अमेरिका जहां पहले भारत पर लगातार दबाव बना रहा था कि वो रूस-यूक्रेन युद्ध में उसके पाले में रहकर रूस की खुलकर आलोचना करे, वहीं अब उसके रुख में नरमी दिखाई दे रही है. अमेरिका ने कहा है कि भारत को रूस पर अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए. रूस से भारत की बढ़ती तेल खरीद पर अमेरिका ने कहा है कि ये भारत का संप्रभु निर्णय है. अमेरिका की इस टिप्पणी पर चीन की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई है.
चीनी सरकार का मुखपत्र माने जाने वाले सरकारी ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिकी की इस टिप्पणी पर निशाना साधा है और कहा है कि रूस पर भारत-चीन के एकसमान रुख के बावजूद अमेरिका दोनों देशों को लेकर दोहरा रवैया अपना रहा है.
दरअसल, मंगलवार को व्हाइट हाउस सुरक्षा परिषद की सामरिक संचार परिषद के समन्वयक जॉन किर्बी ने रूस के संदर्भ में कहा कि प्रत्येक देश को अपना निर्णय खुद लेना चाहिए. उनसे रूस से भारत की बढ़ती तेल खरीद को लेकर सवाल किया गया.
जवाब में उन्होंने कहा, 'भारत इंडो पेसिफिक क्षेत्र में अमेरिका का बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है. ऐसे कई तरीके हैं जिससे दोनों देशों के बीच की रक्षा, सुरक्षा और आर्थिक साझेदारी दिखती है. हम भारतीय नेताओं को उनकी आर्थिक नीतियों को तय करने से नहीं रोकेंगे. मैं आपको ये बता सकता हूं कि हम भारत के साथ इस द्विपक्षीय संबंध को महत्व देते हैं और हम चाहते हैं... जाहिर है कि प्रत्येक देश को खुद के लिए खुद से ही निर्णय लेने होंगे.'
उन्होंने आगे कहा, 'ये भारत का संप्रभु निर्णय है. लेकिन हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस पर जितना हो सके, उतना दबाव चाहते हैं. पुतिन जो कर रहे हैं, उसका परिणाम उन्हें भुगतना होगा.'
अमेरिका की तरफ से आई इस टिप्पणी पर चीन की सरकार के मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने एक ग्राफिक के जरिए निशाना साधा है. ग्लोबल टाइम्स ने ग्राफिक को अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर करते हुए लिखा है, 'व्हाइट हाउस की तरफ से क्लासिक डबल स्टैंडर्ड.'
ग्राफिक में जॉन किर्बी की तस्वीर के साथ लिखा गया है, 'जब चीन रूसी तेल खरीदता है तो अमेरिका कहता है कि चीन को एक जिम्मेदार देश बनना चाहिए और रूस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. और जब भारत रूसी तेल खरीदता है तो अमेरिका कहता है कि देश अपना निर्णय खुद ले सकते हैं. ये संप्रभु निर्णय है.'
अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद चीन और भारत रूस से तेल खरीदने में सबसे आगे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, मई महीने में रूस सऊदी अरब को पीछे छोड़ते हुए भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया.