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`कॉरपोरेट की नौकरी...ताने...8 बार प्रेग्नेंसी फ़ेल...` ज़रा इस मां की कहानी तो सुनिए....

...मार्च 2022 का वो खास दिन भी आया, जब मैं ऑपरेशन टेबल पर थी. डॉक्टरों की टीम मेरे आसपास खड़ी थी. मेरे लोअर पार्ट को एनस्थीसिया दिया जा रहा था. अब मेरे और मेरी औलाद के बीच की दूरी बस चंद मिनट की थी. इतनी बार हारने के बाद जीत की खुशी मेरे चेहरे पर थी. ऑपरेशन से पहले वाली घबराहट भी मुझे बहुत परेशान नहीं कर पा रही थी. खैर, ऑपरेशन शुरू हुआ और चंद पलों में ही डॉक्टरों ने उसे मेरे शरीर से बाहर निकाल दिया. मेरा पेट जैसे एकदम खाली हो गया था. बस कुछ सेकेंड में ही वो रोने की आवाज मेरे कानों में पड़ी और मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट और आंखों की कोरों से आंसुओं ने लकीरें खींच दीं. उसका चांद-सा चेहरा देखकर लगा जैसे मेरी कोई दुआ कुबूल हो गई हो. आज फिर से शादी के बीते 12 साल का सफर जैसे फ्लैशबैक करके आंखों के सामने चलने लगा.

शुरू में तो सब हंसी में उड़ा दिया

जी हां, पूरे 12 साल...2010 में मैं शादी करके जिंदगी के नए सफर पर आई थी. मल्टीनेशनल में काम करने वाली 27 साल की खुशमिजाज, आत्मविश्वासी लड़की. मैं कितनी खुश थी. ससुराल में सभी सपोर्टिव थे. मैंने अपनी जॉब नहीं छोड़ी और काम करती रही. शादी के एक दो साल ही बीते थे कि आसपास के लोगों ने पूछना शुरू कर दिया. ...और खुशखबरी कब सुना रही हो? ...कब तक प्लान कर रही हो? ... दो से तीन कब हो रहे हो तुम लोग? शुरू में तो ये सब हंसी में उड़ा दिया. लेकिन फिर हम दोनों (मैं और मेरा पति) ने भी बच्चे की बातें शुरू कर दीं. आपस में बातचीत की और साल 2015 से बेबी प्लानिंग शुरू हो गई.

...पहली बार मेरा मिसकैरेज हुआ

मुझे ये कोई बड़ी बात नहीं लगी थी, मेरी एज भी परफेक्ट थी और हुआ भी वैसा ही. साल 2016 में मैं पहली बार एक्स्पेक्ट कर रही थी. ये मेरी पहली प्रेग्नेंसी थी. मां बनने का अहसास बेहद रोमांचित करने वाला था. लेकिन ये अहसास ज्यादा दिन नहीं रुका. प्रेग्नेंसी के दो-तीन हफ्ते बाद ही मुझे मिसकैरेज हो गया. डॉक्टर ने बताया कि ये केमिकल प्रेग्नेंसी थी. मुझे सबने समझाया कि ये बड़ी बात नहीं है, फिर से मां बन जाओगी. मैं कुछ ही दिन में नॉर्मल हो गई. फिर करीब सात महीने बाद फिर दोबारा मैं प्रेग्नेंट हो गई. इस बार मैंने खुद का ज्यादा से ज्यादा ख्याल रखने की ठान ली ताकि दोबारा ऐसा न हो. लेकिन ठीक पहले जैसा हादसा दोबारा हुआ, दो तीन हफ्ते बीते और फिर मिसकैरेज...!

