
पिछले दो दिनों में भारत और पाकिस्तान की राजधानी दिल्ली और इस्लामाबाद में हुए दो विस्फोटों ने दक्षिण एशिया को हिलाकर रख दिया. 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के सामने एक कार बम विस्फोट में 12 लोगों की मौत हो गई और 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए. इस विस्फोट के मात्र 24 घंटे बाद 11 नवंबर को इस्लामाबाद के एक कोर्ट परिसर में आत्मघाती हमले में भी 12 की मौत और कई लोग घायल हुए. दुनिया के ज्यादातर देशों ने दोनों देशों के प्रति एकजुटता दिखाई, लेकिन दोनों देशों के प्रमुख साझेदार अमेरिका के बयानों में साफ अंतर नजर आया.
आमेरिका ने भारत के प्रति ठंडा और विलंबित प्रतिक्रिया को अपनाया, जबकि पाकिस्तान के प्रति त्वरित और हमले की कड़ी निंदा की. विशेषज्ञों और आलोचकों ने इसे ट्रंप प्रशासन के पाकिस्तान-समर्थक पूर्वाग्रह का प्रमाण बताया है.

24 घंटे बाद आई प्रतिक्रिया
दिल्ली विस्फोट के लगभग 24 घंटे बाद भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने एक बयान जारी किया. अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर ने एक्स पर बयान जारी कर कहा, 'हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं कल रात नई दिल्ली में हुए भयानक विस्फोट में मारे गए लोगों के परिवारों के साथ हैं. हम घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं.'

PAK पर विस्तृत प्रतिक्रिया
इसके विपरीत पाकिस्तान के मामले में अमेरिका की प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से अधिक विस्तृत और त्वरित थी. दूतावास के एक्स हैंडल पर पोस्ट किया गया, 'आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान के साथ एकजुटता से खड़ा है. आज के इस मूर्खतापूर्ण हमले में अपनी जान गंवाने वालों के परिवारों के प्रति हमारी संवेदनाएं. हम घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं. हम इस हमले और आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा करते हैं और पाकिस्तान सरकार द्वारा उनके देश में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.'
बयानों पर उठे सवाल
दोनों अमेरिकी दूतावासों के एक्स में अंतर ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. कई भारतीयों ने अमेरिका पर पाकिस्तान के प्रति पक्षपात का आरोप लगाया.
सेवानिवृत्त मेजर मदन कुमार ने एक्स पर कहा, 'कोई निंदा नहीं! अब चीजें और ज्यादा स्पष्ट हो रही हैं!'
वहीं, सेवानिवृत्त कर्नल अजय के रैना ने कहा, 'अमेरिका, हमेशा की तरह, आतंकवादियों का पक्ष ले रहा है.'
इंजीनियर राजावेल एम ने दोनों दूतावासों के बयानों की तुलना करते हुए कहा कि दिल्ली ब्लास्ट के बाद अमेरिकी दूतावास के रवैया से गहरी निराशा हुई है. हालांकि, अमेरिका स्थित भू-राजनीतिक विश्लेषक माइकल कुगेलमैन ने इस अंतर की एक संभावित वजह बताई.
उन्होंने एक्स पर लिखा कि मुझे संदेह है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि पाकिस्तान ने वहां हुए विस्फोट को औपचारिक रूप से आतंकवाद के रूप में वर्गीकृत किया है. भारत ने दिल्ली वाले मामले में ऐसा नहीं किया है.
दूसरी ओर चार्टर्ड अकाउंटेंट शिवा मुदगिल ने कहा कि भारत में हुए आतंकवादी हमले पर संवेदना व्यक्त करने में अमेरिकी दूतावास को लगभग एक दिन लग गया, लेकिन पाकिस्तान के लिए वह तेज थे.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बिगड़े रिश्ते
ये ध्यान देने योग्य है कि मई में 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद से अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में काफी सुधार हुआ है. इसके विपरीत भारत-अमेरिका संबंध खराब हो गए हैं. ट्रंप ने बार-बार दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर अमेरिकी मध्यस्थता का परिणाम था. जबकि नई दिल्ली का कहना है कि ये पूरी तरह से द्विपक्षीय था तथा प्रत्यक्ष सैन्य माध्यमों से मध्यस्थता की गई थी.
भारत पर लगाया 50% टैरिफ
इसके अलावा अमेरिका ने भारतीय निर्यात जैसे कपड़ा और दवाओं पर 50% तक टैरिफ लगाए और कड़े H-1B वीजा नियमों ने भी भारतीय प्रौद्योगिकी प्रवासी समुदाय को परेशान किया है.
इन कदमों ने दशकों की राजनयिक प्रगति को उलट दिया है. हाल के महीनों में अमेरिका ने रूसी कच्चे तेल की खरीद जैसे विभिन्न कारणों से भारत के प्रति अधिक आक्रामक रुख अपनाया है. इन विभिन्न गतिविधियों के कारण दोनों अमेरिकी दूतावासों की हालिया पोस्टों में ये पक्षपात स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.