इंदिरा की हार की घोषणा से डर रहे थे चुनाव अधिकारी, पत्नी ने दी थी हिम्मत –‘बर्तन मांज लेंगे लेकिन...’

23-03-2024

बात इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव की है. देश की सबसे बड़ी वीवीआईपी सीट रायबरेली में वोटों की गिनती चल रही थी. काउंटिंग सेंटर पर गजब की गहमागहमी थी. एकदम टेंशन का माहौल. काउंटिंग में इंदिरा गांधी लगातार पिछड़ रही थीं. आखिरकार इंदिरा चुनाव हार गईं. अब इसकी घोषणा काउंटिंग सेंटर के बाहर करनी थी. लेकिन चुनाव अधिकारी विनोद मल्होत्रा के हाथ-पैर फूले हुए थे. वे चुनाव नतीजों का ऐलान नहीं कर पा रहे थे. उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही थी. इधर इंदिरा के एजेंट और सीनियर कांग्रेस नेता एमएल फोतेदार तीन-तीन बार रिकाउंटिंग करवा चुके थे. हर बार नतीजे एक ही थे. इंदिरा चुनाव हार गई थीं.

चुनावी रैली में इंदिरा गांधी. (फोटो क्रेडिट- गेटी इमेजेस)

इसी उधेड़बुन में चुनाव अधिकारी घर पहुंचे. चुनाव नतीजों का ऐलान अभी तक नहीं हुआ था. काउंटिंग सेंटर पर लोग उग्र होते जा रहे थे. घर पहुंचते ही विनोद मल्होत्रा अपनी पत्नी से मुखातिब हुए. उनकी पत्नी ने इस IAS को कुछ ऐसा कहा कि उन्होंने तय कर लिया- कुछ भी हो जाए अपना फर्ज निभाऊंगा और ईमानदारी से निभाऊंगा.

1977 के चुनाव के इस रोमांच का पूरा वर्णन वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब Beyond the Lines: An Autobiography में किया है. वह किताब में लिखते हैं, ‘1977 के चुनावों के कुछ दिन बाद मैं लखनऊ की उड़ान पकड़कर इंदिरा गांधी के चुनाव क्षेत्र रायबरेली का दौरा करने गया. मैं डिप्टी कमिश्नर विनोद मल्होत्रा से मिलना चाहता था, जो वहां के चुनाव अधिकारी भी थे. उन्होंने इंदिरा गांधी की हार की घोषणा कर बड़ा साहस किया था. मैं उन्हें बधाई देना चाहता था. उन्हें ये आभास तक नहीं हुआ होगा कि कांग्रेस पूरे उत्तर भारत से उखड़ गई थी. वोटों की गिनती के दौरान रेडियो पर कोई घोषणा नहीं की जा रही थी. परिणामों की घोषणा भी शाम को काफी देर से की गई.’

कैप्शनः इंदिरा गांधी. (फोटो क्रेडिट- गेटी इमेजेस)

नैयर के मुताबिक, ‘डिप्टी कमिश्नर का घर उनके दफ्तर के पीछे ही था. एक चपरासी मेरा कार्ड लेकर अंदर गया तो मल्होत्रा खुद मुझसे मिलने आए और मुझे अपने दफ्तर ले गए. मेरा सीधा सा सवाल था कि उन्होंने नतीजों की घोषणा करने का फैसला कैसे किया? उन्होंने कहा कि उन्हें पहले राउंड से ही आभास हो गया था कि इंदिरा गांधी हारने जा रही हैं. इंदिरा गांधी के एजेंट एमएल फोतेदार ने तीन बार वोटों की गिनती करवाई थी. ओम मेहता ने दो बार और आर के धवन ने तीन बार उन्हें फोन कर नतीजों का ऐलान नहीं करने को कहा था.’

बर्तन मांज लेंगे लेकिन बेईमानी नहीं करेंगे….

कैप्शनः इंदिरा गांधी को रायबरेली में हराने वाले राजनारायण.

इंदिरा गांधी का रसूख कुछ ऐसा था कि उनकी हार का ऐलान करने से चुनाव अधिकारी डर रहे थे. विनोद मल्होत्रा इस कदर असमंजस में थे कि अपनी पत्नी के समझाने के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी की हार का ऐलान किया था.

नैयर ने किताब में जिक्र किया है कि ‘रायबरेली के चुनाव अधिकारी विनोद मल्होत्रा मुझे अपने घर भी ले गए थे. वहां चारपाई पर उनकी पत्नी एक छोटे से बच्चे को गोद में लिए बैठी थीं. मल्होत्रा ने कहा कि जब इंदिरा गांधी की हार की पुष्टि हुई तो उन्होंने घर आकर पत्नी की सलाह ली. उन्होंने कहा कि अगर वे नतीजे की घोषणा करेंगे तो उन्हें इंदिरा गांधी के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है क्योंकि इंदिरा उपचुनाव जीतकर वापस सत्ता में आ सकती थीं. उनका ख्याल था कि इंदिरा गांधी की हार एक अपवाद मात्र थी और केंद्र में कांग्रेस की सरकार ही बनने जा रही है.’