अब पहले जैसी सोच नहीं रही

इस बार मैं बहुत ज्यादा स्ट्रेस में आ गई. दो बार मिस कैरेज ने मुझे बहुत परेशान कर दिया. मैं कई रातों तक रोती रही. हमने जाकर डॉक्टर से कंसल्ट किया तो डॉक्टर ने समझाया. इसके बाद तीसरी बार सफल प्रेग्नेंसी के लिए डॉक्टर ने इलाज शुरू कर दिया. मैं काफी दिनों बाद इस मिसकैरेज के ट्रॉमा से निकल पाई थी. इलाज शुरू हुआ और अगले साल 2017 में तीसरी बार मैं प्रेग्नेंट हुई. इस बार एक अनजाना डर मेरे साथ चल रहा था. मैं पॉजिट‍िव रिपोर्ट देखते ही सहम गई थी, बस भगवान से यही मना रही थी कि इस बार मेरे साथ सब अच्छा करिएगा.

तीसरी प्रेग्नेंसी में भी कुछ हाथ न लगा

प्रेग्नेंसी का पता लगने के बाद डॉक्टर के पास पहुंची तो जांच रिपोर्ट से सीधा दिमाग पर झटका लगा. इस बार मेरी एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी थी. दरअसल एक्‍टॉपिक प्रेग्‍नेंसी में मेरा फर्टिलाइज एग यूट्रस से नहीं जुड़ा था, वो फैलोपियन ट्यूब में था. डॉक्टर ने बताया कि मेरे फेलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज था, इसलिए एक्टॉपिक हो गई थी. इस प्रेग्नेंसी को आगे न चल पाने की बात ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया. डॉक्टर ने इसे नॉन सर्जिकल प्रोसेस से रिमूव किया. तीसरी बार ये होना हम दोनों की उम्मीदें तोड़ने वाला था.

हम दोनों कई दिनों तक उदास रहे. मैं रह रहकर इसी बारे में सोचने लगी. किसी का बच्चे के बारे में सवाल पूछना तो और भी चुभ जाता था. तीसरी प्रेग्नेंसी के बाद भी हमारे हाथ कुछ न लगने के बाद डॉक्टर ने सारे टेस्ट वगैरह कराए. टेस्ट रिपोर्ट आई, फेलोपियन ट्यूब ब्लॉक थी. लेकिन इसी दौरान चौथी बार मेरा प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजिट‍िव आया. मुझे इस बार तो एकदम कोई उम्मीद ही नहीं थी.

...इस बार बच्चे में हार्ट बीट आ गया था

इस बार मेरा हर बार की तरह मिसकैरेज नहीं हुआ. वो वक्त याद करके मैं आज भी सिहर जाती हूं. मैं उस वक्त देश से बाहर थी. मैंने चेकअप और अल्ट्रासाउंड कराया तो इस बार बच्चे में हार्ट बीट आ गया था. प्रेग्नेंसी काफी आगे बढ़ चुकी थी और साथ-साथ मेरी उम्मीदें भी... मुझे ये ईश्वर का आशीर्वाद लग रहा था, बच्चे की हार्टबीट सुनने वाली रात मैं खुशी, चिंता और भय तमाम भावनाओं में डूबती-उबरती रही. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं खुश होऊं कि न होऊं.

खैर, ये अचानक की खुशी जिंदगी में फिर दुख लाने वाली थी. ये प्रेग्नेंसी भी एक्टॉपिक थी और ये भी नहीं टिकी. फीटस में जान आने के बाद उसे खोने का मेरा अनुभव मुझे भीतर से तोड़ने वाला था. मैं और मेरे पत‍ि अब जैसे उम्मीद हार रहे थे. फिर भी किसी तरह खुद को समझाए हुए थे. इस बार की प्रेग्नेंसी में मेंटली-फिजिकली सब इतना मुश्क‍िल हो गया था मेरे लिए. मेरी जान भी जा सकती थी. डॉक्टर ने ऑपरेशन किया, बेबी को हटाया. साथ ही मेरे दोनों फेलोपियन ट्यूब भी काट दिए गए.  इस तरह हमारे लिए नेचुरल वे में पेरेंट्स बनने का रास्ता अब बंद हो चुका था.

