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क्या था द्रौपदी का सच, किसका थी अवतार और कैसे बन गई महाभारत की नायिका?

शैव और वैष्णव परंपरा के अलावा भारत में जो एक और आस्तिक शाखा है, उसे शाक्त परंपरा के तौर पर जानते हैं. शाक्त, यानी कि शक्ति को अपना इष्ट मानने वाले लोग. इस परंपरा में शक्ति का मूल एक देवी ही हैं. देवी यानी एक स्त्री. यह स्त्री ब्रह्मांड की पहली स्त्री है और इसी से ब्रह्मांड की उत्त्पति हुई. देवी पुराण में इसका जिक्र कुछ ऐसे होता है की शक्ति की स्त्रोत एक देवी ने अपनी शक्ति को तीन तत्त्वों में बांटा. सृजन, विकास और विनाश. यही तीनों ब्रह्म, विष्णु महेश हैं. ये शक्ति, ब्रह्म तत्त्व के साथ मिलकर सृजन करती हैं, विकास के साथ पोषण करती हैं और विनाश की शक्ति के साथ सब कुछ फिर से इसी में समा जाता है.

अब देवी कालरात्रि की उत्पत्ति का जो आधार है, वह यह है कि जहां कुछ नहीं है, या कुछ भी दिख नहीं रहा है, या जो नहीं है वही अंधकार है, अंधकार का स्वरूप काला है और न होना ही कालरात्रि है. सृजन, विकास और विनाश में यही कलरात्र अलग अलग रूप लेकर सहायता करती है. देवी काली या कालरात्रि ज्ञान का ही प्रतीक हैं, जिनके अंदर चेतना का उज्जवल प्रकाश भरा है.

देवी भागवत पुराण, मार्कंडेय पुराण और दुर्गा सप्तशती प्रमुख रूप से देवी के नौ दिव्य स्वरूपों का वर्णन हैं. यह नौ स्वरूप नवरात्रि के नौ अलग-अलग दिनों की एक-एक मुख्य देवी हैं. शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री. इसमें सातवीं देवी कालरात्रि हैं, जो देवी काली का ही सौम्य स्वरूप है. भले ही उनके गले में मुंडमाल है, हाथ में रक्तिम खड्ग  और खप्पर है, लेकिन फिर भी उनका हृदय भक्तों के लिए द्रवित होता है, लेकिन जब धर्म का नाश और अधर्म की उन्नति होती है तो इन्हीं देवी के क्रोध से काली के अन्य क्रोधी स्वरूप सामने आते हैं.

माता महाकाली का स्वरूप इतना विस्तृत है, लेकिन हम उनके सिर्फ भयंकर और विनाशक स्वरूप के बारे में ही जान पाते हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि देवी के इस स्वरूप का प्राकट्य ही युद्ध के बीच हुआ और वह भयंकर रक्त-पात मचाती हुई सामने आती हैं. देवी महाकाली, अंबा के क्रोध की पराकाष्ठा भले ही हैं, लेकिन असल में इस स्वरूप में भी वह अपने ममत्व और अपनी करुणा से संसार को सींचती हैं. अपने भक्तों की रक्षा के लिए देवी ने कई बार प्रत्यक्ष तो उससे भी अनगिनत बार परोक्ष रूप से अवतार लिया है. भगवान विष्णु जब नरसिंह अवतार लेने वाले थे, तब उसकी प्रेरणा देवी का क्रोध ही था. उन्हीं की रुद्र शक्ति से भगवान ने यह अवतार लिया और हिरण्य कश्यप का वध किया था. इस तरह उनके वाराह अवतार में देवी की शक्ति वाराही ने उनकी सहायता की थी, यह भी महाकाली का ही एक स्वरूप है. इसके अलावा रामायण में भी देवी की उपस्थिति नजर आती है. राम की शक्ति पूजा वाले प्रसंग में युद्ध से पहले देवी दुर्गा श्रीराम के तप से प्रसन्न होकर प्रकट होती हैं और आश्वासन देती हैं कि रावण से युद्ध के दौरान उनकी सूक्ष्म शक्ति ही आसुरी शक्ति का विनाश करेगी.  

