
इजरायल बीते कई दिनों से ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका की मदद मांग रहा था. खासतौर पर अमेरिकी बंकर बस्टर बम जिनके जरिए ईरान की अंडरग्राउंड न्यूक्लियर साइट्स को टारगेट किया जा सके. आखिरकार जंग के दसवें दिन अमेरिका सीधे तौर पर इसमें शामिल हो चुका है और उसने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकाने फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हमला किया है.
मिडिल ईस्ट की जंग में अमेरिका
अपने दूसरे कार्यकाल में 'शांतिवाहक' बनकर आए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब अमेरिका को मिडिल ईस्ट की एक और जंग में झौंक दिया है. हालांकि फिलहाल अमेरिका नियंत्रित तरीके पर इस जंग में शामिल हुआ है और ट्रंप ने ईरान से शांति बनाने की अपील भी की है. लेकिन ईरान ने जवाबी कार्रवाई का सीधा ऐलान कर दिया है. अब अमेरिका को इस जंग की कीमत चुकानी पड़ सकती है.
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बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक दूसरी बार व्हाइट हाउस में वापसी करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को किसी जंग में न झौंकने का वादा किया था. लेकिन ईरान-इजरायल की जंग में वह ना-ना कहते हुए आखिरकार उतर ही गए. राष्ट्रपति बनने के बाद मिडिल ईस्ट में शांति लाने के बजाय, ट्रंप अब एक ऐसे इलाके पर शासन कर रहे हैं जो और भी बड़े युद्ध के मुहाने पर खड़ा है. एक ऐसी लड़ाई जिसमें अमेरिका एक सक्रिय भागीदार बन चुका है.
शांति आएगी या भड़केगी जंग?
ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह एक सफल ऑपरेशन था. उन्होंने उम्मीद जताई कि उनके इस कदम से स्थाई शांति का रास्ता खुलेगा, जहां ईरान के पास अब परमाणु शक्ति बनने की क्षमता नहीं रहेगी. इसके उलट ईरान ने कहा है कि उसके भारी सुरक्षा वाले फोर्डो परमाणु ठिकाने को सिर्फ मामूली नुकसान पहुंचा है.
वहीं, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ के साथ ट्रंप ने ईरान को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ा, तो उन्हें आगे भी ऐसे हमलों का सामना करना पड़ेगा जो बहुत बुरे होंगे. ट्रंप ने कहा कि अभी भी कई टारगेट बचे हुए हैं और अमेरिका सटीकता के साथ उन पर हमला करेगा. राष्ट्रपति के दावे के बावजूद, ईरान में अमेरिकी सैन्य मौजूदगी जारी रहना अमेरिका, क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए भयावह स्थिति हो सकती है.
दो सप्ताह की चेतावनी, दो दिन में हमला
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि ईरान को बिना किसी शर्त के सरेंडर करना होगा, जिससे राष्ट्रपति के लिए पीछे हटना मुश्किल हो गया था. ट्रंप ने ईरान को दो सप्ताह की डेडलाइन दी थी, लेकिन यह सिर्फ़ दो दिन में ही खत्म हो गई. तो क्या दो हफ़्ते की बातचीत महज एक दिखावा थी? क्या यह ईरान को सुरक्षा का झूठा दिलासा दिलाने की कोशिश थी? या फिर ट्रंप की ओर से नियुक्त शांतिदूत स्टीव विटकॉफ के नेतृत्व में चल रही बातचीत फेल हो गई?
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हमलों में हुए नुकसान के बारे में फिलहाल ज्यादा जानकारी नहीं है और सिर्फ दोनों तरफ के दावे हैं. लेकिन अपने सोशल मीडिया पोस्ट और टेलीविज़न संबोधन में ट्रंप ने शांति के लिए दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. हालांकि, यह एक आशावादी सोच हो सकती है, क्योंकि इजरायल के तमाम हमलों के बावजूद ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई के पास अभी भी हथियार मौजूद हैं.
क्या हमले से कमजोर होगा ईरान
अब इंतज़ार का खेल शुरू हो गया. ईरान अपने तीन ठिकानों पर हमलों का क्या जवाब देगा, जिनमें फोर्डो भी शामिल है, जिसे उसके परमाणु कार्यक्रम के लिए सबसे अहम माना जाता है. ऐसा लगता है कि ट्रंप को उम्मीद है कि अमेरिकी हमले ईरान को वार्ता की मेज पर ज्यादा रियायतें देने के लिए बाध्य करेंगे, लेकिन यह असंभव लग रहा है कि जो देश इजरायली हमले के दौरान बातचीत करने के लिए तैयार नहीं था, वह अमेरिकी बम गिरने पर भी बातचीत करने के लिए तैयार हो जाएगा.
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ट्रंप यह संकेत दे रहे थे कि अमेरिकी हमला एक अनोखी, सफल घटना थी, अगर ऐसा नहीं है, तो दोबारा हमला करने का दबाव बढ़ेगा. राष्ट्रपति ने सैन्य फायदे के लिए एक गंभीर राजनीतिक जोखिम उठाया है. इससे अमेरिका के 'पीसमेकर' राष्ट्रपति को राजनीतिक झटका लगने का खतरा भी होगा. इस जोखिम में घरेलू राजनीतिक चिंताओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी कई गंभीर सवाल शामिल हैं.
ट्रंप का चुनौतियों से होगा सामना?
ईरान पर अमेरिकी हमले की संभावना ने न सिर्फ डेमोक्रेट्स की ओर से, बल्कि ट्रंप के अपने 'अमेरिका फर्स्ट' मूवमेंट के भीतर से भी तीखी आलोचना को जन्म दिया है. राष्ट्रपति की तरफ से अपने तीन करीबी सलाहकारों के साथ राष्ट्रीय संबोधन देने का असामान्य फैसला, संभवतः उनकी पार्टी के भीतर एकता दिखाने की कोशिश थी, ताकि वह विरोधियों के निशाने पर आने से बच सकें.
अगर यह हमला एक बार की घटना है, तो ट्रंप अपने समर्थकों के बीच मतभेदों को दूर करने में सफल हो सकते हैं. लेकिन अगर यह अमेरिका को एक बड़े संघर्ष में घसीटता है, तो राष्ट्रपति के अपने समर्थकों के साथ विद्रोह हो सकता है. हमला उस राष्ट्रपति के लिए एक आक्रामक कदम था, जिन्होंने अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान कोई नया युद्ध शुरू न करने का दावा किया था और जो पिछले साल चुनावी कैंपेन के दौरान देश को विदेशी संघर्षों में घसीटने वाले अपने पूर्व राष्ट्रपतियों के खिलाफ लगातार बोलते थे. ईरान पर हमला करके ट्रंप ने अपनी चाल चल दी है. अब आगे क्या होगा, यह पूरी तरह से उनके कंट्रोल में नहीं है.