अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सिर्फ ईरान के फोर्डो न्यूक्लियर साइट का विनाश चाहते थे. फोर्डो, जो अब तक ईरान का सबसे गुप्त और सबसे न्यूक्लियर साइट माना जाता था को अमेरिकी B-2 बॉम्बर बमों से तहस-नहस कर दिया. लेकिन ट्रंप, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और इजरायल के सामरिक मामलों के मंत्री रॉन डर्मर ने पूरे एक सप्ताह तक ट्रंप को समझाया, उनके साथ तर्क वितर्क और बहस की कि अमेरिका न सिर्फ फोर्डो का बल्कि नतांज और इस्फहान न्यूक्लियर साइट को पूर्ण रूप से खत्म कर दे.
याद रखें कि इस बीच ट्रंप ने कहा था कि अमेरिकी दो सप्ताह में तय करेगा कि वो इजरायल-ईरान जंग में उतरे या नहीं. दरअसल ये वो समय था जब नेतन्याहू ट्रंप को राजी करने में जुटे हुए थे.
इस मुद्दे पर इजरायल की वेबसाइट द यरुशलम पोस्ट ने विस्तृत रिपोर्ट जारी की है.
गौरतलब है कि 13 जून को शुरू हुए इजरायल के इस हमले में दोनों ओर से मरने वालों की संख्या 1000 के आस-पास पहुंच गई है. न्यूज एजेंसी एपी के अनुसार इस हमले में अबतक 950 ईरानियों की मौत हो चुकी है. और 3450 लोग जख्मी हैं.
यरुशलम पोस्ट को एक इजरायली अधिकारी ने बताया कि "चार दिन पहले नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच फोन पर बातचीत हुई थी, जिसके दौरान ट्रम्प ने कहा था,'मैंने हमला करने का फैसला किया है.'
इजरायली कामयाबी से प्रभावित हुए ट्रंप
इस रिपोर्ट के अनुसार जब से इजरायल ने ईरान पर हमला किया तब से ट्रंप और नेतन्याहू तकरीबन रोज बात कर रहे हैं. अमेरिकी और इजरायली सूत्रों के अनुसार इस हमले में इजरायल की मारक क्षमता और कामयाबी ने ट्रंप और अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों को प्रभावित किया.
सूत्रों ने कहा, "इजरायल की कामयाबियों और उसके ऑपरेशन के परिणामों के बिना अमेरिकी राष्ट्रपति कभी भी हमले में शामिल होने के बारे में नहीं सोचते."
गौरतलब है कि ईरान के नतांज और इस्फहान न्यूक्लियर साइट पर इजरायल पहले दिन ही हमला कर चुका था और इन केंद्रों को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा चुका था. इसके बाद ईरान का फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट ही बच गया था. राष्ट्रपति ट्रंप भी इसी प्लांट पर हमला करना चाहते थे.
लेकिन जैसा कि एक इजारायली अधिकारी ने यरुशलम पोस्ट को बताया नेतन्याहू और डर्मर ट्रम्प को इस्फ़हान न्यूक्लियर फैसिलिटी को भी निशाना बनाने के लिए राजी करने में कामयाब रहे ताकि "काम पूरा हो सके." नेतन्याहू ने इसके लिए "to finish the job" वाक्य का इस्तेमाल अमेरिका के सामने किया. यानी कि इजरायल अमेरिका को ये समझाने में सफल रहा कि ईरान को परमाणु हथियारों से विहीन करने के लिए इसके तीन प्रमुख परमाणु केंद्रों की तबाही आवश्यक है. ये केंद्र थे- नतांज, इस्फहान और फोर्डो. इनमें से नतांज और इस्फहान पर इजरायल खुद के दम पर हमला कर चुका था.
जहां इजरायल को पहुंचने में परेशानी हो रही थी वहां पहुंचा अमेरिका
इजरायली सूत्र ने कहा, "अमेरिकियों ने इन साइटों के भीतर उन स्थानों पर हमला किया जहां इजरायल को पहुंचने में परेशानी हो रही थी" "अमेरिका ने इस्फहान में पहाड़ी इलाके में छिपे एक क्षेत्र पर हमला किया, जहां ईरानियों ने इनरिच यूरेनियम और अन्य परमाणु-संबंधी बुनियादी ढांचे को संभाल कर रखा था."