पति भी मेंटली टूट रहे थे

इस प्रक्रिया के बाद हम दोनों बहुत दुखी और परेशान हो गए थे. मन पर तो असर था ही साथ मेरी तो हेल्थ पर भी इसका बहुत असर पड़ा था. पति भी मेंटली बहुत टूट रहे थे. हम दोनों साल 2016 से ट्राई कर रहे थे और अब आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) ट्रीटमेंट के अलावा बच्चा पाने का कोई रास्ता नहीं था. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी थी मेरी रिकवरी. इसलिए डॉक्टरों की काउंसिलिंग और अपनों के समझाने के बाद मैंने खुद पर ध्यान देना शुरू कर दिया. धीरे धीरे रिकवरी होने लगी.

आईवीएफ से जगी उम्मीद मगर...

इसके बाद साल 2019 में हम पूरी उम्मीदों के साथ आईवीएफ ट्रीटमेंट प्रोसेस से जुड़ गए. सच कहूं तो आईवीएफ की प्रक्रिया से गुजरना काफी अलग अनुभव होता है. इसे वही महसूस कर सकता है जो इससे गुजरा है. ये साइंस का वरदान है लेकिन साथ ही तमाम इंजेक्शन, दवाएं और मानसिक रूप से कितने ही डर आपके पीछे लग जाते हैं. खैर मैं अब तन-मन-धन से इस प्रोसेस में आ चुकी थी. मैं इसी साल पहली बार आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिये प्रेग्नेंट हुई. मुझे लगा कि चलो शायद इसी नई प्रक्र‍िया से मुझे बच्चा मिलने वाला था. लेकिन, फिर भी किस्मत पर अभी भी यकीन नहीं था. हुआ भी यही, पहला आईवीएफ फेल हो गया. हमको तो जैसे बार-बार इस नुकसान से गुजरने और दुख को बर्दाश्त करने की आदत-सी पड़ गई थी. वही सहानुभूति, वही केयर, वही बातें, वही माहौल बार-बार हमें घेर लेता था.

घरवालों ने सपोर्ट किया, कभी बुरा फील नहीं कराया

इस तरह हमें फिर से ब्रेक लेना पड़ा. सोचा कि थोड़ा ब्रेक लेते हैं. इस बार हमने सामान्य जिंदगी शुरू कर दी. हम दोनों अपने अपने काम में लग गए. घूमना-फिरना पार्टी सब नॉर्मल हो गया. अच्छी बात ये थी कि मेरे मायके ससुराल में सभी बहुत सर्पोटिव थे, उन्होंने कभी किसी बात पर हमें बुरा महसूस नहीं कराया.  

मैं कारपोरेट में जॉब करती हूं और यहां भी बहुत स्ट्रेसफुल जॉब नहीं था. मल्टीनेशनल कंपनी का जॉब है. लेकिन वही होता है न कई बार कि कभी भी हम अपने वर्कप्लेस पर खुद को खुलकर एक्सप्रेस नहीं कर पाते.  न ही लोग फर्ट‍िलिटी ट्रीटमेंट को लेकर इतना अवेयर होते हैं. 

मेरे शरीर पर भी असर पड़ रहा था

मैं बता नहीं सकती कि ये वो दौर था जब मेरा बार-बार फेलियर हो रहा था. मैं मन से टूटी थी, मेरी बॉडी पर बहुत असर पड़ रहा था. तमाम दवाएं और इंजेक्शन मेरे शरीर को दर्द से तोड़ रहे थे तो वहीं बार-बार फेलियर से मन टूट रहा था. मैं जैसे दोहरी जिंदगी जी रही थी. ऑफिस में सबके सामने नॉर्मल बने रहना, अपना काम करते रहना, अपनी निष्ठा को साबित करते रहना, अपना 100 पर्सेंट देते रहना और दूसरी तरफ निजी जिंदगी के तनावों को सोचना, परेशान रहना. कई दिनों तक आईवीएफ ट्रीटमेंट में इस्तेमाल हुए इंजेक्शंस से हुआ पीठ का दर्द बैठने नहीं देता था... उफ! जो औरतें इस सबसे गुजरती हैं, कितना बर्दाश्त करती हैं वो...