इस पर मल्होत्रा की पत्नी ने उनसे कहा कि हम बर्तन मांज लेगे लेकिन बेईमानी नहीं करेंगे. इसके बाद मल्होत्रा को नतीजे की घोषणा करने में कोई हिचक महसूस नहीं हुई.

एक गलत फैसला और सालों की टीस...

संजय गांधी समेत इंदिरा के करीबियों को एक सवाल हमेशा अखरता रहा कि उन्होंने इमरजेंसी हटाकर अचानक देश में आम चुनाव कराने का फैसला क्यों किया? लेकिन इसके पीछे इंदिरा की योजना थी कि वो देश में जल्द चुनाव कराकर विपक्ष को तैयारी का मौका नहीं देना चाहती थीं. इस चुनाव में जनता पार्टी 542 में से 296 सीटें जीतकर इतिहास रच चुकी थी. इंदिरा को इस हार की उम्मीद नहीं थी और ये एक ऐसा फैसला था जिसकी टीस उन्हें सालों तक सालती रही.

देश छोड़ने के लिए प्राइवेट प्लेन ढूंढ रहे थे राजीव गांधी

1977 की हार से इंदिरा गांधी को गहरा धक्का लगा था. उन्हें इस हार का अंदाजा नहीं था. वह 1 सफदरजंग रोड स्थित अपने आवास से बाहर ही नहीं निकलती थीं. वह विजिटर्स से सिटिंग रूम के बजाए गार्डन में मिलती थीं. उन्हें लगता था कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार उनकी बातचीत टेप कर सकती है. वह हार से इतनी टूट गई थी कि उन्होंने राजनीति से संन्यास तक लेने का विचार कर लिया था. साथ ही उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा का डर भी सता रहा था.

चुनावी रैली में इंदिरा गांधी. (फोटो क्रेडिट- गेटी इमेजेस)

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How Prime Minister Decide में इसमें विस्तार से लिखा है. 1977 के चुनाव में हार के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी बहुओं सोनिया और मेनका गांधी और अपने पोते-पोती राहुल और प्रियंका को हिमाचल अपनी एक दोस्त सुमन दुबे के पास भेज दिया था. उन्हें लगातार परिवार की सुरक्षा का डर सता रहा था. इंदिरा ने अपने बड़े बेटे राजीव को मुंबई भेजा था ताकि वे एक प्राइवेट प्लेन का इंतजाम कर सकें और परिवार देश छोड़कर जा सके. जब राजीव इस सिलसिले में मुंबई में थे तो उस समय दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो में ज्वॉइंट डाइरेक्टर वी. वी नागरकर को आईबी में उनके एक सहयोगी ने इसकी सूचना दी कि राजीव गांधी एक प्राइवेट प्लेन का इंतजाम कर रहे हैं. नागरकर ने तुरंत ये सूचना प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को दी. इससे चिंतित देसाई ने जयप्रकाश नारायण को तुरंत फोन कर मिलने को कहा. दोनों नेताओं की दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में मुलाकात हुई, जहां जेपी ठहरे थे. दोनों ने मिलकर विचार किया कि इस मामले को बेहद संवेदनशीलता से हैंडल करना है क्योंकि सरकार ये जोखिम नहीं उठाना चाहती थी कि जनता के बीच ये संदेश जाए कि मौजूदा सरकार की वजह से पूर्व प्रधानमंत्री का परिवार देश छोड़ना चाहता है.

ऐसे में मोरारजी देसाई और जेपी ने इंदिरा गांधी से मुलाकात की. उन्होंने इंदिरा को आश्वासन दिया कि उनका परिवार देश में पूरी तरह से सुरक्षित है. इस पर इंदिरा ने देसाई से कहा कि मैं संन्यास लेना चाहती हूं और बाकी जीवन हिमालय में किताबें पढ़ते हुए गुजारना चाहती हूं. मुझे सिर्फ एक गारंटी संजय की सुरक्षा की गारंटी चाहिए.

इंदिरा की वापसी और चुनाव अधिकारी की नियति..

1977 के चुनाव में जनता दल की जीत के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. लेकिन उनकी ये सरकार तीन साल का सफर ही तय कर पाई. 1980 में दोबारा लोकसभा चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी ने बंपर सीटों से सत्ता में वापसी की. उनकी अगुवाई में कांग्रेस को 529 में से 353 सीटें मिलीं. वहीं, 1977 के चुनाव में रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी की हार का ऐलान करने वाले चुनाव अधिकारी के साथ वही हुआ, जिसका उन्हें डर था.

नैयर बताते हैं कि तीन साल बाद इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं तो मुझे मल्होत्रा को खोजने में काफी परेशानी हुई. मैं जानना चाहता था कि वे ठीक-ठाक तो थे. उन्होंने मुझे बताया कि उनका लखनऊ के बाद यहां-वहां तबादला किया जाता रहा और वो इससे तंग आ गए थे. उन्होंने मुझसे कहा कि दोबारा उनसे संपर्क ना करूं.

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Story By: रीतू तोमर