
रूस और यूक्रेन के बीच करीब तीन साल से जारी जंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर विदेशी नागरिकों को इस जंग में शामिल करने के आरोप लगाते रहे हैं. इस कड़ी में सबसे ताजा आरोप यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की ओर से लगाया गया. उन्होंने कहा कि यूक्रेन की सेना ने दो चीनी नागरिकों को पकड़ा है जो रूस की तरफ से जंग लड़ रहे थे. इसके साथ ही जेलेंस्की ने उनकी वीडियो जारी करते हुए कहा कि इन सभी हथकंडों को अपनाकर रूस कभी भी युद्ध को खत्म नहीं करना चाहता.
इन देशों के नागरिक जंग में उतरे
रूसी की तरफ से विदेशी नागरिकों का जंग में लड़ना कोई नई बात नहीं है. पहले भी रूस की तरफ से लड़ते हुए 12 भारतीय अपनी जान गंवा चुके हैं. इसके अलावा नेपाल, भूटान, श्रीलंका, क्यूबा और सोमालिया जैसे देशों के नागरिकों के रूसी सेना की ओर से लड़ने की बात सामने आई थी. भारत सरकार ने भी इस मुद्दे को रूस के सामने उठाया और जल्द से जल्द अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी की अपील की थी.
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रूस में नौकरी की तलाश में जाने वाले विदेशी नागरिकों को सेना की ट्रेनिंग देकर जंग में भेज दिया जाता है और इसके लिए उन्हें मोटी सैलरी का लालच भी दिया जाता है. कई मामलों में जंग से वापसी की चाह रखने वाले लोगों को जेल भेजने का डर दिखाकर धमकाया जाता है ताकि वह रूस की तरफ से जंग लड़ते रहें. इसके लिए रूसी रक्षा मंत्रालय विदेशी नागरिकों से एक कॉन्ट्रैक्ट पर भी साइन कराता है जिसे तोड़ने पर 10-15 साल की सजा देने की बात कही जाती है.
रूसी सेना के साथ किया करार
जर्मन वेबसाइट डीडब्ल्यू से बातचीत में एक श्रीलंकाई नागरिक ने आपबीती साझा की थी और बताया कि कैसे रूसी नागरिकता हासिल करने के लालच में वह सेना में भर्ती हो गया था, जिसे बाद उसे यूक्रेन में जंग लड़ने भेजा गया था. रिपोर्ट में 21 साल के वालासमुल्ला ने बताया कि उसे नहीं पता था कि वह यूक्रेन की जंग का हिस्सा बनने जा रहा है क्योंकि सेना में भर्ती के वक्त उसे सिर्फ रूसी सैनिकों के सहायक के तौर पर भर्ती किया गया था, जिसमें जंग के मोर्चे पर जाना शामिल नहीं था.
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पिछले साल फरवरी में जब श्रीलंकाई नागरिक को भर्ती किया गया तो उसे दो हजार डॉलर दिए गए और 2300 डॉलर प्रति माह की सैलरी देने की बात भी कही गई थी. इसके साथ ही उससे कहा गया था कि अगर रूस में रहने का लीगल स्टेटस हासिल करना है तो इस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करने होंगे. लेकिन जंग में लड़ने के दौरान वह घायल हो गया और उसे यूक्रेनी सेना ने हिरासत में ले लिया. उसने बताया कि श्रीलंका की खराब आर्थिक हालात की वजह से वह पैसे कमाने के लालच में नौकरी के लिए रूस आ गया था.
भागने पर जेल भेजने की धमकी
वालासमुल्ला ने एक साल तक मीट शॉप में काम किया और जब उसका वीजा खत्म हो गया तो वह अवैध रूप से मॉस्को के एक रेस्टोरेंट में काम करने लगा. लेकिन फिर आखिर में उसने रूसी आर्मी जॉइन की. उसे रूस के कब्जे वाले यूक्रेनी के शहर डोनेट्स्क के बाहरी इलाके में भेजा गया था. लेकिन जब उसने रूसी अधिकारियों से वापस श्रीलंका जाने की बात कही तो उसे साफ मना कर दिया गया और कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने पर 15 साल की जेल की धमकी दी गई.
श्रीलंका नागरिक ने बताया कि उसकी यूनिट में नेपाल, भारत, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के नागरिक भी थे. 'ब्लूमबर्ग' के मुताबिक रूस ने हजारों प्रवासी मजदूरों और विदेशी छात्रों को यूक्रेन के खिलाफ लड़ने के लिए रूसी सेना में शामिल होने के लिए मजबूर किया है. इन लोगों से कथित तौर पर कहा गया था कि अगर वे सेना में शामिल होने से इनकार करते हैं तो उनका वीजा रिन्यू नहीं किया जाएगा.
ट्रेनिंग के बाद सैनिकों की तैनाती
इसके अलावा डीडब्ल्यू को एक नेपाली नागरिक ने बताया कि वह अपने मुल्क में टैक्सी ड्राइवर का काम करता था लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में रूस पहुंच गया. उसे पश्चिमी यूक्रेन में युद्ध बंदी शिविर में रखा गया है. उसने नेपाल में रहने के दौरान रूसी सेना में काम करके बहुत सारा पैसा कमाने की बात सुनी थी, इसलिए वह अक्टूबर 2023 में मास्को आया था, जहां उसे 60 अन्य विदेशियों के साथ मॉस्को के बाहरी इलाके में आर्मी ट्रेनिंग दी गई थी.
