16 Nov 2025
Photo: Instagram/sidiously_
कहा जाता है “सीखने की कोई उम्र नहीं होती,” और महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव फंगाणे की दादियां इस बात को सबसे खूबसूरत तरीके से साबित कर रही हैं.
Photo: Instagram/sidiously_
दुनिया में बहुत सी कहानियां आती हैं और चली जाती हैं, लेकिन कुछ कहानियां दिल को गहराई से छू जाती हैं, यह उन कहानियों में से एक है.
Photo: Instagram/sidiously_
यहां 60 से लेकर 90 साल तक की महिलाएं रोज स्कूल जाती हैं. हां, उम्र के उस पड़ाव पर, जहां ज्यादातर लोग आराम करना चुनते हैं.
Photo: Instagram/sidiously_
लेकिन ये दादियां कॉपी-किताब उठाकर कक्षा में बैठती हैं और पेंसिल पकड़कर अपना नाम लिखना सीखती हैं और हर दिन एक नई रोशनी अपने भीतर जगाती हैं.
Photo: Instagram/sidiously_
नउनके चेहरे पर चमक होती है, दिल में खुशी होती है. उनका बस एक सपना था—मरने से पहले अपना नाम खुद लिख सकें और आज, यह सपना सच हो रहा है.
Photo: Instagram/sidiously_
उनकी आंखों में चमक, चेहरे पर आत्मविश्वास और दिल में सीखने की चाह— ये सब देखकर हर कोई बस यही कह रहा है: सीखने की कोई उम्र नहीं होती है.
Photo: Instagram/sidiously_
इस सपने को सच करने के लिए 2016 में गांव के एक शिक्षक, योगेंद्र बांगर ने सिर्फ दादियों के लिए एक खास स्कूल शुरू किया.
Photo: Instagram/sidiously_
यहां वे एबीसीडी सीखती हैं, मराठी पढ़ती हैं और सबसे जरूरी—अपना नाम लिखना सीखती हैं. इन दादियों की उम्र भले ही ज्यादा है, लेकिन सीखने का उत्साह बच्चों जैसा है.
Photo: Instagram/sidiously_
वे स्कूल के लिए तैयार होती हैं, स्लेट-कॉपी लेकर क्लास में बैठती हैं और बड़ी लगन से पढ़ती हैं. जब वे किसी दस्तावेज़ पर अपने हस्ताक्षर करती हैं, तो उनके चेहरे पर जो गर्व दिखता है, वह देखने लायक होता है.
Photo: Instagram/sidiously_
sidiously_ के इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किए गए इस वीडियो को लाखों लोगों ने देखा और पसंद किया है. कई यूज़र्स ने दादियों की हिम्मत और सीखने की चाह की जमकर तारीफ की.
Photo: Instagram/sidiously_
एक यूजर ने लिखा- पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती. दूसरे ने लिखा- एक ही दिल है, कितनी बार जीतोगे. तो कोई बोला, “मुझे आजी बाई के लिए बहुत खुशी हो रही है. े
Photo: Instagram/sidiously_