महाभारत इतना बड़ा महाकाव्य और ग्रंथ है कि इसके साथ कई दंत और लोककथाएं भी चलती रही हैं. यह ऐसी महागाथा है जिसमें कई अवतारों ने जन्म लिया और धरती पर आए. युद्ध से बहुत पहले काली ने शची (इंद्र की पत्नी) रति (काम की पत्नी), रोहिणी (चंद्र की पत्नी) संध्या (सूर्य की पत्नी) और खुद की आत्म शक्ति 64 योगिनियों को प्रकट किया. 63 योगिनियों को तो उन्होंने अलग अलग स्त्रियों के रूप में जन्म लेने (अवतरित) को कह दिया, लेकिन उन्होंने खप्पर योगिनी को रोक लिया.

अब उन्होंने इन पंच देवियों की शक्ति को मिलाकर एक स्त्री शक्ति को अवतार दिया और उसे अग्नि देव के अंश में मिला दिया. जब द्रुपद ने ऋषि उपयाज की सहायता से पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया तो वरदान के अनुसार दृष्टध्युम्न का जन्म हुआ. इसके बाद द्रुपद यज्ञ पूर्ण किए बिना लौटने लगे तो ऋषि ने ललकारा, आप बिना पूर्णाहुति के नहीं जा सकते, अग्नि देव आपको कुछ और भी देना चाहते हैं. द्रुपद ने पूछा क्या? ऋषि बोले, एक पुत्री. बिना उसके परिवार पूर्ण नहीं होगा.

द्रुपद जो सिर्फ बदले के लिए पुत्र चाहता था, उसने इस बात को सिरे से खारिज किया. लेकिन ऋषि ने श्राप देने का भय दिखाया तब द्रुपद ने गुस्से में अभ्रक, सिंदूर, कपूर, लौंग और इलायची की पांच आहुतियां यज्ञ में डाली और जोर-जोर से कहने लगे, अगर देवता दे सकते हैं तो मुझे कलंकिनी पुत्री दें, उसे सारी अपवित्रता मिले, जीवन भर अपमान मिले, वो कष्ट में ही जीवन गुजार दे और सारा जीवन श्रापित हो जाए? द्रुपद को लगा था कि देवताओं के पास सिर्फ पवित्रता ही होगी, और जैसी पुत्री मैं मांग रहा हूं, वो मांग सुनकर देवता हाथ डाल देंगे, लेकिन अभ्रक की आहुति डालते हुए वो भूल गया कि उसने चंडिका को बुलाया है, कपूर डालकर उसने धूमावती को पुकारा है, लौंग-इलायची की आहुति से तारा मातंगी को पुकारा है, और सिंदूर डालकर खप्पर वाली कालिका को घर बुला लिया है. लिहाजा यज्ञ से द्रौपदी प्रकट हुईं. इस तरह देवी कालरात्रि के हाथों लिखी जा रही एक धर्मयुद्ध की पटकथा का पहला सोपान पूर्ण हुआ.

आखिरी में क्या हुआ? एक दिन इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर द्रौपदी के कक्ष में थे. भीम उधर से गुजर रहे थे, अचानक उनकी निगाह खिड़की से कक्ष की ओर पड़ गई. उन्होंने देखा, बड़े भैया द्रौपदी के पांव दबा रहे हैं और द्रौपदी पलंग पर खप्पर लिए बैठी है और बड़े ही क्रोध से युधिष्ठिर को देख रही है, बीच-बीच में कह रही हैं मैं तुम सबको खा जाऊंगी, रक्त पियूंगी. भीम ये देखकर क्रोधित हुए और कुछ समझ नहीं पाए. उन्हें कृष्ण का ध्यान आया. उनकी माया वो पहले ही जानते थे, पर कभी समझ नहीं पाए थे. भीम ने कृष्ण का ध्यान किया तो कृष्ण सामने आ गए. भीम ने कहा कि अर्जुन तुमसे बहुत सवाल करता है, मैं आयु में तुमसे और अर्जुन दोनों से बड़ा हूं, इसलिए आज मुझे भी कुछ बता दो.

कृष्ण ने कहा, पूछिए क्या पूछते हैं? भीम ने कहा तुम्हारी माया क्या है? मुझे भी दिखा दो. इस पर कृष्ण कहते हैं, अच्छा, आज की रात आप चुपचाप वन चले जाइएगा, और तालाब के किनारे एक वृक्ष है उस पर बैठ जाइएगा. भीम ने ऐसा ही किया.

