We don't support landscape mode yet. Please go back to portrait mode for the best experience
सियाचिन ग्लेशियर... दुनिया का सबसे ऊंचा जंग का मैदान. ऊंचाई 20 हजार फीट. पारा माइनस 50 डिग्री सेल्सियस के नीचे. एक तरफ पाकिस्तान. दूसरी तरफ चीन. ऑपरेशन मेघदूत. 13 अप्रैल 1984 में भारतीय सेना ने ग्लेशियर पर कब्जा जमाया. ताकि पाकिस्तान और चीन दोनों पर नजर रख सके. सियाचिन ग्लेशियर नक्शे में एक उलटे पिरामिड जैसा दिखता है. आज सियाचिन डे (Siachen Day) है. आइए जानते हैं इस गौरवशाली ग्लेशियर के बारे में सबकुछ...
सियाचिन ग्लेशियर यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट और इंडियन प्लेट के बीच बने काराकोरम रेंज की एक घाटी है. असल में काराकोरम और हिमालय को बांटती हुई एक विशालकाय त्रिभुज नाली है. 76 किलोमीटर लंबे सियाचिन को दुनिया का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर माना जाता है. यहीं से दुनिया के तीसरे ध्रुव (Third Pole) की शुरुआत होती है.
सियाचिन ग्लेशियर पश्चिम में मौजूद साल्टोरो रिज (Saltoro Ridge) पूर्व में मौजूद काराकोरम रिज (Karakoram Ridge) के बीच में मौजूद है. साल्टोरो रिज की शुरुआत चीन सीमा पर मौजूद काराकोरम रेंज के उत्तर में सिया कांगड़ी से होती है. इस रिज की ऊंचाई 17,880 से 25,330 फीट है.
सियाचिन ग्लेशियर की ऊंचाई 11,875 फीट से शुरू होकर 20 हजार फीट तक जाती है. सबसे अधिक ऊंचाई वाला इलाका इंदिरा कोल पर है. जबकि सबसे कम ऊंचाई वाला इलाका भारत-चीन सीमा पर है. इस ग्लेशियर सिस्टम के अंदर करीब 2600 वर्ग किलोमीटर का इलाका आता है. जो पूरी तरह से साल भर बर्फ से ढंका रहता है.
बाल्टिस्तान में बोली जाने वाली भाषा बाल्टी में सिया का मतलब होता है गुलाब. चेन का मतलब होता बहुत अधिक मात्रा में मौजूद होना. यानी सियाचिन का मतलब हो गया गुलाबों की अधिकता वाली जमीन. इसी ग्लेशियर से नुब्रा नदी (Nubra River) निकलती है. ये लद्दाख से बहते हुए श्योक नदी (Shyok River) में मिलती है.
इसके बाद श्योक नदी 3000 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी (Indus River) में मिल जाती है. इसी ग्लेशियर से सिंधु को पानी मिलता है. यह ग्लेशियर दुनिया के सबसे बड़े सिंचाई सिस्टम को पानी देता है. पर खतरा यहां भी बढ़ता जा रहा है. 1984 से पहले इस दुर्गम स्थान पर कोई नहीं रहता था. लेकिन भारतीय सैनिक अब वहां पर रहते हैं. करीब 100 पोस्ट हैं भारतीय सेना. उनसे करीब 3000 फीट नीचे पाकिस्तानी सैनिकों का पोस्ट है. ऊंचाई का फायदा भारतीय सेना को है.
सियाचिन में पाकिस्तान या चीन तो दुश्मनी नहीं निभाते लेकिन मौसम जरूर निभाता है. 2500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले हुए इस ग्लेशियर पर दिन में औसत तापमान माइनस 20 डिग्री सेल्सियस रहता है. जो घटकर माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. हवा करीब 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती है.
ऐसे में सैनिकों को ऑक्सीजन की कमी महसूस होती रहती है. अक्सर ऑक्सीजन की कमी की वजह से जवान बेहोश होते रहते हैं. अगर ठंडे धातु को पकड़ लें तो स्किन हाथ से निकल जाती हैं. बर्फीले तूफान और हिमस्खलन का खतरा बना रहता है. सैनिकों पर क्या गुजरती है, जब वो इस जगह पर जाते या रहते हैं.
- जब हम पहाड़ों पर जाते हैं जब वायुमंडलीय ऑक्सीजन नीचे गिरती है.
- ह्यूमेडिटी घटने लगती है. धड़कन तेज होने लगती है.
- खून में ऑक्सीजन कम होने लगता है. सांस फूलने लगती है.
- 5000 फीट की ऊंचाई पर सांस लेने में दिक्कत.
- 6600 फीट की ऊंचाई पर सिरदर्द, थकान, पेट में दर्द.
- 8000 फीट की ऊंचाई पर एक्यूट माउंटेन सिकनेस, दिमाग और फेफड़ों पर जोर.
- 10 हजार फीट के ऊपर फैसले लेने की क्षमता कम होने लगती है. इल्यूशन होने लगता है.
