पाकिस्तान को अपने ही रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ द्वारा 1972 के शिमला समझौते और भारत के साथ अन्य द्विपक्षीय समझौतों के भविष्य के बारे में किए गए एक और गलत दावे का फैक्ट-चेक करना पड़ा. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि शिमला समझौते सहित भारत के साथ किसी भी समझौते को रद्द करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है. यह बयान पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ द्वारा शिमला समझौते को अप्रासंगिक घोषित करने के एक दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने भारत द्वारा 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 (जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस) निरस्त करने के कारण इसे एक मृत दस्तावेज कहा था.
ख्वाजा आसिफ ने कहा, 'शिमला समझौता अब एक मृत दस्तावेज बन चुका है. हम 1948 की स्थिति पर वापस आ गए हैं.' उन्होंने नियंत्रण रेखा (LoC) को प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद स्थापित युद्ध विराम रेखा बताया. आसिफ की इन टिप्पणियों के बाद स्थानीय अखबार 'एक्सप्रेस ट्रिब्यून' से बात करते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सिंधु जल संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले पर आंतरिक चर्चा हुई, लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संधियों को रद्द करने की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. फिलहाल, किसी भी द्विपक्षीय समझौते को समाप्त करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं है. शिमला समझौते सहित मौजूदा द्विपक्षीय समझौते प्रभावी रहेंगे.'
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ख्वाजा आसिफ की नासमझी
भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव पर बोलते हुए आसिफ ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों के भविष्य पर टिप्पणी की थी. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, 'सिंधु जल संधि स्थगित हो या नहीं, शिमला समझौता पहले ही खत्म हो चुका है.' इससे सिंधु जल संधि को स्थगित रखने के भारत के फैसले पर पाकिस्तान की हताशा झलकती है. भारत और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान की सरकारों के बीच 1972 में द्विपक्षीय संबंधों पर समझौता हुआ था, जिसे शिमला समझौते के नाम से भी जाना जाता है. जुलाई 1972 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष जुल्फिकार अली भुट्टो ने हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
शिमला एग्रीमेंट का इतिहास
यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसंबर 1971 में हुए युद्ध के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी. यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनजीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे. ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजारों वर्ष तक युद्ध करने की कसमें खायी थीं. 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई, लेकिन किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके. इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी. तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था.
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इस समझौते के तहत पाकिस्तान ने भारत को आश्वासन दिया कि दोनों देशों के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवादित मुद्दे हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा. लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकड़ों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है. शिमला समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि 17 दिसंबर, 1971 यानी पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति में थीं, उस रेखा को युद्ध विराम रेखा माना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा. बाद में इसी को लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) नाम दिया गया. लेकिन पाकिस्तान ने इसका पालन भी नहीं किया. पाकिस्तानी सेना ने एलओसी का उल्लंघन करते हुए 1999 में कारगिल में जानबूझकर घुसपैठ की और भारत को युद्ध में शामिल होने के लिए मजबूर किया.
सिंधु जल संधि का इतिहास
सिंधु जल संधि, नदियों के जल वितरण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक समझौता है. इस संधि में विश्व बैंक (तत्कालीन 'पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक') ने मध्यस्थता की. इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों- ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन पश्चिमी नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया. पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है. संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है. इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए हैं.
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यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध की स्थिति में उसे सूखे और अकाल का सामना न करना पड़े. 1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध लड़े गए और कई ऐसे मौके बने जब हालात सैन्य टकराव के बन गए. इसके बावजूद भारत ने मानवियता का परिचय देते हुए कभी इस संधि का उल्लंघन नहीं किया था. हर प्रकार की असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया. इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल जल के केवल 20% का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है. लेकिन, पाकिस्तान सिंधु जल संधि की महत्ता और इसे लेकर भारत पर अपनी निर्भरता को जानते हुए भी कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने और नई दिल्ली के खिलाफ साजिश रचने से बाज नहीं आया. 22 अप्रैल, 2025 को पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा कश्मीर के पहलगांव के बैसरन घाटी में 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या करने के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया.