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सिंधु का पानी, पाकिस्तान का Obsession और भारत का कदम... क्या जंग की तरफ बढ़ रही 2 परमाणु शक्तियां?

ऐसे में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कहते हैं कि अगर सिंधु नदी का पानी रोका गया तो पूरी ताकत के साथ उसका जवाब दिया जाएगा. बिलावल भुट्टो जब कहते हैं कि सिंधु दरिया में या तो अब पानी बहेगा या उनका खून बहेगा... तो हमें सिंधु नदी को लेकर पाकिस्तान का Obsession समझ आता है क्योंकि यह नदी पाकिस्तान की लाइफलाइन है. देश की अर्थव्यवस्था खासकर खेती इसी दरिये के पानी पर निर्भर करती है.  

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सिंधु नदी के पानी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव
सिंधु नदी के पानी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव

मानव इतिहास में अमूमन युद्ध जमीन के टुकड़ों के लिए लड़े जाते रहे हैं. कभी पाकिस्तान तो कभी चीन भारत खुद इन जंगों का भुक्तभोगी बन चुका है. लेकिन ऐसी स्थिति शायद पहली बार बनती नजर आ रही है, जब पानी ने दो मुल्कों के बीच का खून खौला दिया है. यूं तो प्राचीन काल में पानी के लिए संघर्ष हुए हैं पर ये अजीब विडंबना है कि जिस सिंधु नदी समझौते की नींव ही विवाद सुलझाने के लिए की गई. वह समझौता 65 बाद एक नए विवाद की वजह बन गया है. ऐसे में क्या सिंधु नदी भारत और पाकिस्तान को दुनिया के पहले Water War के मुहाने पर ले आई है? इसके लिए हमें सिंधु नदी को लेकर पाकिस्तान के Obsession को भी समझना पड़ेगा.

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वर्ल्ड बैंक के वाइस प्रेसिडेंट इस्माइल सेरोगोल्डिन वह पहले शख्स थे जिन्होंने 1995 में Water War शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा था Many of the Wars of 20th Century were about oil but wars of 21st Century will be about Water. मतलब साफ था कि 20वीं सदी में तेल के लिए युद्ध लड़े गए लेकिन 21वीं सदी में युद्ध पानी के लिए होंगे. ठीक इसी तर्ज पर 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बयान से लेकर 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी के बयान तक... सभी में पानी और उससे जुड़े संभावित तनाव को महसूस किया जा सकता है. 

ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ जब कहते हैं कि अगर सिंधु नदी का पानी रोका गया तो पूरी ताकत के साथ उसका जवाब दिया जाएगा. या पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जब कहते हैं कि सिंधु दरिया में या तो अब पानी बहेगा या उनका खून बहेगा... तो हमें इन बयानों से सिंधु नदी को लेकर पाकिस्तान का Obsession साफ समझ आता है. ऑब्सेशन भी इसलिए क्योंकि यह नदी पाकिस्तान की लाइफलाइन मानी जाती है. देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती का वजूद इसी दरिये के पानी पर टिका है.  

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सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर करते पंडित नेहरू और अयूब खान
सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर करते पंडित नेहरू और अयूब खान

पाकिस्तान में 25 के आसपास नदियां हैं जिनमें सिंधु ही एकमात्र ऐसी नदी है, जिस पर पाकिस्तान की एग्रीकल्चर इकोनॉमी टिकी हुई है. 2023 के आंकड़ों पर गौर करें तो पाकिस्तान की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 24 फीसदी है. खेती के एक बड़े भूभाग की सिंचाई इसी पानी के बूते होती है. कराची, लाहौर और मुल्तान जैसे शहरों में पानी की सप्लाई के लिए भी सिंधु नदी पर आंखें टिकी रहती हैं. पाकिस्तान के तरबेला और मंगला जैसे डैम पर दर्जनों हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से बिजली का उत्पादन होता है. यह समझौता स्थगित होने से यकीनन आर्थिक बदहाली का सामना कर रहे पाकिस्तान पर दोहरी मार जैसी पड़ेगी. ऐसे में अहम सवाल यही खड़ा होता है कि क्या इस एग्रीमेंट का रद्द होना दोनों देशों के बीच जंग भड़का सकता है?

सिंधु नदी के पानी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध की बात वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल वहीद अपनी किताब Water Politics in South Asia: A Critique of Indus Waters Treaty, 1960 में कर चुके हैं. वह कहते हैं कि दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु नदी समझौते से पीछे हटने पर विचार किया था. लेकिन उस समय पाकिस्तान ने कड़े तेवर दिखाते हुए कहा था कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका तो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जाएगा. 

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जनवरी 2010 में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए पाकिस्तान योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन एस. आसिफ अहमद अली ने तो भारत पर पाकिस्तान के हिस्से का पानी चुराने का आरोप लगा दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर भारत, पाकिस्तान के के हिस्से का पानी चुराना बंद नहीं करेगा तो हम युद्ध शुरू करने से नहीं हिचकिचाएंगे. 2004 में ISI के प्रमुख जावेद अशरफ ने संसद के भीतर कहा था कि बगलिहार बांध को लेकर पाकिस्तान, भारत के साथ युद्ध छेड़ सकता है.