उधर रात गहराई और अचानक ही वहां प्रकाश फूटा और सरोवर के किनारे कई सिंहासन लग गए. थोड़ी देर में इंद्र-मारूत आदि देवता और योग-योगिनियां भी प्रकट हुईं. इसके बाद भीम ने देखा कि द्रौपदी अपने उसी भयानक रूप में चली आ रही है, पीछे महाराज युधिष्ठिर समेत उनके सारे भाई और सबसे पीछे नारायण भी हैं. द्रौपदी सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठ गई. युधिष्ठिर ने फिर से क्षमा मांगते हुए अभयदान मांगा तो द्रौपदी क्रोध में फुंफकारने से लगी. भीम ने देखा कि क्रोधित हुई द्रौपदी का रंग काला पड़ने लगा और वह धीरे-धीरे काली मां में ही बदल गई. अब वहां जो भी योगिनी उपस्थित थीं वह सब रक्तं देही कहने लगीं और खप्पर पटकने लगीं.

भीम यह सब देख कर मूर्छित हो गए. होश आया तो सामने कृष्ण खड़े थे. उन्होंने पूछा कि क्या देखा? भीम ने कहा, आपकी माया. कृष्ण ने कहा,। कोई उपाय है? भीम ने कहा आप बताइए, कृष्ण ने कहा, आज दोपहर जब द्रौपदी भोजन परोसे तो खाना मत, छूना भी मत और जब पूछे कि क्या चाहिए? तो कहना एक वचन. भोजन परोसते हुए द्रौपदी मना नहीं कर सकेगी. भीम ने ऐसा ही किया. पांचाली ने पूछा, क्या चाहिए.. भीम ने तपाक से कहा, हम पांचों को अभय.. द्रौपदी ने अभी ये सुना ही था कि कृष्ण आ गए और बोल पड़े कि छठे प्राण मेरे भी छोड़ दो. द्रौपदी खीझ गई और इसी दौरान कुछ बोलने की कोशिश में उसकी जीभ दांत के बीच आ गई. इससे जीभ को घाव लग गया और जमीन पर रक्त की छह बूंदें गिर गईं. 

इतने में द्रौपदी सावधान हो गई और अन्य बूंदें गिरने से बचा लिया. फिर उसने कहा, ठीक है माधव, जैसा आप कहें. ऐसा कहते ही, पांडवों और कृष्ण को अभयदान मिल गया. महाभारत युद्ध में यही योद्धा जीवित बचे. बाकी मारे गए या फिर श्राप झेलते रहे. युद्ध में अर्जुन नारायण का निमित्त बना, नारायण काली के लिए माध्यम बने और काली का कालरात्रि रूप महाभारत में खप्पर भर-भर कर रक्त पीता रहा. द्रौपदी असल में कौन है इसकी बानगी हमें तब देखने को मिलती है जब वह दुशासन की छाती के लहूसे बाल धोती है.

नवरात्र में महासप्तमी, महाष्टमी, महा नवमी ये तीन दिन बेहद खास होते हैं. खासतौर पर ये तीनों ही दिन क्रमशः शक्ति, ज्ञान और ज्ञान के होते हैं. सौम्य रूप में ये कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी का दिन होता है. यही महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं. महाकाली स्वरूप इतना विस्तृत है कि उनके साधिका रूप के ही आठ अलग नाम हैं. दक्षिणा काली, श्मशान काली, मातृ काली, काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, सिद्ध काली और भद्र काली. देवी की आराधना आप जिस भी रूप में करें वह आपका कल्याण ही करेंगी. तंत्र विद्या में भी मां काली के अघोर स्वरूप की पूजा की जाती है, अगर तंत्र सकारात्मक है और समाज के कल्याण के लिए है तब तो ठीक है, नहीं तो बुरी कामना से किए गए तांत्रिक प्रयोग न तो सफल होते हैं और न ही देवी उन्हें स्वीकार करती हैं.  देवी काली का स्वरूप जीवन का पर्याय है, जो बताता है कि जहां अंधकार है, ज्ञान का प्रकाश भी वही कहीं है, जरूरत है तो केवल उसे खोजने की, अपने अंदर झांकने की और सही रूप में पहचानने की.