10 Nov 2025
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हिंदू धर्म में तिलक केवल सजावट या दिखावे का प्रतीक नहीं माना जाता है, बल्कि यह ईश्वर की भक्ति और आध्यात्मिकता का खास चिह्न माना जाता है.
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वहीं, मथुरा-वृंदावन के जाने माने प्रेमानंद महाराज ने भी अपने माथे पर लगे तिलक के बारे में बताया. दरअसल, एक भक्त ने उनसे प्रश्न किया. व्यक्ति ने महाराज जी से कहा कि तिलक लगाना दिखावा होता है या नहीं.
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प्रेमानंद महाराज ने उत्तर देते हुए कहा कि, 'हमने जो माथे पर चंदन लगा रखा है, वह दिखावे के लिए नहीं है. हमारे आचार्य परंपरा में तिलक की रचना की आज्ञा दी गई है.'
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'हम जो चंदन माथे पर लगाते हैं, वह कोई सजावट नहीं, बल्कि महारानी जी को अर्पित किया हुआ प्रसाद है. इसे माथे पर धारण करना भक्ति की पहचान है.'
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प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं कि, 'कंठी हमारे गुरु ने दी है, माला हमारे गुरु ने दी है और ये वेशभूषा भी हमारे गुरु ने ही दी है, ये सब हमारी उपासना के प्रतीक हैं, न कि दिखावे के.'
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'अगर हम सोचें कि तिलक या कंठी न लगाएं ताकि लोग हमें दिखावटी न समझें, तो यह हमारी उपासना का अपमान होगा और हमारी उपासना रद्द हो जाएगी.'
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'तिलक कंठी कोई दिखावा नहीं है, ये हमारा सुहाग है. जैसे एक सौभाग्यवती स्त्री अपने पति के लिए सोलह श्रृंगार करती है. वैसे ही हम भगवती जन अपने ईष्ट का श्रृंगार करते हैं.'
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ये हमारे भगवान के चिह्न है जिनके द्वारा हमारा दासत्व पुष्प होता है. इसको ऐसा खिलवाड़ ना समझना क्योंकि ये हमारी आराधना है.'
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फिर प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि, 'भक्ति में बनावटीपन नहीं होना चाहिए. यदि माला जप रहे हैं, तो सिर्फ दिखाने के लिए नहीं, बल्कि प्रेम से भजन करने के लिए करें.'
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'अगर कोई सामने आ जाए तो दिखावे के लिए ध्यानमग्न होने का नाटक न करें क्योंकि ऐसा आचरण भक्ति नहीं, अहंकार का रूप होता है. सच्ची भक्ति वही है जिसमें आडंबर नहीं, सिर्फ समर्पण और प्रेम हो.'
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