पाकिस्तान की ओर से लगातार ऐसे भड़काऊ बयानों के बाद संयुक्त राष्ट्र की लगभग 20 संस्थाओं ने कहा था कि पानी की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. इससे दुनिया में पहला Water War शुरू हो सकता है और यह युद्ध पारंपरिक नहीं बल्कि परमाणु युद्ध हो सकता है. 

ऐसे में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के उस बयान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसमें उसने सिंधु नदी का पानी रोके जाने की भारत की वॉर्निंग पर बेहद भड़काऊ भाषण दिया था. 

वाहिद अपनी किताब में लिखते हैं कि सिंधु नदी एग्रीमेंट भारत और पाकिस्तान के बीच बेहद संवेदनशील मुद्दा है. पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था इन नदियों के पानी पर निर्भर करती है. पाकिस्तान की लाइफलाइन माने जाने वाली सिंधु नदी के विवाद को अगर इस विवाद को सुलझाया नहीं गया तो दोनों मुल्कों के परमाणु संपन्न होने की वजह से यह बड़े युद्ध में तब्दील भी हो सकता है. इस संधि के एनेक्सर D और E में इसका विस्तृत ब्योरा दिया गया है.

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भारतीय पत्रकार अशोक मोटवानी ने अपनी किताब Indus Waters Story में लिखा है कि सिंधु नदी एग्रीमेंट को लेकर पाकिस्तान में गजब का जुड़ाव है. वकीलों से लेकर पत्रकार, नेता और सैयद सलाहुद्दीन और हाफिज सईद जैसे आतंकी इस संधि को लेकर लगातार हमलावर रहे हैं. जबकि इसके उलट भारत में सिंधु नदी एग्रीमेंट को लेकर भारत की ओर से ज्यादा बयान सुनने को नहीं मिलते. 

मोटवानी ने किताब में जिक्र किया है कि सिंधु नदी एग्रीमेंट आर्टिकल 5(1) के तहत भारत ने पाकिस्तान में सिंधु, झेलम और चिनाब नदी से सिंचाई के लिए नहर और बांध तैयार करने के लिए 60 हजार पाउंड का भुगतान किया था. यह राशि 125 मीट्रिक टन सोने के बराबर थी. भारत ने 1960 से 1965 तक दस किश्तों में यह रकम पाकिस्तान को दी थी. यह रकम आज के हिसाब से लगभग 700 करोड़ रुपये है.

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सिंधु नदी को लेकर भारत और पाकिस्तान में तनाव (तस्वीर: ग्रोक)

1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद सिंधु बेसिन को लेकर दोनों मुल्कों के बीच तनाव जी का जंजाल बन गया था. ऐसे में जब 1951 में अमेरिकी पत्रकार डेविड लिलिएंथल ने भारत और पाकिस्तान का दौरा किया तो उन्होंने Collier’s पत्रिका में लिखे एक लेख में सुझाव दिया कि दोनों देशों को विश्व बैंक की मदद से जल विवाद को हल करना चाहिए. इस पर गंभीरता से विचार करते हुए वर्ल्ड बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन आर. ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान को चिट्ठी लिखकर मध्यस्थता की पेशकश की थी.

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1952 में वर्ल्ड बैंक ने वॉशिंगटन में भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच त्रिपक्षीय वार्ता शुरू की. कई सालों के प्रयास के बाद दोनों देशों के बीच नदियों के विभाजन का प्रस्ताव अस्तित्व में आया और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्था से भारत और पाकिस्तान ने सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में वर्ल्ड बैंक को एक तटस्थ तीसरे पक्ष के रूप में शामिल किया गया, जो विवादों को सुलझाने में मदद करता है.

सिंधु नदी के ठंडे पानी ने बेशक दोनों मुल्कों के संबंधों में पहले से मौजूद तनाव को और गरमा दिया है. लेकिन यह तनाव जंग में तब्दील होगा, अभी इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी हो सकता है. पानी हमेशा से ही हर सभ्यता में हॉट टॉपिक रहा है. पानी की वजह से मुल्कों के बीच के झगड़ों के इतिहास को खंगालेंगे तो आज से 4500 साल पीछे जाना होगा. यह वह समय था, जब पानी को लेकर पहली कलह सामने आई. प्राचीन मेसोपोटामिया जिसे आज इराक के तौर पर जाना जाता है. इसके दो शहरों लैगाश और उम्मा के बीच टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियों के पानी को लेकर जमकर संघर्ष हुआ था. ठीक इसी तरह केन्या में ओमा नदी के पानी को लेकर इथियोपिया के साथ हिंसक झड़पों में 100 लोगों की मौत ने सभी को चौंका दिया था. अब सभी की नजरें सिंधु पर है....

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