पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के हरिहरपुर गांव के रहने वाले फाजर मंडल और उनकी पत्नी तसलीमा मंडल ने बांग्ला बोलने की वजह से उन्हें बांग्लादेश भेजे जाने का आरोप लगाया है. दंपती का कहना है कि मुंबई पुलिस ने उन्हें 10 जून को अवैध घुसपैठियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के दौरान पकड़ा और बांग्ला बोलने की वजह से उन्हें बांग्लादेशी करार दे दिया, जबकि उनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे वैध भारतीय पहचान पत्र मौजूद थे.
तसलीमा ने बताया, 'हमें रात 2 बजे हिरासत में लिया गया. हमने अपने आधार कार्ड और वोटर कार्ड दिखाए, लेकिन पुलिसकर्मी बार-बार यही कहते रहे कि हम बांग्लादेशी हैं. फिर हमें बागडोगरा ले जाया गया और आधी रात को रायगंज बॉर्डर के रास्ते बांग्लादेश भेज दिया गया. मेरे पति ने जब इसका विरोध किया तो उन्हें धमकाया गया. बांग्लादेश में प्रवेश करते ही हमें बीजीबी ने रोक लिया और कहा कि हम भारतीय नागरिक हैं.'
'सिर्फ बांग्ला बोलने की वजह से पुलिस ने हिरासत में लिया'
फाजर मंडल ने कहा कि उन्हें केवल इसलिए पकड़ा गया क्योंकि वे बांग्ला बोल रहे थे. पुलिस वालों ने साफ कहा कि जो बांग्ला बोलेगा वो बांग्लादेशी होगा. उन्होंने हमारे सारे कागजात और मेरा मोबाइल भी ले लिया, जो हमें अब तक वापस नहीं मिला.'
इस दंपती के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी बांग्लादेश के भाटारी गांव में छोड़ दिया गया. उनके परिवार वालों को उनकी कोई खबर नहीं थी. बाद में जब बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड (BGB) ने उनके परिजनों से संपर्क किया तो मामले की गंभीरता सामने आई और मदद की अपील शुरू हुई.
पश्चिम बंगाल सरकार ने किया हस्तक्षेप
पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रवासी श्रमिक कल्याण बोर्ड के माध्यम से तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप किया. बोंगांव पुलिस जिला के एसपी दिनेश कुमार ने बीएसएफ के सहयोग से कार्रवाई की और 15 जून को बीएसएफ और बीजीबी के बीच बैठक के बाद दोनों को सुरक्षित भारत वापस लाया गया. अगले दिन वे अपने परिवार से बागदा में मिल पाए.
एसपी दिनेश कुमार ने आजतक से बात करते हुए कहा, 'परिवार के संपर्क करने के बाद हमने उनके दस्तावेजों की जांच की और उनकी भारतीय नागरिकता की पुष्टि की. इसके बाद बीएसएफ के सहयोग से उनकी वापसी सुनिश्चित करवाई गई.'
टीएमसी ने उठाए सवाल
इस घटना की तीखी आलोचना करते हुए तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद ममता बाला ठाकुर ने कहा, 'मुंबई पुलिस ने कानूनी प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया? उन्हें कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए था या फिर पश्चिम बंगाल सरकार को सूचना दी जानी चाहिए थी. जब उनके पास वैध भारतीय दस्तावेज थे तो उन्हें बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स को क्यों सौंप दिया गया?'
(इनपुट: तपस कुमार सेनगुप्ता)