पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर एक संवैधानिक संशोधन के जरिए अपनी शक्ति को बेतहाशा बढ़ाने जा रहे हैं. मुनीर पाकिस्तान में 27वें संवैधानिक संशोधन के जरिए जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वो 'साइलेंट तख्तापलट' (Silent Coup) से कम नहीं है. यह संशोधन न केवल उन्हें आजीवन रैंक, विशेषाधिकार और कानूनी कार्रवाई से छूट देगा, बल्कि उन्हें तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भी बना देगा. संशोधन परमाणु संपत्तियों पर उन्हें कंट्रोल देगा और सरकार तथा न्यायपालिका समेत सभी अन्य संस्थान उनकी शक्ति के आगे छोटे पड़ जाएंगे.
रविवार को 27वें संवैधानिक संशोधन के ड्राफ्ट को पाकिस्तान के संयुक्त संसदीय समिति ने मंजूरी दी और आज सीनेट में इसे पेश किया जाएगा. वर्तमान में किसी भी संवैधानिक संशोधन को पारित करने के लिए पाकिस्तानी सीनेट में 64 वोट्स की जरूरत होती है. शहबाज शरीफ सरकार की तरफ से सबसे बड़ी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) है, जिसके पास 26 सीटें हैं, जबकि पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) के पास 20 सीटें हैं. गठबंधन सहयोगियों में बलूचिस्तान अवामी पार्टी (BAP) के चार सदस्य हैं, जबकि मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के पास तीन सीटें हैं.
शहबाज शरीफ सरकार को 6 निर्दलीय सांसदों का समर्थन भी हासिल है. हालांकि, सत्तारूढ़ गठबंधन के पास सीनेट में दो-तिहाई बहुमत नहीं है. वर्तमान में उसके पास 61 सीटें हैं, इसलिए संशोधन को पारित कराने के लिए विपक्ष के कम से कम तीन वोटों की जरूरत होगी.
पाकिस्तान के कानून मंत्री आजम तारार ने मीडिया से कहा, 'कोई गतिरोध नहीं है. हमारे पास सीनेट में आवश्यक संख्या मौजूद है. जैसे ही सभी सांसद मौजूद होंगे, मतदान शुरू हो जाएगा.'
पाकिस्तान की मीडिया के मुताबिक, सीनेट से पारित होने के बाद यह विधेयक नेशनल असेंबली में मतदान के लिए जाएगा, जिसकी कार्यवाही आज शाम 4:30 बजे निर्धारित है.
पाकिस्तानी संविधान में यह संशोधन लागू होते ही आसिम मुनीर की शक्तियां अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएंगी और यह उन्हें सरकार और न्यायपालिका से भी बड़ा बना देगा.
इस कदम के बैकग्राउंड को समझने के लिए 1971 के युद्ध के बाद की घटनाओं पर नजर डालना जरूरी है. वो दौर पाकिस्तानी सेना का सबसे अंधकारमय दौर था. इसी की जांच के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश हमूदुर रहमान की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय आयोग बनाया था. इसमें केवल एक सदस्य सेना से था, बाकी सभी न्यायपालिका से, जिनमें बलूचिस्तान हाई कोर्ट के दो जज शामिल थे.
इस आयोग की एक प्रमुख सिफारिश, जो आज तक आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं हुई, यह थी कि एक 'जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी' बनाई जाए, जिसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ फोर-स्टार जनरल करे. कहा गया कि जनरल सरकार के लिए प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में काम करे और नागरिक व्यवस्था और सेना के बीच सेतु का काम करे.
1976 में भुट्टो ने जिया-उल-हक को सेना प्रमुख बनाया, लेकिन साथ ही जनरल मुहम्मद शरीफ को समान वरिष्ठता के साथ पहला 'चेयरमैन जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी' नियुक्त किया. दोनों के बीच कभी बात नहीं बनी और यही उन कई कारणों में से एक था, जिसने 1977 में जिया को सत्ता हथियाने के लिए उकसाया. मुहम्मद शरीफ ने तख्तापलट का विरोध किया और जल्द ही इस्तीफा दे दिया. उसके बाद यह पद लगभग निष्क्रिय हो गया.