नेपाली नागरिक ने रूसी सेना के साथ एक साल का कॉन्ट्रैक्ट किया और उसे एक चीनी व्यक्ति के साथ किचन हेल्पर के तौर पर काम करने के लिए रखा गया था. उसकी यूनिट में भी 23 नेपाली और तीन भारतीय थे. एक महीने बाद उन सभी को डोनेट्स्क के पास एक जगह पर ट्रांसफर किया गया. कुछ सप्ताह बाद वह जंग में घायल हो गया और जब उसने यूक्रेनी सैनिकों को देखा तो अपना हेलमेट, सुरक्षा जैकेट और मशीन गन उतार दी. नेपाली नागरिक के मुताबिक कॉन्ट्रैक्ट तोड़ना नामुमकिन था और इसी वजह से उसने यूक्रेनी सैनिकों के आगे सरेंडर कर दिया.
जॉब का वादा, आर्मी में भर्ती
यूक्रेनी अधिकारियों की मुताबिक रूसी सेना में एशियाई देशों के अलावा अफ्रीकी नागरिक भी शामिल हैं, जिनमें सिएरा लियोन और सोमालिया के लोग भी हैं. इसके साथ ही श्रीलंका, नेपाल और क्यूबा के भी लोग हैं, ज्यादातर सैनिक गरीब देशों के हैं. रूस सोशल नेटवर्क पर विज्ञापन देकर सेना में विदेशियों की भर्ती करने की कोशिश करता है. जहां अक्सर उनसे कंपनियों में जॉब दिलाने का वादा किया जाता है और जब सेना में सेवा देने की बात आती है, तो वे कहते हैं कि उन्हें सिर्फ अंदरूनी इलाकों में ही तैनात किया जाएगा.
रूसी सेना में बड़े पैमाने पर नेपाली नागरिकों की भर्ती का बात सामने आई है. CNN के मुताबिक रूस ने करीब 15,000 नेपाली नागरिकों की भर्ती की थी. जबकि नेपाली सरकार के मुताबिक उसके सिर्फ 200 नागरिक रूसी सेना में शामिल हुए हैं, जिनमें से 13 की मौत हो गई है. साथ ही काठमांडू में पुलिस ने 18 लोगों को भी गिरफ्तार किया, जिनके भर्ती में शामिल होने का शक था. सेना में भर्ती से इनकार के बाद रूस ने अपने देश में काम के लिए आने वाले नेपाली नागरिकों को भी बैन कर दिया था.
12 भारतीय गंवा चुके हैं जान
इसी तरह भारत के विदेश मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में जानकारी दी थी कि रूसी सेना में 127 भारतीय नागरिक थे, जिनमें से 97 की सर्विस खत्म हो चुकी है. उनकी वापसी के लिए सरकार की ओर से हर संभव मदद भी दी गई थी, जिसमें ट्रेवल डॉक्यूमेंट के अलावा हवाई टिकट शामिल थी. इस मामले पर भारत और रूसी सरकारों के बीच लगातार हाई लेवल बातचीत हो रही है ताकि जंग में फंसे भारतीय की सकुशल वापसी सुनिश्चित हो सके. हालांकि रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ लड़ते हुए अब तक 12 भारतीय जान गंवा चुके हैं.
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रूसी सेना के पास 13 लाख से ज्यादा सैनिक हैं. इसमें ज्यादातर लोग एक्टिव आर्मी में हैं, जबकि एक बड़ी संख्या रिजर्व सर्विस और पैरामिलिट्री की है. सैन्य बल के मामले में यूक्रेन कमजोर है, जिसके पास 5 लाख सैनिक हैं, जिसमें से सिर्फ 2 लाख ही एक्टिव सोल्जर्स हैं. रूस की तर्ज पर यूक्रेन भी अस्थाई सैनिकों की भर्ती कर रहा है. यहां तक कि उसके पास ऐसे पश्चिमी देशों से भी मदद आ रही है, जो रूस से दुश्मनी रखते हैं. यही वजह है कि छोटा और कथित तौर पर कमजोर देश भी तीन साल से रूस के साथ मुकाबला कर रहा है.
अमेरिका और यूरोप के अलावा मध्य आय या कई गरीब देश रूस के खिलाफ जंग में यूक्रेन का साथ दे रहे हैं. इनमें आर्मेनिया, अजरबैजान और लिथुआनिया भी शामिल हैं. विदेशी नागरिकों या फिर कहें भाड़े के सैनिकों को भर्ती करके रूस उन्हें खतरनाक इलाकों में भेज देता है ताकि उसके खुद के सैनिक सुरक्षित रहें. इसके अलावा प्रशिक्षण की कमी की वजह से ये सैनिक दुश्मन के साथ युद्ध नियमों को तोड़कर मारपीट करते हैं, जिससे विरोध के हौंसले पस्त हो जाते हैं. ये विदेशी सैनिक सीधे सेना से जुड़े नहीं होते और ऐसे में इनकी जिम्मेदारी लेने से बचा जा सकता है.