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भारत के इस प्लान से पाकिस्तान के दोस्त तुर्की को लगेगी मिर्ची! अब क्या करेंगे एर्दोगन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 में शामिल होने के लिए कनाडा जा रहे हैं और इस दौरे से पहले वो साइप्रस में रुकेंगे. पीएम मोदी का साइप्रस दौरा बेहद अहम माना जा रहा क्योंकि साइप्रस का तुर्की के साथ लंबे समय से विवाद रहा है. तुर्की ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन किया है और भारत का साइप्रस के करीब जाना तुर्की को परेशान करने वाला कदम होगा.

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प्रधानमंंत्री मोदी के साइप्रस दौरे से तुर्की को झटका लगने वाला है (Photo-File/Reuters)
प्रधानमंंत्री मोदी के साइप्रस दौरे से तुर्की को झटका लगने वाला है (Photo-File/Reuters)

पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान तुर्की ने खुलकर आतंक के रहनुमा का साथ दिया था. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने तो ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय एयरस्ट्राइक में मारे गए आतंकियों के प्रति संवेदना जताई थी और उन्हें श्रद्धांजलि भी दी थी. अब भारत ऐसा काम करने जा रहा है जिससे पाकिस्तान का दोस्त तुर्की चिढ़ जाएगा. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे देश का दौरा करने वाले हैं जिसके एक हिस्से पर तुर्की ने अवैध कब्जा जमा रखा है.

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पीएम मोदी 15-17 जून के बीच आयोजित हो रहे जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए कनाडा जा रहे हैं. कनाडा जाने से पहले वो साइप्रस का दौरा करेंगे. पाकिस्तान और तुर्की से तनाव के बीच पीएम मोदी का साइप्रस दौरा रणनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है. साइप्रस 1974 से ही तुर्की के साथ संघर्ष में है क्योंकि तुर्की उसके इलाके पर अपना कब्जा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.

पीएम मोदी से पहले केवल दो भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (2002) और इंदिरा गांधी (1983) साइप्रस गए हैं. 2002 के बाद से कोई भारतीय प्रधानमंत्री साइप्रस के दौरे पर नहीं गया और लगभग 23 सालों बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री साइप्रस जा रहा है.

क्या है साइप्रस और तुर्की का विवाद?

साइप्रस और तुर्की के बीच दशकों पुराना विवाद है. साइप्रस भूमध्यसागर में स्थित एक द्वीप है जो तुर्की के दक्षिण में स्थित है. साइप्रस के पश्चिम में सीरिया और उत्तर-पश्चिम में इजरायल है. साइप्रस में ग्रीक और तुर्क अल्पसंख्यक लोग रहते हैं. दोनों समुदायों के बीद लंबे समय से नस्लीय विवाद चला आ रहा है.

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साल 1974 में ग्रीक समुदाय से जुड़े लड़ाकों ने द्वीप पर तख्तापलट किया था जिसके बाद तुर्की ने तुर्क समुदाय के लोगों की रक्षा का बहाना कर द्वीप पर हमला कर दिया था.

तुर्की ने साइप्रस पर हमला कर उसके मशहूर शहर वरोशा को अपने कब्जे में ले लिया था. वरोशा कभी बेहद समृद्ध शहर था जो तुर्की के हमले के बाद से ही निर्जन पड़ा हुआ है. तुर्की ने अपने हजारों सैनिकों को साइप्रस के इस हिस्से में तैनात कर रखा है.

तुर्की के कब्जे के बाद से ही साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया. साइप्रस के रहने वाले तुर्कों ने तुर्की के कब्जे वाले इलाके को साइप्रस से अलग देश घोषित कर दिया. हालांकि, इसे तुर्की के अलावा किसी और देश ने मान्यता नहीं दी है.

वहीं, साइप्रस को संयुक्त राष्ट्र समेत सभी बड़ी शक्तियों ने मान्यता दे रखा है. साइप्रस और तुर्की के कब्जे वाले साइप्रस के हिस्से को संयुक्त राष्ट्र की पेट्रोलिंग वाला एक बफर जोन अलग करता है.

साइप्रस और तुर्की के कब्जे वाले साइप्रस के हिस्से को एक करने की कई अंतरराष्ट्रीय कोशिशें विफल हो चुकी है.

तुर्की के खिलाफ साइप्रस का समर्थन करता है भारत

भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत साइप्रस समस्या के समाधान के पक्ष में रहा है. तुर्की जहां पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है, वहीं भारत ने साइप्रस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया है. साइप्रस आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे पर हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है.

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विदेश मंत्रालय के मुताबिक, साइप्रस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के चुनाव का समर्थन किया है और वो भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते के भी पक्ष में खड़ा था. 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था तब भी साइप्रस भारत के साथ खड़ा था.

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