इंजेक्शन लगते हैं, वो काफी महंगे होते हैं.
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर्स ने मेरे पापा की भी काउंसिलिंग की. मैंने पापा से तब कहा था कि मैं आपका बेटा-बेटी दोनों हूं, लेकिन अगर आप मुझे बेटी कहोगे तो मैं खुद को जल्दी एक्सेप्ट कर पाऊंगी. इस तरह पापा ने कहा कि अच्छा ठीक है तुम मेरी बेटी नहीं स्पेशल बेटी हो. वो अब धीरे धीरे मुझे स्वीकार करने लगे. इसलिए मुझे जेंडर सपोर्ट जल्दी मिल गया. अब आधार, पैन सबमें मैं फीमेल ही हूं, तो मेरा एक्सेप्टेंस बहुत तेजी से बढ़ रहा है. वैसे मेरे पास प्लस प्वाइंट हैं कि मैं फीमेल ज्यादा हूं.
मेरा बचपन का सपना मां बनना है. अब जाहिर है कि मैं बायोलॉजिकल मां नहीं बन सकती लेकिन मैं दो साल बाद बच्चा गोद लूंगी. अभी मैंने सोनाली बनने के बाद अपनी नई पहचान के साथ नया सलून डाला है, वक्त फ्रेंडस के साथ पार्टी-क्लबिंग और फीमेल दोस्तों के साथ मस्ती में ज्यादा गुजरता है. अपने को सेटल कर लूं तो बच्चे का प्लान करूं. मैं एक बहुत अच्छी जिम्मेदार मां बनना चाहती हूं. अब सोच लिया है कि मां जरूर बनूंगी, कोख नहीं है तो बाइ नेचर मां बनूंगी. लेकिन, मैं उस फ्यूचर की कल्पना करती हूं जिसमें मेरे जैसी ट्रांसवुमन आसानी से मां बन सकेंगी.
Creative Director: Rahul Gupta