आसिम मुनीर अब जिया-उल-हक से भी एक कदम आगे बढ़ गए हैं. 27वें संशोधन के तहत वो इस पद को पूरी तरह समाप्त कर रहे हैं. इसके स्थान पर 'चीफ ऑफ डिफेन्स फोर्सेस (CDF)' का पद बनाया जा रहा है. यह पद तीनों सेनाओं से ऊपर होगा और यह सेना प्रमुख के पास ही रहेगा. यानी खुद मुनीर के पास.
द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीडीएफ के रूप में उन्हें 'नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड' के प्रमुख की नियुक्ति का अधिकार भी मिलेगा (संशोधन में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री यह नियुक्ति सीडीएफ की सलाह पर करेंगे). इसका अर्थ है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण मुनीर के हाथों में आ जाएगा.
उन्होंने एक तरह से सारी सैन्य शक्तियां अपने पास रख ली हैं. उन्होंने ठीक उसका उलटा किया है जो हमूदुर रहमान आयोग ने सुझाया था. कहा जा रहा है कि मुनीर ने न्यायपालिका को भी बांट दिया है, 'फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट' बनाकर. संशोधन के मुताबिक, पाकिस्तान में अब दो मुख्य न्यायाधीश होंगे, लेकिन यह साफ नहीं है कि पाकिस्तान का वास्तविक 'मुख्य न्यायाधीश' किसे कहा जाएगा.
जहां भुट्टो को सत्ता से हटाने, गिरफ्तार करने और न्यायपालिका को दबाने के लिए जनरल जिया-उल-हक को सेना उतारनी पड़ी थी, वहीं मुनीर यह सब कुछ एक कमजोर शहबाज शरीफ सरकार के सहारे कर रहे हैं.
राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी (पीपीपी) को साधने के लिए संशोधन में यह भी जोड़ा गया है कि राष्ट्रपति को अब आजीवन कानूनी छूट मिलेगी, जबकि पहले यह केवल कार्यकाल तक सीमित थी. इसी अनुच्छेद में यह भी जोड़ा गया है कि फील्ड मार्शल (जो कि आसिम मुनीर हैं) को भी आजीवन वही विशेषाधिकार मिलेगा जो राष्ट्रपति को मिलती है. फील्ड मार्शल को हटाने की प्रक्रिया भी राष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया जैसी होगी.
जहां जनरल जिया का तख्तापलट हिंसक और प्रत्यक्ष था, वहीं मुनीर का कदम मौन लेकिन कहीं अधिक बड़ा हो सकता है. यह एक ऐसी राजनीतिक सरकार के जरिए हो रहा है जो पूरी तरह सेना पर निर्भर है. पूर्व प्रधानमंत्री और पीटीआई चीफ इमरान खान के जेल में होने के कारण किसी संगठित राजनीतिक विरोध की संभावना नहीं है.
हालांकि, संशोधन के विरोध में पाकिस्तान की सड़कों पर या पश्चिमी पाकिस्तान में जारी विद्रोहों से कुछ प्रतिरोध देखने को मिल सकता है.
पाकिस्तान में हो रहे इस संविधान संशोधन के बीच भारत को अपनी चौकसी बढ़ाने की जरूरत है. पाकिस्तान के इतिहास में हर शक्तिशाली सैन्य प्रमुख की तरह, मुनीर भी अमेरिका और चीन दोनों से समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं.
माना जा रहा है कि वो अमेरिका विशेषकर ट्रंप प्रशासन, से पूर्ण समर्थन की आस लगाए बैठे हैं. इस्लामी कट्टरपंथी वर्ग भले इससे नाराज हो, लेकिन यही मुनीर की भविष्य की रणनीति का केंद्र है. ऐसे में भारत को पड़ोस में हो रहे इस घटनाक्रम पर सतर्कता बरतनी होगी.