अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुए मेयर चुनावों में जोहरान ममदानी ने जीत दर्ज कर इतिहास बना दिया है. यह पहली बार है जब दक्षिण एशियाई मूल के एक मुस्लिम नेता ने न्यूयॉर्क जैसा बड़ा और प्रभावशाली शहर जीत लिया. लेकिन भारत में उनकी जीत की चर्चा केवल राजनीतिक नहीं है. सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग इसे लोकतंत्र की जीत बता रहा है और जश्न मना रहा है. वहीं सवाल भी उठ रहे हैं कि इस खुशी के पीछे असल कारण क्या है.
कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह जश्न इसलिए है क्योंकि एक भारतीय मूल का नेता जीता है या फिर इसलिए क्योंकि वह खुद को इंडियन मुस्लिम पहचान के साथ जोड़ते हैं और भारत की कुछ नीतियों का सार्वजनिक विरोध करते हैं. भारत में कुछ लोगों ने उनकी जीत को कट्टरवाद के सामने लोकतंत्र की जीत बताया. वहीं एक वर्ग ने इसे मोदी विरोध की राजनीति से जोड़कर देखा.
जोहरान ममदानी की जीत पर भारत में जश्न
जोहरान ममदानी ने डेमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले. यह भी दिलचस्प है कि 1969 के बाद पहली बार किसी उम्मीदवार को न्यूयॉर्क में 10 लाख से ज्यादा वोट मिले हैं. इस जीत के दौरान उन्होंने अपनी पहचान और समुदाय को मुख्य मुद्दा बनाया. अपनी रैलियों में उन्होंने बॉलीवुड के गानों, संवादों और अपनी भारतीय मुस्लिम पहचान का बार-बार उल्लेख किया.
न्यूयॉर्क में चुनाव प्रचार के दौरान ममदानी ने पैगाम्बरी अंदाज में राजनीतिक संदेश दिए. उन्होंने टैक्सी ड्राइवरों को कम ब्याज पर लोन देने, किराये कम कराने, सस्ते ग्रोसरी स्टोर खोलने और नौकरीपेशा लोगों के लिए मुफ्त बस सेवा जैसी वादे किए. यानी मुफ्त सेवाओं की राजनीति भी उनकी रणनीति का बड़ा हिस्सा रही.
न्यूयॉर्क में 10 लाख से ज्यादा वोट मिले
हालांकि उनकी पहचान और प्रचार के तरीके पर सवाल भी उठे. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया कि ममदानी की जीत से न्यूयॉर्क का इस्लामीकरण होगा. सोशल मीडिया पर स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की बुर्के वाली तस्वीर शेयर की गई और कहा गया कि शहर का मूल चरित्र खत्म हो जाएगा. लेकिन न्यूयॉर्क के लोगों ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. ट्रम्प की पार्टी को केवल सात प्रतिशत वोट मिले.
इसके अलावा स्वतंत्र उम्मीदवार एंड्रयू कुओमो ने भी यही आरोप लगाया कि ममदानी शहर को धार्मिक पहचान की ओर ले जाएंगे. अरबपति बिल ऐकमैन ने ममदानी को रोकने के लिए करीब साढ़े 300 करोड़ रुपये खर्च किए. फिर भी ममदानी भारी बहुमत से जीते. जीत के बाद उन्होंने अपने पहले भाषण में ट्रम्प पर सीधा हमला किया और कहा कि न्यूयॉर्क वही शहर है जिसने ट्रम्प को बड़ा बनाया और अब यही शहर उन्हें हराकर दिखा रहा है.
ममदानी की पहचान बहुसांस्कृतिक लेकिन राजनीतिक रूप से स्पष्ट है. उन्होंने अयोध्या राम मंदिर के खिलाफ न्यूयॉर्क में रैली निकाली थी. सोशल मीडिया पर उनके कई पोस्ट मिलते हैं जिनमें वे राम मंदिर, सीएए और वक्फ कानून जैसे मुद्दों पर भारत सरकार का विरोध करते हैं. एक कार्यक्रम में फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगे. बॉलीवुड की धूम फिल्म के गाने उनके चुनाव प्रचार में बजते दिखे.
ममदानी को हराने में खर्च हुए 300 करोड़
उन्होंने हर रैली में यह संदेश दिया कि वह भारतवंशी मुस्लिम हैं और वे दक्षिण एशियाई मुसलमानों की आवाज हैं. उनका जन्म भारत में नहीं बल्कि युगांडा में हुआ. उनकी मां मशहूर फिल्म निर्देशक मीरा नायर हैं और पिता महमूद ममदानी प्रोफेसर हैं. जोहरान सात साल की उम्र में अमेरिका आए और वहीं पले-बढ़े.
भारत में लोग पूछ रहे हैं कि भारतीय मूल के कई नेताओं ने अमेरिका की राजनीति में बड़ा नाम बनाया है. जैसे काश पटेल, तुलसी गबार्ड, विवेक रामास्वामी. लेकिन इनमें से किसी ने चुनाव जीतने के लिए अपनी धार्मिक पहचान को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया. सवाल यह भी है कि ममदानी की पहचान को इतना महत्व क्यों दिया गया.
दक्षिण एशियाई मुसलमानों की आवाज
जोहरान ममदानी की जीत से दुनिया को यह संदेश गया कि न्यूयॉर्क जैसे शहर में धार्मिक प्रचार और डराने की राजनीति नहीं चलती. इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि न्यूयॉर्क समाज बदलाव, विविधता और स्वीकार्यता को अपनाता है. लेकिन भारत में इस जीत का असर अलग तरह से दिखाई दे रहा है. एक वर्ग इस जीत को अपनी विचारधारा की जीत मानता है और दूसरा वर्ग इसे पहचान की राजनीति के तौर पर देख रहा है.
न्यूयॉर्क को अमेरिका की आर्थिक राजधानी माना जाता है. वहां विश्व के बड़े मीडिया संस्थान मौजूद हैं. ऐसे में ममदानी की जीत का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय विमर्श पर भी पड़ेगा. उनकी भारत से जुड़े बयानों और विचारों पर चर्चा अब दुनिया के बड़े मंचों पर होगी. यही कारण है कि कई लोग इसे भारत की राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं