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कैसे नरसिंह अवतार ले पाए भगवान विष्णु, क्यों कृष्णजी बन गए मां काली... जानिए शक्ति का ये रहस्य

देशभर में इस वक्त चैत्र नवरात्र का उत्सव मनाया जा रहा है. नौ दिनों तक देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जा रही है. विधि-विधान से अनुष्ठान किया जा रहे हैं और मां स्वरूपा शक्ति के इस केंद्र बिंदु को देवी दुर्गा, देवी अंबा, जगत माता, भवानी और ऐसे न जाने कितने अनगिनत नामों से पुकारा जा रहा है. शक्ति ने जब अपने निराकार रूप को किसी देवी के साकार रूप में बदला तो उनका लक्ष्य था कि वह बुराई के असंतुलन को कम करें और धर्म की फिर से स्थापना करें. बुराई पर अच्छाई की इस जीत और धर्म की फिर से स्थापना का परिणाम ऐसा हुआ कि देवी के सबसे प्रचलित स्वरूप महिषासुर मर्दिनी के नाम से जाना गया. महिषासुर अधर्म, अन्याय और अभिमान का प्रतीक है, देवी ज्ञान और सकारात्मक शक्ति का प्रतीक हैं. ज्ञान ने जब अभिमान का मान मर्दन किया तो वह महिषासुर मर्दिनी कहलाईं.

महिषासुर मर्दिनी के स्वरूप की पूजा पद्धति देखनी हो तो पश्चिम बंगाल से बेहतर कोई जगह नहीं है. शारदीय नवरात्र के नौ दिनों में यहां बहुत ही धूमधाम से देवी के महिषमर्दिनी स्वरूप की पूजा की जाती है. बड़े-बड़े पांडाल बनाए जाते हैं, उनमें देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती है. ये प्रतिमाएं युद्ध की उस स्थिति का वर्णन करती हैं, जब देवी ने क्रोधी और चंडी स्वरूप धारण करके असुर राज महिषासुर का वध किया था. ये युद्ध पाशविकता पर मानवीयता की विजय की भी कहानी है. कोलकाता में ऐसे दो मंदिर हैं जो देवी के इसी चंडिका काली स्वरूप की पूजा का केंद्र हैं और शक्ति पीठों में भी शामिल हैं.

कोलकाता में हुगली नदी के तट पर बसा दक्षिणेश्वर मंदिर और कालीघाट सदियों से श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र रहे हैं. कालीघाट मंदिर के विषय में मान्यता है कि यहां शिव पत्नी सती के दायें पैर की अंगुलियां गिरी थीं. इसलिए इसे दक्षिणा काली कहा जाता है और इस पीठ की शक्ति का नाम तारा भैरवी है. वहीं दक्षिणेश्वर मंदिर तो 18वीं-19वीं सदी में क्रांति और अध्यात्म का गढ़ रहा है. आचार्य श्रीराम कृष्ण परमहंस इसी मंदिर में देवी के पुजारी थे और कहते हैं कि वह देवी से साक्षात बात भी किया करते थे. मंदिर परिसर में स्थित उनका कक्ष आज भी श्रद्धालुओं के लिया आदर और श्रद्धा का स्थान है. चांदी के हजार कमल दल वाले पुष्प पर खड़ी मां काली की प्रतिमा सदियों से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर रही हैं. यह वही मंदिर है, जिसने स्वामी विवेकानंद के जीवन की दिशा बदल दी थी.

इस बारे में स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी एक कथा भी सामने आती है, जिसमें तब का जिक्र है जब वह आचार्य रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में अभी नए-नए ही आए थे, और जीवन को लेकर बहुत परेशान थे. तब परमहंस ने उन्हें दक्षिणेश्वर काली के गर्भगृह में भेजा और कहा, जा, माई सो जो चाहे मांग ले. अपनी किशोरावस्था में परेशान नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) जब गुरु परमहंस के कहने से मां काली के सामने तीन बार जाते हैं और हर बार वह यही कहते हैं, मां मुझे भक्ति दो ज्ञान दो, वैराग्य दो.

बात बंगाल की हो आई है तो बता दें कि, बंगाल में काली शक्ति का स्वरूप तो है ही, ज्ञान की भी प्रतीक हैं. बंगाल में लड़कियों के नाम कृष्णकली भी रखे जाते हैं. हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका शिवानी के उपन्यास का नाम भी कृष्णकली है. शिवानी का जन्म राजकोट(गुजरात) में हुआ था. बंगाल और गुजरात में वैसे तो कोई सीधा संबंध नहीं है, अध्यात्म की नजर से देखें तो बंगाल काली देवी का स्थान है और गुजरात में कृष्णजी की. इन दोनों का एक साथ नाम लिया जाए तो कृष्णकाली बनता है, कृष्णकली इसी मिश्रण से बना नाम है और रहस्य की बात ये है कि, ये नाम असल में राधा रानी का है.