- 11 से 18 हजार फीट के ऊपर जाने पर एक्स्ट्रीम हाइपोक्समिया होने का खतरा. ये जानलेवा है.
सियाचिन में सैनिकों का दुश्मन मौसम है... भारतीय सेना के जवानों को लगातार थकान, नींद आना, भूख मर जाना, फेफड़ों और दिमाग में सूजन, याद्दाश्त कम होना. डिप्रेशन, बोलते समय जुबान लड़खड़ाना और क्षमताओं में कमी.
1984 से लेकर अब तक भारत और पाकिस्तान के मिलाकर 2500 जवानों की मौत हो चुकी है. सियाचिन देश के उन कुछ गिने-चुने इलाकों में से एक है जहां न तो आसानी से पहुंच सकते हैं. सियाचिन ग्लेशियर पर किसी भी समय भारतीय सेना के तीन हजार जवान तैनात रहते हैं. इन जवानों की सुरक्षा भी बेहद जरूरी है.
भारत सरकार सियाचिन पर मौजूद जवानों हर दिन करीब 5 करोड़ रुपए खर्च करती है. इसमें सैनिकों की वर्दी, जूते और स्लीपिंग बैग्स भी शामिल होते हैं. साल 2021 में ही सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात जवानों को पर्सनल किट दी गई थी. ये किट उन्हें अत्यधिक सर्दी से बचाती है. हर एक किट की कीमत डेढ़ लाख रुपए है.
किट का मकसद जवानों को सर्वाइवल में मदद करना है. सियाचिन ग्लेशियर के ऊंचाई वाले इलाकों पर तैनाती के वक्त 170-180 किलोमीटर प्रतिघंटा या इससे ज्यादा गति से हवा चलती है. जो बर्फ की वजह से बेहद ठंडी हो जाती है. किट में सबसे महंगा होता है उनकी यूनिफॉर्म. यह एक मल्टीलेयर्ड एक्स्ट्रीम विंटर क्लोदिंग है. इसकी कीमत करीब 28 हजार रुपए हैं. साथ ही स्लीपिंग बैग भी रहता है. इसकी 13 हजार रुपए है.
डाउन जैकेट और स्पेशल दस्तानों की कीमत करीब 14 हजार रुपये हैं. जबकि, मल्टीपरपज जूतों की कीमत करीब 12,500 रुपए है. इसके अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर भी होता है, जिसकी कीमत करीब 50 हजार रुपए होती है. हिमस्खलन में दबे साथियों को खोजने के यंत्रों की कीमत करीब 8000 रुपए होती है.
1949 में पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) पर कब्जा किया. लेकिन इस समय हुए कराची समझौते में सियाचिन को लेकर स्थितियां क्लियर नहीं थी. क्योंकि उस समय किसी को भी इस ग्लेशियर का रणनीतिक और व्यापारिक महत्व समझ नहीं आ रहा था. लेकिन 1972 में शिमला एग्रीमेंट से विवाद की शुरुआत हुई. क्योंकि दोनों ही देश ये दावा करने लगे कि सियाचिन उनके लाइन ऑफ कंट्रोल (Line of Control) में आता है.
इससे पहले कि पाकिस्तान सियाचिन पर अपने कब्जे को लेकर मजबूत होता. भारत की तरफ से 1977 में कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार कुछ सैनिकों के साथ सियाचिन पर चढ़ाई करने गए. ताकि पता किया जा सके कि वहां मिलिट्री पोस्ट बनाने से कितना और कैसा फायदा होगा. इस दौरान उन्होंने सियाचिन की कई चोटियों पर चढ़ाई की. ये सब करते-करते उन्हें पांच साल लग गए. उनकी जानकारी के आधार पर भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) चला दिया.
13 अप्रैल 1984 सियाचिन के सबसे दुरूह इलाकों में से एक बिलाफोंड ला पर 13 अप्रैल 1984 को लद्दाख स्काउट और कुमाऊं रेजिमेंट ने कब्जा किया. फिर 17 अप्रैल को सिया ला पर कब्जा कर लिया. वहां पर अपने पोस्ट बना लिए. इस मिशन में भारतीय वायुसेना ने भी मदद की. बदले में पाकिस्तान ने अपनी इन्फैंट्री को आगे किया. प्रमुख पास पर कब्जा जमाने के लिए. ग्लेशियर के पास पाकिस्तान से पहली आमने-सामने की जंग 25 अप्रैल को हुई. लेकिन उन्हें हार मिली.
जून-जुलाई 1987 में बिलाफोंड ला के सामने के फीचर पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा हासिल करने में सफलता पाई. वहां पर उन्होंने कैद पोस्ट (Qaid Post) बनाई. इस पोस्ट को नायब सूबेदार बना सिंह ने 25 जून 1987 ने वापस कब्जे में लिया. पाकिस्तानियों को भगा दिया. जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. लेकिन पाकिस्तान को पीछे से हमला करने की आदत.