हमने क्व‍िट कर दिया...

एक डॉक्टर के आईवीएफ फेल होने के बाद मैंने डॉ सोनिया मलिक और डॉ निधि झा से इलाज कराना शुरू किया. ये साल 2019 था, डॉक्टर बदलने से भी कुछ बदला नहीं. यहां भी पहला आईवीएफ फेल, फिर साल 2020 में दूसरा भी फेल हो गया. मैं बार-बार उस तकलीफ को क्या बताऊं, मैं तो इसकी आदी हो गई थी. इस तरह करीब चार आईवीएफ फेलियर हो गए. अब हमें समझ आ गया था कि शायद हमारी किस्मत में ही बायोलॉजिकल पेरेंट्स बनना नहीं है.  सो, हमने क्व‍िट कर दिया...

अब चाइल्ड एडॉप्शन की तैयारी

साल 2020 में हमने एडॉप्शन का पूरा मन बना लिया. अब हमें हर हाल में मां-बाप बनना था. बच्चा गोद लेने के लिए जरूरी तैयारी शुरू कर दी. हमने एडॉप्शन एजेंसी को इनीशियल अमाउंट दे दिया. हमने ठान लिया था कि अब हम छोटी-सी परी के मम्मी-पापा बनेंगे. हमारे घर का सर्वे भी हो गया. सब तैयारी हो गई. हम दोनों बेबी गर्ल एडॉप्ट करना चाहते थे सो उसी का इंतजार था.  

किस्मत में कुछ और ही था  

उसी दौरान डॉक्टर क्लीनिक से बताया गया कि मेरे लास्ट के कुछ एंब्र‍ियो सेव हैं. पता हमें भी था लेकिन मन से हिम्मत नहीं थी. फिर एक बार लगा कि क्यों न एक लास्ट ट्राई कर लूं वरना एंब्र‍ियो डिस्ट्रॉय हो जाएंगे. लग रहा था कि होना तो है नहीं, चलो एक आखिरी बार करा लेते हैं ताकि कभी मन में किसी बात का पछतावा न रहे. इस तरह हमने आखिरी बार ट्राई करने का मन बनाकर साल 2021 में फिर से आईवीएफ ट्रीटमेंट कराया.

मन बेहद खुश था, क्योंकि बच्चा हमारे घर आ रहा था

इस आखिरी ट्रायल के वक्त मन बहुत खुश था. आईवीएफ से ज्यादा इस बात से कि हम बच्चा गोद लेने वाले हैं. मन में बहुत पॉजिटिव ख्याल आते थे. घर को बच्चे के अनुरूप सजाने में लगे थे. मुझे लगने लगा था कि भगवान को अगर देना है तो चाहे एडॉप्शन के जरिए आए, बच्चा हमारी जिंदगी में जरूर आएगा. जो होगा अच्छा होगा, यही सोचकर आगे बढ़ी. वैसे भी अब मैं 38 साल की हो गई थी और मुझे उम्र को लेकर भी चिंता थी. मैंने खुद को फिजिकली भी फिट किया था. मेरी लाइफ बहुत अनुशासित थी. खानपान से लेकर एक्सरसाइज और योग सब वक्त पर कर रही थी. मैं कुछ ही दिन पहले सड़क से स्ट्रीट डॉग के दो बच्चे लाई थी तो वो मुझे बहुत खुश रखते थे. मुझे वो अपने ही छोटे-छोटे बच्चे लगते थे.