इस रहस्य को जानने में थोड़ा और आगे बढ़ें तो परत दर परत खुलती चली जाती है. हम यही जानते हैं कि कृष्ण, विष्णु का अवतार हैं, लेकिन ये पूरा सच नहीं है. असल में कृष्ण देवी त्रिपुर सुंदरी (वही प्रथम स्त्री शक्ति, जिसका जिक्र पहले किया) की प्रेरणा से लिया गया काली का अवतार हैं, जिसमें देवी की सहायता पुराण पुरुष (विष्णु जी) ने की थी. उन्होंने ये सहायता कोई पहली बार नहीं की थी, बल्कि पहले हुए कई अवतारों में वो देवी की सहायता कर चुके थे. इस बात का जिक्र दुर्गा चालीसा में लिखी दो पंक्तियों से भी मिलता है. श्रीदुर्गा चालीसा में एक जगह कुछ ऐसा लिखा मिलता है कि-

रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सुबुद्धि ऋषि मुनि उबारा ।
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा,
परगट भई फाड़कर खम्बा ।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो,
हिरण्याकुश को स्वर्ग पठायो ।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं,
श्री नारायण अंग समाहीं ।

विष्णु पुराण के अनुसार नृसिंह अवतार तो विष्णुजी ने लिया तो माता की महिमा में ये चालीसा क्यों गाई जा रही है. असल में इसका मतलब यही है कि विष्णु अवतार के हर रूप में देवी काली ही कहीं न कहीं शामिल थीं. नृसिंह के क्रोध में देवी काली का ही क्रोध शामिल था. देवी पुराण अपने पहले ही खंड में ये व्याख्या करता है कि संसार की सर्वोच्च शक्ति स्त्रैण है. इस पुराण के अनुसार पृथ्वी का भार समाप्त करने से लिए द्वापर के अंत में महादेव की इच्छा से देवी काली ने मायापुरुष का रूप धारण कर देवकी के गर्भ से पृथ्वीलोक में अवतार लिया था. महादेव ही उनकी प्रिया राधा थे. सामान्य स्तर पर इसे समझना और समझाना कठिन हो सकता है, लेकिन इसे ही सत्य माना जाता है. इस सत्य पर अपनी मुहर लगाता है वृंदावन में स्थित कृष्णकाली मंदिर. यह मंदिर केशीघाट पर स्थित है. यहां आने वाले भक्त भगवान की छवि में माता स्वरूप ही देखते हैं.

इस बारे में एक लोककथा भी कही जाती है. कहते हैं कि जब कृष्ण ब्रज से गए तो राधाजी का ब्याह कहीं और हो गया. राधाजी के पति काली भक्त थे. ससुराल जाकर भी राधा निरंतर कृष्ण नाम का जाप करती थीं. एक बार उनकी ननद ने उन्हें कृष्ण कृष्ण कहते सुना तो वो तुरंत जाकर अपने भाई को बुला लाईं और कहती हैं कि देखो आपकी पत्नी पता नहीं किस कृष्ण का जप कर रही हैं, तो जब राधा जी के पति अंदर आये तो उन्होंने ध्यान से सुना तो उन्हें सुनाई दिया की राधा जी कृष्णे-कृष्णे जप रही थीं. ये सुनकर उन्होंने अपनी बहिन को बहुत डांटा कि आप मेरी पत्नी पर लाँछन क्यों लगा रही हैं ये तो मेरी आराध्य काली मां का ही नाम जप रही हैं.

ननद को आश्चर्य हुआ की ये कैसे हो गया? मैं गयी तब तो कृष्ण नाम था अब वह महाकाली कैसे हो गया..? तब राधारानी ने मां काली से उनकी लाज बचने के लिए धन्यवाद किया क्योंकि असल में तो राधाजी भगवन कृष्ण का ही जप कर रही थी पर मां काली की सहायता से वो दोनों कृष्ण नाम को काली समझ बैठे . बस उस दिन से माँ काली को भी भगवन कृष्ण का नाम मिल गया और उनको भी कृष्ण का ही स्वरूप माने जाने लगा. इसलिए बंगाल में जब भक्त मां काली के दर्शन करने जाते हैं तो जयकारे में कहते हैं- " जय माँ श्यामा काली.

भारत में नवरात्रि भी चार होती हैं, दो तो मुख्य हैं, वासंतिक या चैत्र नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि. इसके अलावा दो अन्य गुप्त नवरात्रि होती हैं, जिन्हें आषाढ़ी और माघी गुप्त नवरात्रि कहते हैं. इन गुप्त नवरात्रि में देवी के दस महाविद्या स्वरूप की पूजा होती है. इन महाविद्या में काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला शामिल हैं. दशम महाविद्या में काली ही प्रमुख महाविद्या हैं, यही वजह है कि कई स्थानों पर आप पाएंगे कि ज्ञान और विद्या के लिए काली पूजन किया जाता है. दीपावली की रात में होने वाली निशा पूजा भी मां काली को समर्पित है, जिसमें मां के कमला स्वरूप से समृद्धि और मां के महाविद्या सरस्वती रूप से ज्ञान का कामना की जाती है.

नवरात्र में महासप्तमी, महाष्टमी, महा नवमी ये तीन दिन बेहद खास होते हैं. खासतौर पर ये तीनों ही दिन क्रमशः शक्ति, ज्ञान और ज्ञान के होते हैं. सौम्य रूप में ये कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी का दिन होता है. यही महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं. महाकाली स्वरूप इतना विस्तृत है कि उनके साधिका रूप के ही आठ अलग नाम हैं. दक्षिणा काली, श्मशान काली, मातृ काली, काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, सिद्ध काली और भद्र काली. देवी की आराधना आप जिस भी रूप में करें वह आपका कल्याण ही करेंगी. तंत्र विद्या में भी मां काली के अघोर स्वरूप की पूजा की जाती है, अगर तंत्र सकारात्मक है और समाज के कल्याण के लिए है तब तो ठीक है, नहीं तो बुरी कामना से किए गए तांत्रिक प्रयोग न तो सफल होते हैं और न ही देवी उन्हें स्वीकार करती हैं.  देवी काली का स्वरूप जीवन का पर्याय है, जो बताता है कि जहां अंधकार है, ज्ञान का प्रकाश भी वही कहीं है, जरूरत है तो केवल उसे खोजने की, अपने अंदर झांकने की और सही रूप में पहचानने की.