अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जजों ने बुधवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ की वैधता पर सवाल उठाते हुए इस मामले में संदेह जताया, जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है. यह मामला ट्रंप की पावर का एक बड़ा टेस्ट माना जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के कंजरवेटिव और लिबरल दोनों ही जजों ने ट्रंप प्रशासन के वकील से यह सवाल किया कि क्या 1977 का आपातकालीन कानून, जो राष्ट्रीय आपात स्थिति के समय के लिए बनाया गया था, ट्रंप को यह अधिकार देता है कि वे इतने बड़े स्तर पर टैरिफ लगा सकें, या उन्होंने कांग्रेस के अधिकार क्षेत्र में दखल दिया है.
कोर्ट में कंजरवेटिव जजों का बहुमत
हालांकि, कुछ कंजरवेटिव जजों ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को विदेशों से जुड़े मामलों में स्वाभाविक रूप से अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं. इससे संकेत मिलता है कि कोर्ट का फैसला इस मामले में तीखे मतभेदों के साथ विभाजित हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट में इस समय 6-3 का कंजरवेटिव बहुमत है.
ढाई घंटे चली सुनवाई
लगभग ढाई घंटे चली सुनवाई में जजों ने ट्रंप प्रशासन की उन अपीलों पर विचार किया, जिनमें निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती दी गई थी. निचली अदालतों ने कहा था कि ट्रंप की ओर से इस कानून का इस्तेमाल करके टैरिफ लगाना उनके अधिकार से परे है. इन टैरिफ से प्रभावित कंपनियों और 12 अमेरिकी राज्यों (ज्यादातर डेमोक्रेटिक) ने इस फैसले को चुनौती दी थी.
मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने अमेरिकी सॉलिसिटर जनरल डी. जॉन सॉअर से कहा, 'टैरिफ तो अमेरिकियों पर टैक्स लगाने जैसा है, और टैक्स लगाने का अधिकार हमेशा से कांग्रेस का मुख्य अधिकार रहा है.' अमेरिकी संविधान के अनुसार, टैक्स और टैरिफ लगाने का अधिकार कांग्रेस के पास है.
टैरिफ के खिलाफ फैसला देगा बड़ा झटका
ट्रंप ने सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डाला है कि वह उनके टैरिफ को कायम रखे, जिन्हें वह आर्थिक और विदेशी नीति का अहम हथियार मानते हैं. अगर कोर्ट ने ट्रंप के खिलाफ फैसला दिया तो यह उनके लिए बड़ा झटका होगा, क्योंकि अब तक कोर्ट ने कई मामलों में उनके सख्त कदमों को मंजूरी दी है, जैसे आव्रजन पर रोक, अधिकारियों की बर्खास्तगी, और ट्रांसजेंडर सैनिकों पर प्रतिबंध.