सितंबर 1987 में ब्रिगेडियर जनरल परवेज मुशर्रफ ने कैद पोस्ट पर कब्जा करने के लिए फिर ऑपरेशन कैदात शुरू किया. भारत ने बदले में ऑपरेशन वज्रशक्ति चला दिया. तब तक कैद पोस्ट का नाम बदलकर बना पोस्ट रख दिया गया था. ऑपरेशन वज्रशक्ति के आगे पाकिस्तानियों की एक भी न चली.
1989 में ब्रिगेडियर आरके नानावटी ने आर्टिलरी अटैक करके पाकिस्तान के कौसर बेस को पूरी तरह से उड़ा दिया. पाकिस्तानियों को वहां से भागना पड़ा. इसकी वजह से चूमिक ग्लेशियर की तरफ मौजूद पाकिस्तानी पोस्ट को रसद मिलना बंद हो गया. मजबूरी में पाकिस्तानियों को चूमिक पोस्ट को खाली करना पड़ा.
1992 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन त्रिशूल शक्ति चलाया. ताकि चुलुंग के पास मौजूद बहादुर पोस्ट को पाकिस्तानी हमलावरों से बचाया जा सके. इस हमले में पाकिस्तानी हेलिकॉप्टर पर इंडियन आर्मी के इग्ला मिसाइल ने हमला किया. जिसमें पाकिस्तानी फोर्स कमांडर नॉर्दन एरिया ब्रिगेडियर मसूद नाविद अनवारी मारा गया. साथी सैनिक भी. इसके बाद पाकिस्तानी सैनिक बहादुर पोस्ट से भाग गए.
इसके बाद पाकिस्तानियों ने 1995 में भी त्याक्शी पोस्ट पर हमला करने की नाकाम कोशिश की. जून 1999 को भारतीय सेना के ब्रिगेडियर पीसी कटोच और कर्नल कोनसाम हिमालया सिंह ने प्वाइंट 5770 (नावीद टॉप/चीमा टॉप/बिलाल टॉप) पर कब्जा किया. जिसपर पहले पाकिस्तानी सैनिकों का कब्जा था. ये साल्टोरो रिज के पास था.
सियाचिन ग्लेशियर पिछले 40 सालों से ज्यादा तेजी से पिघल रहा है. सैटेलाइट स्टडी के मुताबिक पता चला है कि ग्लेशियर हर साल करीब 110 मीटर पिघल जाता है. जिसकी वजह से उसके पूरे क्षेत्रफल में अब तक 35 फीसदी की कमी आई है. ऐसी आशंका है कि साल 2011 की तुलना में 2035 तक ग्लेशियर का आकार का पांचवां हिस्सा खत्म हो जाएगा. अगर ऐसे ही चलता रहा तो 11 साल में 800 मीटर और 17 साल में 1700 मीटर पिघल जाएगा.
सियाचिन ग्लेशियर के पिघलने की वजह सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग नहीं है. बल्कि सैनिकों की मौजूदगी, कैंपों का बनना. केमिकल ब्लास्टिंग, एविएशन फ्यूल और केरोसिन की सप्लाई के लिए पाइपलाइन. पिछले कुछ दशकों में सियाचिन ग्लेशियर के सालाना औसत तापमान में 0.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है. जिसकी वजह से वहां पर ज्यादा हिमस्खलन हो रहे हैं. ग्लेशियर पिघल रहा है. ग्लेशियर में दरारें पड़ रही हैं.
सियाचिन ग्लेशियर पर मौजूद सैनिकों के पास से निकलने वाला कचरा वहां की दरारों में डाल दिया जाता है. इस बात की पुष्टि द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने की थी. कचरे में खाने के पैकेट्स, बोतलें, खाली कारतूस, बम के गोले, पैराशूट आदि. करीब 1000 किलोग्राम कचरा ग्लेशियर की दरारों में हर दिन पहुंचता है.
फिर भारतीय सेना ने ग्रीन सियाचिन और क्लीन सियाचिन प्रोग्राम चलाया. कचरे को एयरलिफ्ट किया गया. इसके अलावा बायोडिग्रेडेबल कचरे को खत्म करने के लिए बायोडाइजेस्टर डाले गए. सियाचिन और उसके आसपास स्नो लेपर्ड, भूरे भालू और इबेक्स रहते हैं. मिलिट्री की मौजूदगी से दिखते कम हैं. लेकिन स्थानीय इलाकों में पाए जाते हैं.
12 जून 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सियाचिन पर पहुंचने वाले पहले प्रधानमंत्री थे. साल 2007 में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम सियाचिन जाने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष बने. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सियाचिन जा चुके हैं. इतना ही नहीं, 2008 में अमेरिकी सेना के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल जॉर्ज केसी भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर के साथ सियाचिन के दौरे पर गए थे. ताकि वो यह देख सकें कि भारतीय जवान वहां कैसे सुरक्षित रहते हुए ड्यूटी करते हैं.