फिर मैंने आख‍िरी बार ट्राई किया

इसी माहौल में मैंने आखिरी बार आईवीएफ कराया और साल 2021 में जुलाई में प्रेग्नेंसी कन्फर्म पॉजिटिव हो गया. इस खबर से भी मैं बहुत ज्यादा खुश नहीं होना चाह रही थी. यूं कहें कि किस्मत पर यकीन ही नहीं था. फिर डॉक्टर ने कुछ हफ्ते बाद बताया कि बच्चा यूट्रस में शिफ्ट हो गया है, अब भी मुझे एक डर मिश्र‍ित खुशी ही थी. फिर एक दिन जब मुझे और मेरे पति को डॉक्टर ने हार्टबीट सुनाई तो ये जीवन के सबसे खूबसूरत संगीत जैसा लग रहा था. फिर एक एक दिन केयर के साथ बीतने लगा. खुद को जैसे हर चीज से बचाकर रख रही थी. पेट में बढ़ते अपने जैसे दिखने वाली अपनी औलाद के न जाने कितनी शक्लों की कल्पना कर डाली थी. कलर डॉप्लर में भी सब अच्छा आया. ये पूरा समय जैसे हम किसी सपने को जी रहे थे. सब बेहतर हो रहा था. इस तरह 37 वीक भी बीत गए. मेरी प्रेग्नेंसी जर्नी पूरी हुई और ऑपरेशन के दिन पूरा परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा था.

मुझे सवालों ने बहुत परेशान किया

बेटी के जन्म ने मुझे जो खुशी दी, वो शब्दों में बयां नहीं कर सकती. मुझे ऑपरेशन के बाद पोस्ट ऑपरेटिव रूम में लिटाया गया. यहां लेटे-लेटे दर्द के इस दौर में भी मैं यही सोच रही थी कि वाकई मां बनने का सुख कितना बड़ा होता है. साथ ही उन लोगों के बारे में भी सोच रही थी जो अनजाने में ही सही, पर्सनल सवाल करके लोगों को कितना हर्ट कर देते हैं. आप बिना ये जाने कि सामने वाले के क्या हालात हैं, उससे सवाल दागते रहते हैं. कब प्लान कर रही हो? लेट हो रहा है अब कर भी लो. अच्छा इतने साल हो गए, बच्चा नहीं है? यू डोंट हैव बेबी?  व्हाट्स  गोइंग ऑन? वगैरह-वगैरह. अरे आपको खुद सोचना चाहिए कि इतने साल शादी के हो गए हैं, अगर उनको बच्चा नहीं है तो या तो उनकी पर्सनल च्वाइस होगी या फिर वो किसी मुश्क‍िल से जूझ रहे होंगे. बिना मांगे न उन्हें सहानुभूति दीजिए, न सवाल पूछकर असहज कराइए. 

पॉलिसी में भी हो चेंज

मैं एक बात और कहना चाहूंगी कि जब कोई लड़की या महिला कॉरपोरेट में काम करने के दौरान आईवीएफ ट्रीटमेंट प्लान करती है, तो उसकी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए बहुत कुछ पॉलिसी में नहीं होता. इसलिए जरूरी है कि समाज में हर तरफ इसे लेकर जागरूकता होनी चाहिए, ताकि इसमें कुछ बदलाव हों.

शादी के बाद कपल से सवाल करना बंद करो प्लीज

खैर अब एक साल बीत चुके हैं. इसका चेहरा देखकर ही हमारी सुबह होती है और इसे देखकर ही हमारी शाम पूरी होती है. अब शरीर के वो कष्ट और इस मेडिसिन, इंजेक्शन और ट्रीटमेंट की अब तक की पूरी प्रक्र‍िया में लगे 20 लाख से ज्यादा के खर्च का कोई मलाल नहीं होता. लेकिन मेरी जर्नी मैंने सिर्फ इसलिए साझा की ताकि जो भी मेरी इस कहानी को पढ़े वो कुछ बातों को लेकर सेंसेटिव हो जाए. किसी भी लड़की या लड़के से उसकी शादी के कुछ ही साल बाद आप बच्चों को लेकर सवाल करना न शुरू कर दें. क्योंकि ये सब किसी की मदद नहीं करता.