गुरुवार को नेतन्याहू और ट्रम्प के बीच फोन कॉल के अलावा अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस, रक्षा सचिव पीट हेगसेथ और अन्य वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों के बीच नेतन्याहू, डर्मर, रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज़ और आईडीएफ चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल इयाल जमीर के साथ एक अलग कॉल हुई.
अमेरिका ने एक बार ईरानी न्यूक्लियर प्रतिष्ठानों पर हमले का फैसला कर लिया तो अमेरिका ने इजरायल से “कई ऑपरेशनल जानकारियां” ली.
एक इजरायली सूत्र ने पोस्ट को बताया, "अमेरिकी हमले के मामले में इजरायल और अमेरिका के बीच पूरा सहयोग था. अमेरिका ने ही इसे अंजाम दिया लेकिन इजरायल ने उसे खुफिया जानकारी मुहैया कराई और इसकी सफलता में योगदान दिया."
शनिवार की रात नेतन्याहू ने कई मंत्रियों के साथ एक सुरक्षा मीटिंग की और उन्हें बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला करने की संभावना है.
ये मीटिंग कई घंटे तक चलती रही. इस दौरान इजरायल का प्रशासन और खुफिया मिलिट्री एजेंसियां अमेरिका के संपर्क में थीं. एक बार जब अमेरिकी B-2 बॉम्बर ने ईरानी न्यूक्लियर साइट पर हमला शुरू किया तभी ये मीटिंग खत्म हुई.
अमेरिका-इजरायल ने दुनिया को धोखे में रखा
ऑपरेशन से शुरुआती दिनों में इजरायल और अमेरिका दोनों ने धोखे की रणनीति अपनाकर यह आभास पैदा किया कि दोनों देशों के बीच इस बात पर गहरी असहमति है कि अमेरिका इस हमले में भाग लेगा या नहीं.
गौरतलब है कि 13 जून के बाद लगातार ऐसी खबरें आ रही थी जिसमें अमेरिका के इस जंग में शामिल होने पर अनिश्चितता थी. ट्रंप बार-बार ईरान को सरेंडर करने की बात कह रहे थे, लेकिन अमेरिका बार बार जंग में शामिल होने पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दे रहा था.
एक इज़रायली सूत्र ने बताया कि "भले ही ईरानियों को पता चल जाता कि हमला होने वाला है, फिर भी वे इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते थे."
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार त्ज़ाची हनेग्बी ने रविवार को इजरायली संसद की विदेश मामलों और रक्षा समिति को बताया, "हमें हमले के बारे में पता था, यह कोई हैरानी की बात नहीं थी."
इजरायली अधिकारियों के अनुसार, ईरान का अधिकांश परमाणु कार्यक्रम या तो नष्ट हो चुका है या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है.
हालांकि, "कुछ सेकेंडरी साइट बचे हुए हैं" जिन्हें इजरायल अभी भी अपना टारगेट मानता है. हनेग्बी ने समिति को बताया कि "इज़रायल टारगेट लिस्ट में शामिल 100% स्थलों को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है."
हनेग्बी ने इजरायली संसद की समिति के सदस्यों से कहा कि "ईरान अभी भी मिसाइलें बना रहा है. हालांकि कुछ प्रोडक्शन साइट नष्ट हो गए हैं, लेकिन उनके पास तेजी से उसे फिर से हासिल करने की क्षमता है." "नेतन्याहू और डर्मर ने खूब कोशिश की, सभी से बात की और अंत में अमेरिकी प्रशासन को इसमें शामिल होने के लिए राजी करने में सफल रहे."
एक वरिष्ठ इजरायली अधिकारी ने बताया कि, "हालांकि ट्रंप ने निश्चित रूप से अमेरिकी हितों के आधार पर इस जंग में शामिल होने का निर्णय लिया, लेकिन वे ट्रंप को यह बताने में सफल रहे कि ईरान के परमाणु साइट पर हमला करना अमेकिती हितों के भी अनुरूप था.
ट्रम्प पहले ही घोषणा कर चुके थे कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं होगा और इजरायल के साथ मिलकर उन्होंने यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया कि उसे एक भी परमाणु हथियार नहीं मिल पाएगा.